पी वी ऐक्सप्रैस वे आराम घर के क़रीब मंदिर बनाने का मंसूबा

(नुमाइंदा ख़ुसूसी) हिंदूस्तान एक जमहूरी मुल्क है, जहां मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब के मानने वाले आपस में शीर-ओ-शुक्र की तरह मिलनसारी और यकजहती के साथ सदीयों से आबाद हैं और रहेंगे। बिलख़सूस हैदराबाद तो आपसी रवादारी, इत्तिहाद और मुहब्बत की मिसाल आप है, लेकिन चंद सालों से कुछ समाज दुश्मन अनासिर(लोग) उस की अमन-ओ-सलामती की ख़ुशगवार फ़िज़ा-को मस्मूम(खराब) करने के दरपे हैं। वो नित नए हिलों, तदबीर और नापाक साज़िशों से हैदराबाद के माहौल को मुकद्दर करने की कोशिश कररहे हैं।

क़दीम इमारतों और अवामी मुक़ामात के दरमयान अपने मज़हब की निशान लगा कर यहां की अवाम में इख़तिलाफ़ पैदा करने की नापाक कोशिश कर रहे हैं। चुनांचे मह्दी पटनम से आराम घर होते हुए शमसाबाद जाने वाले ऐक्स प्रैस वी के ज़ीरीं पिलर नंबर 284 के क़रीब , विजे आनंद गार्डन के रूबरू चंद सालों से एक मुख़्तसर से हिस्से में एक फिट के पत्थर के अतराफ़ में 2 फिट जगह घेर कर इस एक फ़ीट के पत्थर की पूजा की जा रही थी।

ये तब की बात है जब सरोजनी हॉस्पिटल से आराम घर तक 11 किलो मीटर तवील(लंबी) फ़्लाई ओवर की तामीर जारी थी। इस के बाद जैसे ही ये फ़्लाई ओवर मुकम्मल हुआ और इस के नीचे की सड़क का काम चल रहा था, उस वक़्त महिकमा रोड ऐंड बिल्डिंग्स और बलदिया में मौजूद ज़हर आलूद ज़हन रखने वाले अफ़राद ने इस 2 फुट के अतराफ़ में 15×20 फिट हिस्सा छोड़ दिया और इतने हिस्सा में सड़क ना बिछा कर उन अनासिर(लोग) की मुकम्मल पुश्तपनाही की और भरपूर तआवुन(मदद) किया।

इन ही की वजह से अब चंद रोज़ कब्ल उस हिस्से को और वसीअ करके बड़े बड़े पत्थरों से घेर लिया गया और उन पर चूना डाल कर भगवा कलर करदिया गया। क़ारईन ! आप बख़ूबी जानते हैं कि ये क्या हो रहा है और आने वाले दिनों में यहां क्या होगा। हम इन शरारती लोगों के शर से वाक़िफ़ कराने के लिए आप के सामने तीन साल कब्ल और मौजूदा सूरत-ए-हाल की तस्वीरें दिखा रहे हैं ताकि हक़ीक़त सामने आजाए। क्योंकि तसावीर झूट नहीं कहतीं।

क़ारईन ! अगर ये अनासिर(लोग) अपने मंसूबामें कामयाब हो जाते हैं तो ये मसरूफ़ तरीन सड़क जो NH7 से मिलते हुए मह्दी पटनम, आराम घर, चंदरायन गट्टा और संतोष नगर को जोड़ती है, इस मसरूफ़ सड़क पर 15×20 फुट का ये हिस्सा राहगीरों के लिए दर्द-ए-सर बन जाएगा और मुख़्तलिफ़ तरह की परेशानियां उन के सामने खड़ी करदेगी और इस से किसी मज़हब को तकलीफ़ नहीं होगी बल्कि इंसान परेशानीयों और मुश्किलात से दो-चार होगा।

