बच्चों की किताब से करोड़ों की कमाई

स्कूल मैनेजमेंट सीबीएसई पैटर्न के मुताबिक पढ़ाई लिखाई की बात करते हैं पर एनसीईआरटी की किताब के बदले प्राइवेट की किताबों से बच्चों को सिर्फ इसलिए पढ़ाया जा रहा है ताकि मोटा कमीशन मिल सके। हाल यह है कि प्राइवेट सीबीएसई हो या आईसीएसई स्कूल हरेक में प्राइवेट किताबें ही पढ़ाई जा रही है।

इसके लिए गार्जियन को क्लास एक में दर्जन भर से ज़्यादा किताबें बच्चों के लिए खरीदनी पड़ रही हैं। जबकि एनसीईआरटी के मुताबिक क्लास एक में बच्चों को तीन से चार किताब ही पढ़ाना है। बच्चों के बस्ते पर महंगाई और कमीशन दोनों की मार गार्जियन पर पड़ी है। इस बार भी किताब की कीमत में 10 से 15 फीसद की इजाफा कर दी गई है।

गार्जियन को प्ले ग्रुप की क्लास की कॉपी-किताब के लिए दो हजार से 2300 रुपए तक देने पड़ रहे हैं। दारुल हुकूमत के ज़्यादातर सीबीएसई और आईसीएसई स्कूलों की किताब स्कूलों की तरफ से तय दुकानों में ही मिल रही हैं। इधर, गार्जियन की मजबूरी का दुकानदार भी पूरा फायदा उठा रहे हैं।

दुकानदारों को पब्लिकेशन 20 से 40 फीसद या कभी-कभी इससे भी ज़्यादा कमीशन दे रहे हैं। इसके बावजूद पब्लिकेटरों को मोटा मुनाफा हो रहा है। क्योंकि जिस किताब की लागत 100 होनी चाहिए, उसकी कीमत 180 रुपए प्रिंट किया जाता है। 48 पेज की पतली से एक किताब की कीमत 175 रुपए रखी गई है।

बाजार के जानकार बताते हैं कि इसकी लागत ज़्यादा से ज़्यादा 50 रुपए होनी चाहिए। जिस एनसीईआरटी किताब की कीमत 45 रुपए है, दीगर पब्लिकेटर एनसीईआरटी पैटर्न के मुताबिक लिख कर उसे 160 से 180 रुपए में बेचते हैं। दुकानदार भी एनसीईआरटी की किताब बेचने से बचते हैं। क्योंकि इसमें कमीशन बहुत कम मिलता है।

कॉपी भी लेना लाज़मी

कॉपियों की बिक्री में भी मनमानी की जा रही है। ब्रांडेड कंपनी की कॉपी के नाम पर 20 रुपए की कॉपियों को 30 से 40 रुपये में बेचा जा रहा है। एक अदाद के मुताबिक सिर्फ रांची के किताब दुकानदार स्कूली किताबों और कॉपियों से 15 करोड़ रुपए से भी ज्यादा कमीशन से कमाते हैं। यह रकम इससे ज़्यादा भी हो सकती है क्योंकि किताबों की कीमत लागत से बहुत ज्यादा है। नर्सरी और प्रेप के बच्चों की किताब के लिए 1500 रुपये तक लिये जा रहे हैं। क्लास थ्री से क्लास सिक्स तक के बच्चों की किताब कॉपी की कीमत ढाई से साढ़े पांच हजार रुपए तक है।

100 से ज्यादा हैं स्कूल, करोड़ों कमीशन
रांची में तकरीबन 100 सीबीएसई व आईसीएसई स्कूल हैं। स्कूल में बच्चों की तादाद दो हजार से पांच हजार तक है। दारुल हुकूमत के 50 बड़े स्कूलों में अगर औसत दो हजार बच्चे भी पढ़ते हैं, तो तकरीबन एक लाख बच्चों की तादाद हो जाती है।

एक बच्चे की औसत किताब-कॉपी की कीमत तीन हजार रुपए भी मान ली जाए, तो एक लाख बच्चों की किताब-कॉपी की कीमत 30 करोड़ रुपए होगी। इसके अलावा दीगर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी करीब 15 करोड़ की किताब-कापी खरीदते हैं। ऐसी हालत में 30 फीसद कमीशन पर दुकानदारों को 13.5 करोड़ रुपए और 40 फीसद कमीशन पर 16 करोड़ रुपए का फाइदा हो रहा है। इसी रकम में से स्कूलों को भी कमीशन दी जाती है।