बीजेपी नेताओं के साथ लालू यादव की सीक्रेट मीटिंग से बढ़ी थीं नीतीश की चिंताएं

सूत्रों का कहना है, ‘लालू वापस जेल जाने के लिए तैयार थे. उन्हें अपने बेटों पर भ्रष्टाचार के आरोप में चार्जशीट होने का डर था, जिन्होंने इसी राज्य में विधानसभा चुनाव से राजनीतिक करियर की शुरुआत की है.’
बीजेपी से लालू का मिलना दरार की वजह 
नीतीश की कोर टीम का​ हिस्सा माने जाने वाले एक नेता का कहना है कि नीतीश कुमार, लालू के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला फिर से खुलने के बाद भी चुपचाप गठबंधन चलाने को तैयार थे. लेकिन, लालू यादव का खुद बीजेपी नेताओं से मिलना गठबंधन के ताबूत में आखिरी कील थी.

सूत्र ने बताया, ‘इस परेशानी की शुरुआत तब हुई जब लालू और उनके करीबी व राजद सांसद प्रेम चंद गुप्ता, मोदी सरकार के कुछ नेताओं से मिले. ज्यादातर तो गुप्ता ही बीजेपी नेताओं से मिले लेकिन कभी—कभी लालू भी साथ गए थे. इस तरह मिलने का मकसद लालू के परिवार के खिलाफ चल रही जांच को बंद कराना था. फिर चाहे यह बिहार सरकार की कीमत पर ही क्यों न संभव हो. लालू यादव नीतीश कुमार को धोखा देने के लिए पूरी तरह तैयार थे.’

नीतीश के एक विश्वासपात्र ने दावा किया की नीतीश कुमार 2015 में नाटकीय रूप से बने इस गठबंधन से बाहर निकलने के मौके का इंतजार कर रहे हैं. एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देना इस दिशा में पहला कदम है.

10 दिन या हफ्तों में टूट सकता है गठबंधन
एक और सूत्र ने जानकारी दी, ‘यह अलग मसला है कि बीजेपी ने लालू यादव के प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं है. अगर वह सफल रहते तो नीतीश को अपनी मिस्टर क्लीन की इमेज के साथ—साथ राजनीतिक ताकत में भी नुकसान होता.’ 243 सदस्यों की बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार की जदयू के पास 71, आरजेडी के पास 80 और बीजेपी के पास 53 सीटें हैं.

सूत्रों के मुताबिक लालू यादव इस आधार पर फायदा लेना चाहते थे कि नीतीश ने बीजेपी के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. साथ नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी का भी विरोध किया था. हालांकि, बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं हुई क्योंकि उसे लालू की दागी छवि के साथ कोई राजनीतिक फायदा नहीं दिखा.

एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘इस समय बिहार सरकार मेकेनिकल तौर पर काम कर रही है. यह 10 दिनों या 10 हफ्तों में गिर सकती है. यह बस समय-समय की बात है. बस देखना है कि कौन-सी बात आखिरी फैसले तक पहुंचाती है. ‘