हादिसा का शिकार होगा, जिस से एक इंसान से लेकर इंसानों की एक बड़ी जमात परेशान होगी। लिहाज़ा मज़हब को बालाए ताक़ रख कर कम से कम इंसानियत की बुनियाद पर ऐसा काम करने वालों को एक बार फिर सोचना चाहीए कि आया उन का अमल दरुस्त है या ये सब कुछ महिकमा रोड और बिल्डिंग्स और बलदिया की साज़बाज़ से हुआ। अगर बरवक़्त ये दोनों मह्कमा जात सही फ़ैसला लेते तो नौबत यहां तक ना पहुंचती, लेकिन हिंदूस्तान में जहां मुतअद्दिद सरकारी महिकमों की कारकर्दगी पर सवालिया निशान है, वहीं अदलिया की शफ़्फ़ाफ़ियत पर अवामी एतिमाद अपनी मिसाल आप है।

चुनांचे मुल़्क की अदालत ने 29 सितंबर 2009–को दूर रस नताइज का हामिल अपना हुक्मनामा जारी करते हुए मर्कज़ी-ओ-तमाम रियास्ती हुकूमतों को हिदायत दी थी कि सरकारी अराज़ी, अवामी मुक़ामात, आम सड़कों और गलीयों पर किसी भी मज़हब की मज़ीद(और) कोई इबादतगाह तामीर ना की जाय। जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस मुकंदा कम शर्मा पर मुश्तमिल सुप्रीम कोर्ट के दो रुकनी बंच ने एसे मुक़ामात पर मौजूद मसाजिद, मनादिर, गुरुद्वारों और गिरजाघरों को हटा दिए जाने और ऐसी कोई नई तामीर पर पाबंदी आइद करने उबूरी अहकाम जारी किया था, जिस पर मर्कज़ी और तमाम रियास्ती हुकूमतों ने उसूली तौर पर इत्तिफ़ाक़ भी किया था।

इस के बावजूद अक्सर ये देखने में आरहा है कि इन मुक़ामात के दरमयान, सड़क फुटपाथ पर छोटी बड़ी मज़हबी निशानीयां क़ायम करदिए जाने का सिलसिला जारी है। पहले पत्थर, चंद रोज़ बाद 4 फिट 10 फुट का हिस्सा घेरा जाता है और देखते ही देखते पूरे मंदिर की शक्ल इख़तियार कर लेता है, जिसे कोई रोकने वाला नहीं है। महिकमा रोड ऐंड बिल्डिंग्स और बलदिया की वजह से जगह जगह सड़कों और फुटपाथों पर मज़हबी निशानों से हर मज़हब के लोगों को मुश्किल पेश आरही है।

अदालत-ए-उज़्मा के इसी फ़ैसला का सहारा लेकर 6 फ़बरोरी 2011-ए-को गवर्नर आंधरा प्रदेश को एक मकतूब दिया गया था, जिस में वज़ाहत की गई थी कि नहरू ज़वालोजीकल पार्क में एक ऐसी अंदाज़ की शरारत की गई थी कि छोटे हिस्से से तरक़्क़ी करते हुए ज़मीन के एक बड़े हिस्से को पूजा के लिए घेर दिया गया था। जब गवर्नर से नुमाइंदगी की गई तो उन्हों ने इस जगह को साबिक़ा हालत पर रहने से इत्तिफ़ाक़ किया था।

लिहाज़ा महिकमा पुलिस और स्पैशल ब्रांच को चाहीए कि वो इस से मुताल्लिक़ हक़ीक़त पर मबनी रिपोर्ट अपने आला ऑफीसरज़ को पहुंचाएं क्योंकि उस वक़्त महिकमा में चंद एसे भी दयानतदार, फ़र्ज़शनास और दूर अंदेश ऑफीसरज़ हैं, जो जमहूरीयत की असास पर ग़ैर जिनिबदाराना रवैय्या इख़तियार करते हुए किसी भी मुआमला को हल करने की कोशिश करते हैं। इन से तवक़्क़ो(उमीद) की जा सकती है कि वो मज़कूरा रोड पर की जा रही मंसूबा बंदी में शरारत पसंदों को कामयाब होने नहीं देंगे।