मुल्क के अवाम ग़िज़ाई आज़ादी से भी महरूम:दुष्यंत दावे

हैदराबाद 03 अक्टूबर: मुल्क में फैल रही मुनाफ़िरत रोकने ज़रूरी हैके दस्तूर की दफ़ा 21 के तहत हिन्दुस्तानी शहरीयों को हासिल तहफ़्फ़ुज़ ज़िंदगी-ओ-आज़ादी को यक़ीनी बनाया जाये।

मंथन नामी तंज़ीम की तरफ से शहर में मुनाक़िदा मंथन सम्वाद से ख़िताब के दौरान दुष्यंत दावे सदर बार कौंसिल सुप्रीमकोर्ट आफ़ इंडिया ने ये बात कही।

उन्होंने बताया कि मुल़्क एक एसे दो-राहे पर पहूंच चुका है जहां इन्सान को अपनी ग़िज़ाई आज़ादी से भी महरूम होना पड़ रहा है। दावे ने बताया कि दस्तूर से आगही अवाम के लिए ज़रूरी है।

उन्होंने ग़िज़ाई आदात-ओ-अत्वार को शख़्सी मुआमले क़रार देते हुए कहा कि अगर कोई वेजिटेरियन के साथ बैठ कर एक ही टेबल पर गाय का गोश्त भी इस्तेमाल करता है तो इस पर एतेराज़ नहीं किया जाना चाहीए।

दावे ने कहा कि अगर अक़लियतों पर हमलों का सिलसिला जारी रहा तो मुल्क में मौजूद अक़लियतों की बर्दाश्त का माद्दा ख़त्म हो जाएगा।

उन्होंने बताया कि अगर हिन्दुस्तान में दस्तूर की दफ़ा 21 के तहत शहरीयों को इख़्तियारात-ओ-तहफ़्फ़ुज़ की ज़मानत इबतेदा से दी जाती तो मुल्क के मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर हुए फ़सादाद को रोका जा सकता था और सबसे अहम 2002 अहमदाबाद-ओ-गुजरात नहीं होता।

उन्हों ने बताया कि आज भी गुजरात में अक़लियतें मज़लूमियत की ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं। मंथन सम्वाद में दानिशवरों और मुख़्तलिफ़ शोबा-ए-हयात से ताल्लुक़ रखने वाली अहम शख़्सियतों ने दुष्यंत दावे के ख़्यालात से इत्तेफ़ाक़ भरपूर किया और उनके ख़्यालात की ज़बरदस्त तारीफ की गई।