पाठ्यक्रम में भाषा के लेख के रूप में उर्दू शामिल है, लेकिन पढ़ाने के लिए नहीं है कोई शिक्षक

मेरठ। कहने को तो प्रांत उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा प्राप्त है लेकिन भाषा को बढ़ावा देने में सरकार की क्षमता हर स्तर पर तुच्छ और अपर्याप्त दिखती है।

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सरकार की यही लापरवाही सरकारी प्राथमिक, जूनियर और उच्च विद्यालयों में उर्दू की शिक्षा और उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति को भी लेकर दिखती है। मेरठ जिले में भी ऐसे कई सरकारी स्कूल हैं जहां एक विषय के रूप में उर्दू पाठ्यक्रम का हिस्सा तो है लेकिन उर्दू पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। मजबूरी में छात्र संस्कृत पढ़ रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर मीरठ के फ्सोंदा क़स्बे का पोरो माध्यमिक सरकारी स्कूल है, जहां शहर के ही गरीब वर्ग की लगभग सौ बच्चियां पढ़ाई करती हैं और उनमें 90 प्रतिशत संख्या मुस्लिम बच्चियों की है। पाठ्यक्रम में भाषा के एक लेख के रूप में इन लड़कियों को उर्दू सब्जेक्ट लेने की स्वतंत्रता प्राप्त है लेकिन उर्दू भाषा की शिक्षा देने वाली एक शिक्षक के भी न होने से इन लड़कियों को उर्दू का अध्ययन करने से वंचित हैं। इस स्कूल की हेड टीचर खुद मानती हैं कि स्कूल में स्टाफ की कमी है। इसका सीधा असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ रहा है। वहीं जिम्मेदार अधिकारी खुद मानते हैं कि सरकारी स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की कमी है।