बलात्कारियों को 30 दिन के भीतर फांसी पर चढ़ाए जाने के प्रधानमंत्री मोदी के दावे में कितनी सच्चाई?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को सूरत के दौरे पर थे. यहां उन्होंने एक जनसभा को संबोधित करते हुए अपनी सरकार से जुड़ी कई उपलब्धियों की चर्चा  की और विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस पर निशाना साधा. इसी दौरान उन्होंने यह दावा किया कि अब भारत में तीन दिनों से लेकर तीस दिनों के भीतर ही बलात्कार के दोषियों को फांसी दे दी जाती है. यहां मोदी का कहना था, ‘इस देश में बलात्कार पहले भी होते थे और आज भी ऐसी दुखद घटनाएं सुनने को मिलती हैं, लेकिन आज अपराधियों को 3, 7, 11, 30 दिन में फांसी होती है…’

प्रधानमंत्री मोदी के इस दावे पर कल से ही सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं. वहीं सार्वजनिक मुद्दों और चर्चित बयानों से जुड़े तथ्यों की पड़ताल करने वाली वेबसाइट फैक्टचैकर ने भी प्रधानमंत्री मोदी के इस दावे को परखा है. इसके मुताबिक मोदी का यह दावा पूरी तरह गलत है और यह सिर्फ इस तथ्य से पता चल जाता है कि भारत में बलात्कार के मामले में बीते 15 सालों के दौरान किसी को फांसी पर नहीं चढ़ाया गया है. आखिरी बार 2004 में धनंजय चटर्जी को बलात्कार के मामले में फांसी दी गई थी और इस घटना की देशभर में चर्चा भी हुई थी.

वेबसाइट की पड़ताल यह भी बताती है कि 2018 में 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन हिंसा के मामले (जहां हत्या नहीं हुई थी) में नौ लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है. केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2018 में एक अध्यादेश के जरिए 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार करने वालों को मौत की सजा का प्रावधान किया था. इसके बाद अगस्त में संसद ने संबंधित कानून में संशोधन को मंजूरी दे दी थी.

वहीं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली की एक रिपोर्ट के मुताबिक यौन हिंसा और हत्या के अपराध में निचली अदालतों ने बीते साल 58 लोगों को फांसी की सजा सुनाई है. 2017 के मुकाबले यह संख्या 35 प्रतिशत और 2016 के मुकाबले सीधे-सीधे दो गुनी है.

हालांकि इसके साथ रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2013 में जहां बलात्कार के 27.10 प्रतिशत मामलों में आरोपितों को दोषी सिद्ध किया जा सका था तो वहीं बीते साल यह आंकड़ा 25.50 प्रतिशत रहा. राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के सबसे ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2016 में बलात्कार के कुल 38,947 मामले दर्ज हुए थे. यानी 107 मामले हर रोज. लेकिन उस साल चार में से सिर्फ एक मामले में आरोपित को दोषी साबित किया जा सका और यह संख्या 2013, 2014 और 2015 के मुकाबले कम थी.