भीमा-कोरेगांव: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘पुणे पुलिस की ओर से जुटाए गए सुबूत पर्याप्‍त नहीं’

भीमा कोरेगांव साजिश और शहरी नक्‍सली मामले में हुई पांच गिरफ्तारियों पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने पांचों आरोपियों की नजरबंदी जारी रखते हुए 19 सितंबर को अगली सुनवाई का आदेश दिया है।

मामले में याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा ‘हम केवल मामले की स्वतंत्र जांच चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है, इसलिए हम सीधे सुप्रीम कोर्ट आए हैं।

उन्‍होंने कहा कि कुछ केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी स्वतंत्र जांच का आदेश अपनी निगरानी में दिया है। हम भी वही चाहते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करें. वर्तमान याचिका को वापस ले सकते हैं। तब तक सुप्रीम कोर्ट अपने अंतरिम आदेश को जारी रख सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुणे पुलिस की ओर से जुटाए गए सुबूत पर्याप्‍त नहीं होने की स्थिति में मामले की जांच SIT को सौंपी जा सकती है। बुधवार को होने वाली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को 45 मिनट और बचाव पक्ष के वकील को 15 मिनट में दलीलें पूरी करने को कहा है। इसी बीच पांचों एक्टिविस्ट पुराने आदेश के मुताबिक हाउस अरेस्ट रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी मामलों को एक हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर देते हैं। आप कह रहे हैं कि केस में आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, अगर नहीं हैं तो वे रिहा हो ही जाएंगे।

अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कुछ ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि यह केस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के षड्यंत्र का है, जबकि एफआईआर में इसका कोई जिक्र नहीं है। अगर मामला उक्त गंभीर आरोप से संबंधित है तो इस मामले में सीबीआई या एनआईए द्वारा जांच क्यों नहीं कराई जा रही?

उधर, महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ये याचिका खारिज की जाए क्‍योंकि यह आपराधिक मामला है। इसमें आरोपी को ही कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है लेकिन यहां तीसरे पक्ष ने दायर की है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि हमने इस मामले में लिबर्टी के मूल के कारण सुनवाई की है।

निष्पक्ष जांच जैसे मुद्दे बाद में आएंगे। पहले आरोपियों को निचली अदालत से राहत मांगने दीजिए। तब तक हाउस अरेस्ट रखने का हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है। लेकिन सिंघवी ने इसका विरोध किया और कहा कि कोर्ट को उनकी बात सुननी चाहिए।