बचपन का खेल सेहत मंद बुढ़ापे का ज़ामिन, तिब्बी तहक़ीक़

बचपन में वो कहावत तो सभी ने सुनी होगी कि पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनूगे ख़राब मगर माहिरीन का तो कुछ और ही कहना है। जी हाँ अमेरिका और स्विटज़रलैंड के तिब्बी माहिरीन ने एक मुशतर्का तहक़ीक़ में ये इन्किशाफ़ किया है कि जो लोग अपने ज़माना-ए-तालिब इलमी के दौरान खेल कूद पर तवज्जो देते हैं वो बुढ़ापे में सेहत मंद ज़िंदगी गुज़ारते हैं।

अमेरिका की कॉर्नेल यूनीवर्सिटी और स्विटज़रलैंड के फैडरल इंस्टीटियूट आफ़ टैक्नालोजी के माहिरीन का कहना है कि जो लोग अपने स्कूल के ज़माने में मुख़्तलिफ़ खेलों में सरगर्म रहते हैं वो सत्तर साल की उम्र में डाक्टरों के पास जाने से काफ़ी हद तक महफ़ूज़ रहते हैं।

तहक़ीक़ में कहा गया है कि नौ उमरी में वरज़िश की आदत बुढ़ापे में लोगों को ज़्यादा मुतहर्रिक बनाने में मददगार साबित होती है। मुहक़्क़िक़ीन का कहना है कि आज के बच्चों में वरज़िश का शौक़ पैदा करने की अशद ज़रूरत है ताकि वो मोटापे और दीगर जिस्मानी मसाइल से बच सके।