पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिकों ने कम खर्च में पानी में आर्सेनिक का पता लगाने का आसान तरीका ढूंढ निकाला!

वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके जरिए आर्सेनिक का पता लगा कर उसे दूर करना आसान भी है और सस्ता भी. पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में कल्याणी स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईईएसआर) के वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक सेंसर एंड रिमूवल किट को तैयार किया है. इससे बेहद आसान तरीके से कम खर्च में पानी में आर्सेनिक के स्तर का पता लगाया जा सकता है.

वैज्ञानिकों की टीम ने इस किट के व्यावसायिक उत्पादन के लिए एडो एडिटिव्स नामक एक फर्म के साथ करार पर भी हस्ताक्षर किए हैं. इस सेंसर किट को बनाने वाली टीम के प्रमुख आईआईईएसआर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और रामानुजन नेशनल फेलो राजा शनमुगम बताते हैं, “पानी में आर्सेनिक का पता लगाने के लिए बाजार में उपलब्ध मौजूदा तकनीक बेहद महंगी और जटिल है. उनके जरिए घर पर आर्सेनिक के स्तर का पता नहीं लगाया जा सकता.”

वह बताते हैं कि नए आर्सेनिक सेंसर के लिए 50 पेपर स्ट्रिप की कीमत महज ढाई सौ रुपए होगी. इसके कार्टिज की कीमत पांच सौ रुपए हैं. स्ट्रिप से आर्सेनिक का पता चलेगा और कार्टिज के जरिए उसे दूर किया जा सकेगा. फिलहाल बाजार में उपलब्ध टेस्टिंग किटों की कीमत छह से आठ हजार रुपए के बीच है. शुनमुगम बताते हैं कि पानी में मौजूद आर्सेनिक की मात्रा और पानी की खपत के आधार पर एक परिवार में साल में दो से तीन कार्टिज की जरूरत हो सकती है.

शनमुगम बताते हैं, “अब तक आर्सेनिक का पता लगाने के लिए पानी के नमूने में केमिकल मिला कर उसे हिलाना पड़ता था. आर्सेनिक की मौजूदगी की पुष्टि के लिए इससे निकलने वाले धुएं तो एक अन्य रसायन से गुजारा जाता है. घर पर यह काम करना खतरनाक और जटिल है.”

आईआईईएसआर के निदेशक सौरभ पाल बताते हैं, “यह सेंसर एक लीटर पानी से 0.02 मिलीग्राम आर्सेनिक हटाने में भी सक्षम है.” विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, भूमिगत पानी में आर्सेनिक की अनुमोदित सीमा 0.01 मिलीग्राम तक है. लेकिन भारत में डीप ट्यूबवेलों के जरिए भारी मात्रा में भूमिगत पानी की खपत की वजह से यह सीमा 0.05 मिलीग्राम है.

आईआईईएसआर की सेंसर किट में पनी में आर्सेनिक का पता लगाने के लिए फ्लूरो-पालीमर लगा एक फिल्टर पेपर होता है. सौरभ पाल बताते हैं, “इसे एक लीटर पानी में डुबोने पर मामूली आर्सेनिक होने की स्थिति में भी स्ट्रिप का रंग बदल कर गुलाबी हो जाता है. उसके बाद उस पानी को एक कार्टिज से गुजार कर आर्सेनिक-मुक्त किया जा सकता है.”

साभार- ‘डी डब्ल्यू’