मुस्लिम कारीगर संवार रहे गणपति मंदिर की सूरत

औरंगाबाद : औरंगाबाद का गणपति मंदिर की सूरत को संवारने में पश्चिम बंगाल के मुसलिम कारीगर अपने पसीने को वैसे बहा रहे है जैसे उनकी आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है. पिछले दस दिनों से खड़गपुर के रहने वाले अफसरूल, काइम खां, मिलेन और मुनेश मंदिर के स्वरूप को संवारने में जुटे है.

इन्हीं के हाथो मंदिर के संपूर्ण बाहरी भाग को आधुनिक ढंग से संवारने व सजाने का काम किया जा रहा है.मंदिर में लगे कारीगर अफसरूल से जब पूछा गया कि आप मंदिर के काम कर रहे है तो आपको कैसा महूस होता है. अफसरूल ने बड़े ही सहज लहजो में कहा कि मेरे लिये तो दो फायदे है. पहला रोटी भी इस काम से मिल जाता है और दूसरा उपर वाले का आशिर्वाद भी मिलता है . ईश्वर तो एक ही है. चाहे उसे अल्लाह कहे या भगवान.यही बात इनके साथ काम करने वाले काइम खां का भी कहना है. काइम ने बताया कि हिंदुओं के घर ,मकान और होटल में काम करने का अक्सर अवसर मिलता है. लेकिन मंदिर में काम करने का मौका जीवन में पहली बार मिला है. हम सभी का सौभाग्य है कि औरंगाबाद में वह भी गणपति मंदिर में काम करने का अवसर मिला है.

यह हमलोगों के जीवन के लिये एक बहुमूल्य तोहफा है. कारिगर मिलेन का कहना है कि अपना घर तो सब कोई बनाता है. हमलोगों का पेशा ही है दूसरो के घर को बनाना और ऊपर वाले का घर बनाने का अवसर मिला है तो यह जान लीजिए अल्लाह का,ईश्वर का हमलोगों के ऊपर बड़ी कृपा हुई है. ये तो बात है इनक कारिगरों की .अब यहां के लोगों का क्या कहना है. इसके भी यहां पर बताना जरूरी है. औरंगाबाद शहर वैसे तो हिंदु-मुसलिम एकता का प्रतीक माना जाता है. गणपति मंदिर में मुसलिम कारिगरों के द्वारा मंदिर के स्वरूप को निखारने का काम किये जाने की चर्चा से एक हिंदू -मुसलिम एकता का संदेश भी निकलने लगा है.

युवा व्यवसायी राहुल राज का कहना है कि मुसलिम कारिगरों ने मंदिर के स्वरूप को निखारने का प्रयास ईमानदारीपूर्वक किया है.
निश्चित रूप से इनके भीतर इस मंदिर के प्रति आस्था है और इससे एक बड़ा संदेश समाज में जा रहा है. व्यवसायी मनोज मालाकार ,व्यवसायी मंटू गुप्ता, शहरवासी शंभु मेहता, गणपति मंदिर के पुजारी मृत्युंजय पाठ क सहित अनेकों लोगों ने मंदिर के स्वरूप को सजा रहे मुसलिम कारिगरों के कार्यों की प्रशंसा तो की है. इनका यह भी कहना है कि इससे धर्म,मजहब, जात-पात का भेदभाव पैदा कर समाज को तोड़ने वाले के सबक सिखने की जरूरत है.