मुसलमानों की सियासी-ओ-मसलकी बुनियाद पर तक़सीम का अमल शुरू

हैदराबाद 24 मई: भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्रा और आसाम में सेक्युलर वोट की तक़सीम के तजुर्बा की बुनियाद पर ये दावे करना शुरू कर दिया है कि उतर प्रदेश में भी बीजेपी इक़तिदार हासिल करेगी।

उतर प्रदेश में जो सूरते हाल पैदा हो रही है उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि कौन किस के लिए काम कर रहा है और कौनसी ताक़तें किस जमात को मुस्तहकम करने की कोशिश में मसरूफ़ हैं। बीजेपी ना सिर्फ सेक्युलर वोट तक्सीम करने में मसरूफ़ है बल्कि मुस्लिम वोट को मुख़्तलिफ़ बुनियादों पर तक़सीम करने की मन्सूबा साज़ी कर चुकी है और इस मन्सूबा साज़ी में भारतीय जनता पार्टी को किन गोशों की मदद हासिल है ये बात भी अयाँ हो चुकी है लेकिन बिहार में भारतीय जनता पार्टी और दरपर्दा हलीफ़ जमात को हासिल हुई ज़िल्लत आमेज़ शिकस्त के बाद हिक्मत-ए-अमली में मामूली तबदीली के ज़रीये ना सिर्फ सियासी तौर पर सेक्युलर वोट तक़सीम करने की कोशिश की जा रही है बल्के मुसलमानों को मसलक के ख़ानों में तक़सीम करते हुए उस का सियासी फ़ायदा हासिल करने की कोशिशें भी उरूज पर हैं।

बिहार में जो सूरत-ए-हाल पैदा हुई थी उस वक़्त बिहार के अवाम ने अपने सियासी शऊर का सबूत दिया था और ये सूरते हाल ने मग़रिबी बंगाल आसाम ट‌मिलनाडु में सियासी साज़िशों में शामिल लोगों के ख़ाबों को चुकनाचूर कर दिया जबकि मग़रिबी बंगाल में मुसलमानों की पसमांदगी दूर करने का ख़ाब सजाये ये एलान नाम निहाद मुस्लिम हमदर्दों की तरफ से 2009 से किया जा रहा था कि हम मग़रिबी बंगाल में मुसलमानों की आवाज़ बनेंगे लेकिन 2011में भी बंगाल याद नहीं आया और ना ही अब जबकि महाराष्ट्रा और बिहार का तजुर्बा हो चुका था उस के बावजूद 2016 में भी बिहार के मुसलमानों की पसमांदगी याद नहीं आई उस की वजूहात का ब-आसानी अंदाज़ा किया जा सकता है लेकिन अब उतर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कामयाबी के दावओं से एसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ने आसाम के तर्ज़ पर दरपर्दा हलीफ़ तीर कर लिया है जो उतर प्रदेश में ना सिर्फ सियासी तौर पर मुसलमानों को तक्सीम करने में अहम किरदार अदा करेगा बल्के एसे गोशे भी तैयार कर लिए गए हैं जो मसलक की बुनियादों पर मुस्लिम वोट को मुनक़सिम करने में कलीदी किरदार अदा करेंगे। बीजेपी की साज़िशी ज़हनीयत किस तरह से मुल्क की सियासत पुर-असर अंदाज़ हो रही है इस का जायज़ा लिया जाये तो ये बात सामने आएगी कि फ़िर्क़ापरस्तों को मुस्तहकम बनाने के लिए फ़िर्क़ापरस्त ही मददगार साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं बल्के दो तरफ़ा फ़िर्कापरस्ती को हवा देते हुए मज़हब के नाम पर अवाम को तक़सीम करने का काम जो लिया जा रहा है वो सब पर अयाँ है कि कौन महाराष्ट्रा में मददगार साबित हुआ और किसे बिहार में ख़िफ़्फ़त उठानी पड़ी। आसाम में भाई के भरोसा मदाख़िलत ना करने वालों के ताल्लुक़ात सदर बीजेपी से किस हद तक बेहतर है ये आसाम के अलावा यहां के भाई भी जानते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के मन्सूबा साज़ गिरोह ने जो नागपुर से काम करता है इस बात पर हैरत-ज़दा था कि महाराष्ट्रा में कामयाब हुई हिक्मत-ए-अमली बिहार में क्युं नाकाम हुई और वही हिक्मत-ए-अमली आसाम में कैसे कामयाब हो गई?
इस मसले पर इस गिरोह ने जायज़ा मीटिंग मुनाक़िद करने के बाद उतर प्रदेश में कामयाबी के दावे करने शुरू कर दिए हैं।

बावसूक़ ज़राए से मौसूला इत्तेलाआत के मुताबिक महाराष्ट्रा और बिहार में सिर्फ सेक्युलर वोट की सियासी तक़सीम की हिक्मत-ए-अमली तैयार की गई थी महाराष्ट्रा के नताइज ने बिहर के अवाम को चोकन्ना कर दिया था लेकिन आसाम में अवाम पर-बिहार के नताइज का असर ना होने की बुनियादी वजह बदरुद्दीन अजमल की सियासी जमात है जिसने चुनाव से पहले बुलंद बाँग दावे करते हुए सेक्युलर महाज़ की तशकील में रुकावट पैदा की और उनके इन दावओं के बीच एक गोशे की तरफ से मसलकी शिद्दत पसंदी को हवा देते हुए दो तरफ़ा वार किया गया जिसके बीजेपी के हक़ में बेहतर नताइज बरामद हुए।

इन नताइज ने बीजेपी के मन्सूबा साज़ गिरोह के हौसलों में इज़ाफ़ा किया है और वो उतर प्रदेश के मुजव्वज़ा चुनाव में सेक्युलर वोट की तक़सीम के लिए दर-पर्दा हलीफ़ों का इस्तेमाल करने के साथ साथ मसलकी इख़तेलाफ़ात को हवा देने की मंसूबा बंदी भी कर रहे हैं। आसाम में मुक़ामी मदद हासिल होने के सबब हैदराबाद की सिम्त नहीं देखा गया लेकिन उत्तरप्रदेश में आसाम की तरह मदद हासिल नहीं हो सकती जिसकी वजह से उतर प्रदेश में महाराष्ट्रा और बिहार की तरह नाम निहाद क़ाइदीन के इस्तेमाल को यक़ीनी बनाया जाएगा।