बरसात में वबाई अमराज़(बिमारी) का ख़दशा ,दवा ख़ानों में हुजूम ,एहतियात की ज़रूरत

(मुहम्मद जसीम उद्दीन निज़ामी) जहां तक मौसमी बीमारियों का मुआमला है , इसमें हुकूमत और अवाम दोनों की ग़फ़लत का अमल दख़ल ज़्यादा ज़िम्मेदार होता है,कियूं के डाक्टरों के मुताबिक़ अगर इस मौसम में मूसिर एहतियाती तदाबीर इख़तियार की जाएं तो ९९ फीसदी मौसमी अमराज़(बिमारी) से बचा जा सकता है ।

नुमाइंदा सियासत ने जब इस हवाले से डाक्टर मुहम्मद रफ़ी अहमद, सुपरिन टेनडेंट निज़ामीया जनरल हॉस्पिटल चारमीनार से बात की तो उन्होंने कहा अगर मोस्सर एहतियाती तदाबीर इख़तियार ना की जाएं तो मौसम बरसात, बेशतर अमराज़(बिमारी) का सबब बन जाता है अक्सर-वबाई अमराज़(बिमारी) भी इसी मौसम में फूट पड़ते हैं जिस का बुनियादी सबब नाक़िस(खराब) डरेंज निज़ाम ,

बारिशों के पानी का कई दिनों तक जगह जगह जमा रहना ,और इस में मच्छरों का अफ़्ज़ाइश होना वगैरह शामिल है।ज़ाहिर है ये उसे अस्बाब (वजह)हैं जो रास्त हुकूमती ज़िम्मा दारीयों से ताल्लुक़ रखते हैं मगर हमेशा की तरह इस बार भी सरकारी इक़दामात रिवायती अंदाज़ में, ऐलानात , अहकामात और मंसूबा बंदी तक ही महदूद हैं

मानसून के अआग़ाज़ के बाद होने वाली बारिशों के बाद शहर के कई इलाक़ों में डरेंज निज़ाम मुतास्सिर हुआ,जिस की वजह से जगह जगह पानी जमा होगया नतीजतन मच्छरों और मक्खीयों की अफ़्ज़ाइश होने लगी है ।डाक्टर मौसूफ़ का कहना है किमौसमी अमराज़(बिमारी) में गंदगी या अदम सफ़ाई का अहम रोल होता है जो मुतअफ़्फ़िन होकर वबाई अमराज़(बिमारी) ,

जैसे मलेरिया , टाइफ़ड, मौसमी बुख़ार,यरक़ान ,हैपाटाइटिस,इस्हाल , पेचिस वगैरह का बाइस बनता है इसके इलावा पेट के अमराज़(बिमारी) जिस्म में खिचावट ,दर्द ,ख़ून की ख़राबी ,फोड़े फुंसियां ,और गले की सोज़िश ,जैसे अमराज़(बिमारी) बरसात में आम होजाते हैं ।अवाम अपने तौर जो एहतियाती तदाबीर इख़तियार कर सकते हैं,उसकी तरफ़ इशारा करते हुए उन्हों ने कहा कि इस मौसम में रिहायशी कमरों को खुला रखना चाहीए ताकि ताज़ा हवा और धूप से वो ख़ुशक रहें,

साथ ही हर हफ़्ते इन में जरासीम कुश अदवियात(दवा) का छिड़काओ करें ,गंदे पानी और कीचड़ वगैरह की सफ़ाई का फ़ौरी इंतिज़ाम करें ,मौसम बरसात में ए सी या कूलर रुम के ज़्यादा इस्तिमाल से आसाबी खिंचाओ ,दर्द ,ओर बोख़ार जैसी कैफ़ियत पैदा हो सकती है। पीने के पानी पर ख़ुसूसी तवज्जा की सलाह देते हुए उन्हों ने कहा कि , पानी हमेशा उबाल कर हि पीना लाज़िमी करलें, मौसम बरसात में बगैर उबाले पानी हरगिज़ नहीं पीना चाहीए ।

ज़ियादह अर्से से फ्रीज में रखा हुआ गोश्त और दीगर बासी एशिया-(चीजें)-हरगिज़ इस्तिमाल ना करें। उन्हों ने कहा कि जिस्म में नमकयात और हयातीन की कमी हो जाए तो उसके तदारुक के लिए लियमों नमक मिला कर इस्तिमाल करें,ए सी।हकीमों के मुताबिक़ , हैज़ा जैसी मोहलिक बीमारी से नजात के लिए सिरका में भीगी हुई प्याज़ का इस्तिमाल बहुत मुफीद है ।

बहरहाल अगर ग़िज़ाई एहतियात और हिफ़्ज़ान-ए-सेहत के उसूलों पर अमल करें तो बहुत हद तक हम इस मौसमी अमराज़(बिमारी) से महफ़ूज़ रह सकते हैं ।