मिलिए पश्चिमी देशों में कला के जरिए मुस्लिम औरतों की प्रतिनिधित्व करने वाली आज्जा सुलतान से

यूरोप में इन दिनों एक मुस्लिम अज्जा सुलतान लड़की की काफी चर्चा है। अज्जा मूलरूप से मलेशिया की रहने वाली हैं और अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में रहती हैं। वह लगातार एक देश से दूसरे देश की तरफ बढ़ रही है और कला के जरिए अपने विचारों को रख रही हैं।

सलतान कहती हैं कि वो न्यूयॉर्क कुछ सपने लेकर अमेरीका आई थीं। लेकिन यहाँ आकर उनके नजरिए में काफी बदलाव आया। खासकर इस मामले में कि वो अपने परिवार से दूर रहती है और एक ऐसी दुनिया में सफ़र कर रही है जो तेजगति से लगातार बढ़ रही है। सुलतान कहती हैं कि इससे में उनके विश्वासों और रचनात्मकता को की मजबूती मिली है।

सुलतान कहती हैं कि कला और धर्म एक ऐसा चीज हैं जिस पर वो विश्वास कर सकती हैं और उसे सुरक्षित रख सकती है। यही वजह है कि उन्होंने अपनी कला के लिए धर्म के विभिन्न पहलुओं को छुआ और उसे उजागर करने का ठानी। वह कहती हैं कि मैं अपनी कला का इस्तेमाल समाज में लोगों की भावनाओं और निराशाओं को व्यक्त करने के लिए करती हैं।

सुलतान बताती हैं कि उन्हें कला के लिए यह जुनून बचपन से ही था। जब वो बच्ची थीं तब से कला के प्रति उनका लगाव बढ़ा। शुरू-शुरू में वो अपने चित्रों में छोटी कहानियां बनाकर पेश करती थीं। फिर उन्होंने वास्तविकता और चित्रकला को चित्रित करना शुरू किया ताकि वो खुद को एक कलाकार के तौर पर साबित कर सकें। लेकिन फिर उन्हें एहसास हुआ कि इसके लिए और भी बहुत कुछ है। वो चाहें तो कढ़ाई और मिश्रित मीडिया जैसे अन्य कलाओं का प्रयोग कर सकती हैं ताकि उनके विचार स्पष्ट हो सकें।

सुलतान ने अभी वीडियो पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है। इसके जरिए वो कलात्मक वातावरण और स्थान बना रही हैं जिसके जरिए वो अपनी बातों को लोगों के सामने रख सकें।

उन्होंने अपने चित्रों का एक संग्रह शुरू किया है जिसका नाम रखा है ‘वी आर नॉट सेम’ यानी ‘हम समान नहीं हैं’। सुलतान कहती है कि यह मेरा मुस्लिम महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने वाला पहला संग्रह है। उन्होंने कहा की लोगों को इस्लाम के बारे में कई सवाल और गलतफहमियां है। वो कहती हैं कि उनकी ये कलाकृतियां मुस्लिम महिलाओं की विविधता को दिखाने का एक माध्यम था।

वो पूछती हैं कि क्या मैं अब आधुनिक हूं? मुझे यकीन है कि हम में से ज्यादातर लोगों ने इस सवाल से उन लोगों का मजाक उड़ाया है जो हिजाब पहनते हैं। वो सोचते हैं कि हमारे पास मध्ययुगीन विचार वाले लोग हैं और आधुनिक नहीं हैं।

एक तरह से मुस्लिम महिलाओं के ऊपर अत्याचार, भोली, पारंपरिक, पिछड़े विचार वाली होने का लेबल लगा गया है। यही वजह है कि मैंने अपने संग्रह में हास्य और व्यंग्य की मदद ली और कला के जरिए इन भांतियों के गलत शाबित करन का फैसला किया।

सुलतान बताती हैं कि उन्होंने रॉय लिंचनस्टाइन, जैस्पर जॉन और एंडी वारहोल से परामर्श कर अपने इस शैली को अपनाया। इस आधुनिक शैली में मुस्लिम महिला की पेंटिंग करके वो दुनिया से सवाल पूछ रही है: क्या मैं अब आधुनिक हूं?

इसके आगे वो कहती हैं कि उन्होंने ‘होम स्वीट होम’ के के जरिए एक अमेरिकी मुस्लिम महिला होने का मतलब समझाना चाहती हैं। वो कहती हैं कि इसके लिए उन्होंने संयुक्त राज्य की मुस्लिम महिलाओं से नीले, सफेद और लाल स्कार्फ को एकत्र किया।

अमरीका में पैदा हुए इस महिलाओं के स्कार्फ्स से उन्होंने एक अमेरिकी झंडा बनाया और बताया कि कैसे अलग-अलग लोगों और विश्वासों से इस देश का निर्माण हुआ है। स्कार्फ को एक-एक टुकड़ा अलग-अलग पृष्ठभूमि की कहानियों को व्यक्त कर रहा था।

सुलतान कहती हैं, “मुसलमान एक चौराहे पर हैं जहां उन्हें अपने विश्वासों को छिपाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। एक अमेरिकन होने के लिए या उसमें फिट होने के लिए मुसलमानों को सिखाया जाता है कि वो पूरी तरह खुद को धर्मनिरपेक्ष घोषित करें। उनके मुताबिक, हमारा इस्लामिक मूल्य अमेरिकी मूल्यों से मेल नहीं खाते।”

वो कहती हैं कि ‘होम स्वीट होम’ विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों से समाज का प्रतीक है। इसमें एक मुस्लिम होने का आम विचार साझा किया जा रहा है और बताया जा रहा है कि वे भी एक अमेरिकी हैं।

सुलतान कहती हैं, “इस ध्वज को बनाने से पहले मैंने अपने दृष्टिकोण को मजबूत कर लिया था कि एक मुसलमान होने के चलते कोई भी व्यक्ति कम अमेरिकी नहीं होता। दूसरे शब्दों में कहें तो विश्वास और जातीयता दो अलग-अलग चीजें हैं।”

सुलतान कहती हैं कि वह आप अपने को जैसा बनाना चाहते हैं वैसा ही बनते हैं। मैं खुद को पहचानने के लिए संघर्ष कर रही हूं। एक समाज का एक हिस्सा होने के बावजूद अब भी हमें एक बाहरी व्यक्ति माना जाता है।

किसी देश की परंपराएं उस देश में रहने वाले लोगों के लिए कोई ‘सामान्य’ चीज नहीं हो सकती हैं। सुलतान कहती है कि उनकी कला का मकसद संस्कृति और जातीय पृष्ठभूमि वाले विचारों का उपयोग कर मुस्लिमों के भीतर चल रहे अंतर्कलह को सामने लाना है। वो कहती हैं कि इंशाअल्लाह एक दिन उन्हें इसमें जरूर कामयाबी मिलेगी।