मुल्क की आज़ादी और दस्तूर साज़ी में मुसलमानों का अहम रोल

ख़ानापूर 27 जनवरी: ख़ानापूर में यौमे जमहूरीया तक़ारीब का जोश-ओ-ख़ुरोश के साथ इनइक़ाद अमल में आया। मुस्तक़र में सरकारी-ओ-ख़ानगी स्कूलस-ओ-कॉलेजस, सरकारी दफ़ातिर के अलावा मुख़्तलिफ़ सियासी-ओ-समाजी तन्ज़ीमों के क़ाइदीन-ओ-कारकुनों ने अपने दफ़्तर में क़ौमी पर्चम लहराया। यौमे जमहूरीया के मौके पर मुदर्रिसा इस्लामीया दारुल-उलूम सदीक़ीह ख़ानापूर में मौलवी मुहम्मद जाफ़र ने क़ौमी पर्चम लहराया। इस मौके पर मौलाना मुबश्शिर आलम ख़ान ख़तीब मस्जिद उम्र करोटला ने मुदर्रिसा के असातिज़ा-ओ-तलबा से ख़िताब करते हुए यौम जमहूरीया पर तफ़सीली रोशनी डाली और कहा कि हमारे लिए आज का दिन इंतेहाई अहम यानी ख़ुशी का दिन है।

उन्होंने कहा कि मुल्क की आज़ादी के बाद मुल्क के लिए दस्तूर की ज़रूरत थी, जिसके लिए हमारे उल्मा और क़ाइदीन ने बर्तानिया के दस्तूर की मुख़ालिफ़त करते हुए मुल्क की दस्तूर साज़ी के लिए काफ़ी जद्द-ओ-जहद की, तब जाकर 26 जनवरी 1950 को मुल्क का दस्तूर बना और हमारा मुल़्क हिन्दुस्तान एक जमहूरी मुल्क क़रार पाया। मुल्क के दस्तूर में हमको हर तरह से हक़ आज़ादी हासिल है।

उन्होंने कहा कि इस मुल्क की आज़ादी की ख़ातिर हमारे इस्लाफ़ ने अपनी जान-ए-अज़ीज़ की क़ुर्बानियां दी हैं, हम कैसे इस मुल्क के दूसरे दर्जा के शहरी हो सकते हैं?। मौलाना ने कहा कि हम जिस तरह आरएसएस से नफ़रत करते हैं, इसी तरह आई एसआईएस (दाश) से भी नफ़रत करते हैं, इस लिए कि दीन इस्लाम में दहश्तगर्दी की कोई गुंजाइश नहीं है। मज़हब इस्लाम दहश्तगर्दी की सख़्त मुख़ालिफ़त और मज़म्मत करता है।