मुसलमानों द्वारा आयोजित ‘परंपरागत रामलीला’ पर फिल्म डाक्यूमेंट्री

फिरोजाबाद के उत्तर प्रदेश के ग्लास फैक्ट्री डिस्ट्रिक्ट में स्थित ‘खेरिया’ एक छोटा सा गांव है जो 50 से अधिक वर्षों से प्रचलित रामलीला में धूमधाम और उत्साह के साथ काम कर रहा है।

यह अलग इसलिए है क्योंकि यहाँ अधिकतर कलाकार मुस्लिम हैं, जो शानदार तरीके से सांप्रदायिक सद्भाव की प्रदर्शित करते हैं।

‘खेरिया रामलीला’ जो हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे का एक बड़ा ही अद्भुत उदाहरण है उसे ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए)’ ने एक 66 मिनट की फिल्म में बड़े ही मनोरम तरीके से प्रस्तुत किया है।

कला केंद्र के ‘मौली कौशल’ द्वारा बनायीं गयी फिल्म ” लीला इन खेरिया ” में जीवन और उसके अस्तित्व का बहुत ही सुन्दर तरीके से विवरण किया गया है । इस विवरण के लिए ग्लास कांच के कारखाने और भट्टी में जाते हुए ग्लास के चित्रो का प्रयोग किया गया है और इनको सृजन की अवधारणा और अविरत रूप से चलती ‘समय की चाकरी’ के रूपको में रूप प्रसतु किया है।

‘खेरिया’ गाँव मे हिन्दू और मुसलमानो की बराबर आबादी रहती है। यहाँ रामलीला को प्रतुत करने की परंपरा 1970 से चलती आ रही है।

“यह गांव अवास्तविक है, क्योंकि यहाँ लोगो ने अपनी पहचानो को पूरी तरह से अपनाया हुआ है जिसके कारण उन्हें संवाद में बहुत आसानी होती है और वे बड़ी सहजता से व्यंग कर पाते हैं,” कौशल ने कहा।

इस फिल्म में साक्षात्कार और मोनोलॉग के माध्यम से गांव के निवासियों के व्यक्तिगत इतिहास का पता चलता है, जिनका जीवन एक तरफ दुःख और निराशा से भरा हुआ है और दूसरी और आशा और साहस से भरा हुआ है।