महिला उत्पीड़न: शासन प्रशासन के ग़ैरज़िम्मेदार रवय्ये के साथ,हमारा समाज और मानसिकता भी ज़िम्मेदार

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वर्तमान समय में यदि नारियों के हालात पर नज़र डाली जाये तो हाल ये है की “नारियों के जो हालात बताने लगेंगे ,तो पत्थर भी आंसूं बहाने लगेंगे ,कहीं भीड़ में खो गयी इंसानियत ,जिसे ढूँढने में ज़माने लगेंगे |” यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता वाले इस देश में टीवी चेनल्स और अखबारों पर नज़र डाली जाये तो आधे से ज़्यादा अखबार महिला शोषण और अत्याचारों से भरे पड़े हैं |
महिलाओं के साथ हो रहे इन हादसों को देख कर मन व्यथित है | कैसी विडंबना है की नारी सशक्तिकरण और नारी मुक्ति के जितने दावे किये जा रहे हैं उतना ही नारी शोषण और अत्याचारों की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है | नारी सशक्तिकरण की जब भी बात आती है , कहा जाता है कि नारी को शोषण और अत्याचार से मुक्त करना है तो सब से पहले उसको शिक्षित करना होगा |
शिक्षा का अर्थ सिर्फ अक्षर ज्ञान नही बल्कि जीवन के हर पहलु को समझना होगा जिससे कि वो अपने अधिकारों के लिए जागरूक हो | परन्तु मौजूदा हालत पर नज़र डाले तो पिछड़ी और अशिक्षित महिलाओं की बात तो दूर जो शिक्षित महिलाएं हैं उन्हें निजी से लेकर सार्वजनिक जीवन में, सरकारी और निजी सेवाओं में , खेल मीडिया और राजनीती जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं उत्पीड़न और शोषण का शिकार हैं |सबसे अधिक चिंता की बात ये है की जिन महिलाओं को समाज में महिलाओं के शोषण और अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया जाता है , वे स्वयं शोषण और उत्पीड़न जैसी ज्यादतियों का शिकार हैं | भारतीय पुलिस सेवा .भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा सेवाओं में महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न की घटनाएँ आये दिन सामने आती रहती हैं |
देश में राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग जैसी संस्थाओं को पर्याप्त अधिकार और संसाधन उपलब्ध कराए गये हैं ,इसके बावुजूद आज भी कई महिलाएं न्याय के लिए मुंह तकती सी रह जाती हैं | देश में इस तरह के शोषण और अत्याचार के ख़िलाफ़ कानून भी है परन्तु फिर भी क्या कारण है कि ऐसी घटनाओं में दिन –ब-दिन जो वृद्धि होती जा रही है? दरअसल इसके लिए शासन प्रशासन का ग़ैरज़िम्मेदार रवय्या तो दोषी है ही साथ में हमारा समाज और मानसिकता भी बेहद ज़िम्मेदार है | कमी हमारी व्यवस्था और सोच में भी है | क्यूंकि अधिकतर ऐसी घटनाओं के बाद एक तरफ जहाँ कुछ राजनेताओं के ग़ैरज़िम्मेदार ब्यान अपराधियों के हौसले बुलंद करते हैं ,तो दूसरी तरफ हमारा समाज अपराधी को अपराधी न मानकर पीडिता को ही दोषी मान लेता है | जिसके कारण समाज और अदालत में होने वाली बदनामी और परिवार की प्रतिष्ठा के नाम पर अधिकतर ऐसी मामलों को दबा दिया जाता है | यदि कोई महिला अपने ऊपर होने वाले अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठती है तो उसे डरा धमका कर चुप करा दिया जाता है |
पीड़िता के चरित्र पर ही सवाल खड़े किये जाते हैं हमारा कानून पीड़िता को सुरक्षा कम देता है ,भयभीत अधिक करता है | दूसरी और अपराधी अपने रसूख और पैसों के बल पर कानूनी शिकंजे से बच निकल जाता है | क्यूंकि कानून में बच निकलने के सरे रास्ते बकायदा मौजूद हैं | इस प्रकार की घटनाओं में वृद्धि का एक प्रमुख कारण ये भी है की आज जिस तरह से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में महिला को जिस तरह से किसी भी वस्तु और विज्ञापन के प्रचार और प्रसार के नाम पर देह प्रदर्शन के द्वारा एक भोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है उससे समाज में महिलाओं के प्रति विकर्ष्ण पैदा होता है और गन्दी मानसिकता पनपती है | जिसके कारण बलात्कार अत्याचार और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं में वृद्धि हो रही है | और भी कई कारण है जैसे की लड़कियों को बचपन से ही दोयम दर्जे का समझना और मूल्य शिक्षा और अच्छे संस्कार का अभाव भी इस तरह की घटनाओं में दिन-ब-दिन वृद्धि के कारण हैं | यही वजह हैं की इतने सामाजिक सुधार आन्दोलनों के बावजूद भी ये समस्या एक चुनौती पूर्ण समस्या बनती जा रही है |
इतनी गंभीर समस्या होने के बाद भी हमारी सरकार इसे निरंतर अनदेखा कर रही है | कहते हैं कि जो बीत गया उसे बदला नहीं जा सकता लेकिन जो बदल सकता है उसके बारे में सोचना आवश्यक है |इसलिए इस चुनौती पूर्ण समस्या के लिए किसी एक व्यक्ति या विशेष को नही बल्कि सम्पूर्ण मानव समुदाय को आना होगा | जो कमी हमारी व्यस्था और सोच में है उसमे सुधार करना होगा तभी इस तरह की घटनाओं में कमी हो पायेगी |
सर्वप्रथम तो जब भी ऐसी घटना घटती है तो इस अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ ज़रुर उठाई जाये क्योंकि अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना पीड़ित पक्ष की नैतिक ज़िम्मेदारी है | ऐसे मामलों में सम्बंधित महिला का नाम गोपनीय रखते हुए न्यायिक प्रकिया जल्दी शरू की जानी चाहिए | क्यूंकि न्यायिक प्रकिया जल्दी शुरू करने से पीड़ित पक्ष भावनात्मक रूप से मज़बूत होगा | समाज की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए की पीड़िता को भावनात्मक सपोर्ट दी जाये जिस से की वो अपनी लड़ाई मज़बूती से लड़े| दूसरी और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नारी की भूमिका में पर्याप्त सुधार करके ,पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण न करते हुए भोगवादी प्रवर्ति को समाप्त करके ऐसा वातावरण बनाना होगा ,जहाँ नारी को सम्मान की नज़र से देखा जाये | बालिकाओं को समानता का अधिकार देते हुए आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाये |
आत्मरक्षा प्रशिक्षण को शिक्षा का एक अहम् हिस्सा बनाया जाये | बच्चों को बचपन से ही ऐसे संस्कार दिए जाएँ जिस से की वो स्त्री की इज्ज़त करना सीखे | और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी | आर्थिक सबलता और आत्मनिर्भर होने के लिए सपनो को पूरा करते हुए ,समाज में जो इंसानी वेश में भेड़िये घूम रहे हैं हैं , उनको पहचान कर उनसे सावधान रहना होगा और साहस के साथ इनका सामना करते हुए ये बताना होगा कि नारी अबला नहीं है | यदि वो शोषण और अत्याचार के ख़िलाफ़ संघर्ष पर उतर आये तो दुनिया बदल सकती है | जब हम खुद अपनी लड़ाई लड़ेंगे तभी तो क़ानून और समाज हमारा साथ देगा ,क्योंकि दुनिया में इंसानियत आज भी जिंदा है |

By Farhana Riyaz