बाबरी विवाद : यूपी सरकार ने किया फारूकी केस का विरोध, जानें क्या है पूरा मामला

अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के मामले में बड़ी बेंच को सौंपने को लेकर हुई सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच गई है। सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस में की गई टिप्पणियों के कारण उनका केस प्रभावित हो गया जिसके कारण ट्रायल कोर्ट (लखनऊ हाईकोर्ट) ने विवादित स्थल के तीन हिस्से कर दिए। मामले की सुनवाई 13 जुलाई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और एसए नजीर की विशेष पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

आठ वर्षाें से आपत्ति क्यों नहीं की

यूपी सरकार ने इसका विरोध किया और कहा कि फारूकी केस का1994 में आया था वहीं इस मामले में की अपीलें पिछले आठ वर्ष से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। लेकिन मुस्लिम पक्ष ने कभी इस पर आपत्ति नहीं की। जब मामले की अंतिम सुनवाई होने लगी तो उन्होंने अचानक फारूकी केस का मुद्दा उठा दिया। राज्य सरकार के वकील एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि इससे मुस्लिम पक्ष के इस रुख पर सवाल खडे़ होते हैं। स्पष्ट तौर पर यह मामले के निपटारे में देरी करने का प्रयास है। उन्होंने पीठ से कहा कि इस मुद्दे पर उन्हें नहीं सुना जाना चाहिए और बड़ी बेंच को भेजने का आग्रह खारिज कर देना चाहिए। पहले से निर्णित फैसले को दोबारा नहीं सुना सकता।

केस प्रभावित हुआ

सुनवाई के दौरान पीठ के एक जज जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर ने कहा कि ट्रायल कोर्ट फारूकी केस के पैरा 82 से प्रभावित हुआ है। हालांकि अन्य दो जजों ने उनके रुख से सहमति नहीं जताई। जस्टिस नजीर ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि यह धार्मिक रूप से संवेदनशील और गहराई का मामला है। और अब अपीलों में यह मामला हमारे सामने आया है।

फारूकी केस

फारूकी केस (1994) में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसले के पैरा 82 में कहा था कि मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं है और नमाज कहीं भी, यहां तक कि खुले मैदान में भी पढ़ी जा सकती है। यह फैसला अयोध्या में विवादित स्थल को केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत करने की कार्रवाई को दी गई चुनौती के मामले में आया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल के 2.77 एकड़ क्षेत्र का केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहण सही ठहराते हुए कहा था कि विवादित स्थल के मालिकाना हक के बारे में पहले से लंबित दीवानी मुकदमे हाईकोर्ट निपटाए।

संतुष्ट करना होगा

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को हमें इस बात से संतुष्ट करना है कि फारूकी केस में की गई टिप्पणियां सही नहीं थीं और उनका कोई आधार नहीं था। न ही उनके बारे में कोर्ट ने कोई नजीर या कारण दिए थे। उन्होंने कहा कि यदि पीठ इस बात से संतुष्ट हो जाती है तो मामले को बड़ी पीठ को भेजा जा सकता है।

नमाज इस्लाम का हिस्सा है क्या

इस मामले में जस्टिस अशोक भूषण ने पूछा कि मस्जिद इस्लाम का हिस्सा है लेकिन क्या नमाज मस्जिद में ही पढ़ना इस्लाम का हिस्सा है। मुस्लिम पक्ष की ओर से बहस कर रहे अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद आवश्यक है। इसलिए यह इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने कहा कि फारूकी केस के कारण देश में मस्जिदों के मामले खराब हो गए। इसके उन्हें विवादित स्थल का तीसरा हिस्सा दिया गया।

सामूहिक नमाज कहीं भी हो सकती है

इसके जवाब में जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा कि ऐसा नहीं है। मस्जिद को अल्लाह का घर नहीं माना जाता है। हदीस में साफ लिखा है कि सामूहिक नमाज कहीं भी खुले में पढ़ी जा सकती है। फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां इन्हीं आधार पर हैं जिसके लिए विस्तृत कारण देने की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि ब्रिटिश काल से लेकर फारूकी और नाथद्वारा मंदिर केस में यह कई बारे दोहराया जा चुका है।