फर्जी मुठभेड़ में जांच के खिलाफ 700 सैनिकों की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में फर्जी एनकाउंटर को अंजाम देने वाले 700 सैन्य कर्मियों की तरफ से दाखिल की गई एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया है। इन राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार (आफ्सपा) कानून लागू है. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 15-20 साल पुराने कई केसों में आर्मी ने जांच भी नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ केसों में सीबीआई जांच का आदेश दिया है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर और यूयू ललित ने कहा, ‘अशांत क्षेत्रों में सैनिकों द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं को हम समझते हैं। इसलिए हम लोग कई बार अटॉर्नी जनरल से 15-20 साल में हुए फर्जी एनकाउंटर मामलों की जांच के लिए कह रहे हैं। जब हमने पाया कि इस मामले में कुछ भी नहीं हुआ है तो, हमने कुछ मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दिया है। खास तौर पर उन मामलों में जिनमें पहली नजर में ही हाई कोर्ट, न्यायिक आयोग और जस्टिस संतोष हेगड़े कमिशन या एनएचआरसी में फर्जी एनकाउंटर का अंदेशा होता है।’

मालूम हो कि सेना के 356 सेवारत जवानों ने ‘उत्पीड़न और मुकदमा चलाने’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. यह कदम सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के बाद उठाया गया, जिसमें उसने सीबीआई की एसआईटी को मणिपुर में गैर-न्यायिक हत्याओं में शामिल होने के आरोपी सेना के जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में केंद्र सरकार ने कहा कि सशस्त्र बल गड़बड़ी वाले इलाकों में एकदम अलग किस्म के माहौल में अभियान चलाते हैं और इसलिये संतुलन बनाने की आवश्यकता है, जिस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि आंतरिक व्यवस्था बनाना न्यायालय का नहीं सरकार का काम है ताकि इस तरह से यदि किसी की जान जाती है तो उसके मामले में उसे देखना चाहिए.

जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस उदय यू ललित की पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘इस तरह की व्यवस्था तैयार करने से आपको किसने रोका है? आपको हमारे हस्तक्षेप की आवश्यकता क्यों है? ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आपको ही चर्चा करनी होगी, न्यायालय को नहीं.’

पीठ ने टिप्पणी की, ‘जब जीवन की हानि हो, भले ही मुठभेड़ में, तो क्या मानवीय जीवन में यह अपेक्षा नहीं की जाती कि इसकी जांच होनी चाहिए.’शीर्ष अदालत ने जैसे ही कहा कि वह याचिका खारिज कर रही है, सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि उन्हें सुना जाना चाहिए क्योंकि केंद्र चाहता है कि इस मुद्दे पर बहस हो. मेहता ने कहा, ‘ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमे आतंकवाद से संघर्ष के दौरान हमारे जवानों के हाथ नहीं कांपे. उन्होंने कहा कि मानव जीवन मूल्यवान होता है और इसे लेकर कोई विवाद नहीं हो सकता.’

उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य कि हमारे देश के तीन सौ से अधिक सैनिकों का इसके लिये अनुरोध करना अपने आप में ही दुर्भाग्यपूर्ण है. इसका हतोत्साहित करने वाला असर होगा. देश यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि हमारे जवान हतोत्साहित हों. कृपया बहस को मत रोकिये.’