मुस्लमानों में ख़ुदकुशी के वाक़ियात में इज़ाफ़ा

हैदराबाद०२ अक्टूबर : ज़िंदगी अल्लाह ताली का अपने बंदों के लिए एक अनमोल तोहफ़ा है । अल्लाह ताली अपने बंदा को कई खूबियां अता करते हुए इस दुनियाए फ़ानी में भेजता है । हर इंसान के अपने कुछ मक़ासिद होते हैं और उन मक़ासिद की तकमील करते करते वो इसदार फ़ानी से कूच कर जाता है ।

इंसान की ज़िंदगी क़ुदरत की एक अमानत होती है । इंसान अपनी ज़िंदगी-ओ-हयात का ख़ुद मालिक नहीं होता बल्कि उस की ज़िंदगी और जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा तक ख़ालिक़ कायनात की तख़लीक़ होती है और इंसान अपने रब ज़ूलजलाल-ओ-अलाकराम की हिदायत-ओ-रहनुमाई से नेकी के रास्ते पर गामज़न हो जाता है ।

ज़िंदगी इंसान के लिए इस लिए अनमोल होती है कि अल्लाह ताला ने ना सिर्फ उसे बेहतरीन सांचे में ढाला है बल्कि बसारत के लिए आँखें , समाअत के लिए कान , चलने फिरने और काम काज के लिए हाथ और पावो तदब्बुर-ओ-तफ़क्कुर के लिए ज़हन-ओ-क़लब अता किए हैं ग़रज़ इंसान के जिस्म का ज़र्रा ज़र्रा इस के एहसान-ओ-करम का नतीजा है लेकिन अल्लाह ताली की इन नेअमतों से मालामाल इंसान जब ख़ुदकुशी या ख़ुद सोज़ी करता है तो कायनात को पैदा करने वाले अल्लाह ताली का ग़ज़ब जोश मारने लगता है और वो उस की नेअमतों का शुक्र बजा लाने की बजाय नाक़द्री और हुक्मउदूली करने वाले बंदा को जहन्नुम की आग में ढकेल देता है । ज़िंदगी अल्लाह ताली की अमानत होती है ।

इंसान अपने रब की राह में अपनी जान क़ुर्बान तो करसकता है लेकिन उसे ज़ाए नहीं करसकता और जो बंदा अपने रब की नेअमतों-ओ-अमानतों की नाक़द्री करता है और बददियानती का मुर्तक़िब होता है वो अल्लाह ताला की नज़र में बड़ा बाग़ी और मुजरिम है इस लिए इंसान से सरज़द होने-ओ-अले गुनाहों-ओ-जराइम में सब से संगीन और घिनावना जुर्म ख़ुदकुशी है । अल्लाह ताला क़ुरान-ए-पाक में फ़रमाते हैं अपने आप को क़तल ना करो , यक़ीन मानव के अल्लाह तुम्हारे पर निहायत मेहरबान है ।

जब कि हदीस शरीफ़ में आया है कि ख़ुदकुशी हराम है , हज़रत अबोहरीरहओ से मर्वी है हुज़ूर ई का इरशाद मुबारक है जिस किसी ने पहाड़ से कूद कर ख़ुदकुशी करली वो जहन्नुम की आग में इसी तरह गिरता रहेगा और जिस किसी ने ज़हर पी कर ख़ुदकुशी की ज़हर इस के हाथ में होगा और जहन्नुम की आग में वो हमेशा ज़हर पीता रहेगा और जिस ने धार वाली शए मार कर ख़ुदकुशी करली वो जहन्नुम की आग में मुसलसल अपना पेट चाक करता रहेगा ।

मज़कूरा आयत करानी और हदीस पाक से अंदाज़ा होता है कि इस्लाम में ख़ुदकुशी किस क़दर ना पसंदीदा अमल है । लेकिन अफ़सोस कि आज मुस्लमानों में दीगर बुराईयों की तरह ख़ुदकुशी करने का रुजहान भी बढ़ गया है । नौजवान लड़के लड़कीयां ख़वातीन और मर्द ख़ुद को जिला कर या फांसी लेकर ख़ुदकुशी करने लगे हैं । मिल्लत का दर्द रखने वाले एक साहिब उस्मानिया हॉस्पिटल गए थे उन का गुज़र झुलस जाने वाले मरीज़ों के वार्ड से हुआ और वार्ड के बाहर बुर्क़ापोश ख़वातीन की तादाद देख कर वो कुछ देर वहां रुक गए और मालूम किया तो पता चला कि इस वार्ड में कई मुस्लिम लड़कीयां और नौजवान मौत-ओ-ज़ीस्त की कश्मकश में मुबतला हैं इन साहिब ने फ़ौरी दफ़्तर सियासत को फ़ोन करते हुए मिल्लत में तेज़ी के साथ फ़रोग़ पा रहे इस ख़तरनाक रुजहान के बारे में शऊर बेदार करने की अपील की और बताया कि कई मुस्लिम ख़वातीन-ओ-मर्द ख़ुद सोज़ी करने की कोशिश में उस्मानिया हॉस्पिटल पहूंच गए हैं । इन साहिब के फ़ोन के साथ ही राक़िम उल-हरूफ़ उस्मानिया हॉस्पिटल पहूंच गया और देखा कि झुलस जाने वाले अफ़राद के ईलाज-ओ-मुआलिजा के लिए मुख़तस वार्ड के बाहर अच्छी ख़ासी भीड़ है

और जब अंदर जाकर जायज़ा लिया तो पता चला कि फ़िलवक़्त तीन मुस्लिम लड़कीयां और एक मुस्लिम नौजवान इक़दाम ख़ुद सोज़ी करते हुए ज़िंदगीयों को ख़तन करने की कोशिश की और हॉस्पिटल में तड़प रहे हैं । हम ने देखा कि इन तीनों लड़कीयों के साथ सिवाए उन की माॶं के कोई और नहीं था । माएं इन तीनों लड़कीयों की तीमारदारी में मसरूफ़ थीं । दो ख़वातीन अपनी लड़कीयों की नाज़ुक हालत को देखते हुए बात करने के मौक़िफ़ में नहीं थीं जब कि एक ग़मज़दा माँ ने हक़ीक़त छिपाने की कोशिश करते हुए बताया कि इन की बेटी असटो फट पड़ने के नतीजा में झुलस गई है ।

इन तीनों में से दो लड़कीयां 80 ता 90 फ़ीसद झुलस चुकी थीं । ज़राए से पता चला कि घरेलू झगड़ों के बाइस उन लड़कीयों ने ये इंतिहाई इक़दाम किया । इसी वार्ड के एक बैड पर मीर मोमिन साहिब की पहाड़ी के शख़्स अबदुलजब्बार पड़े थे जिन्हों ने अपनी बीवी के साथ मामूली सी बेहस-ओ-तकरार के बाद ख़ुद को जलाकर हलाक कर लेने की कोशिश की । इन के जिस्म का ऊपरी हिस्सा 45 फ़ीसद तक झुलस गया है । एक ग़ियास एजैंसी में काम करने वाले अबदुलजब्बार यौमिया 250 रुपय कमा लिया करते थे । इशरत फ़ातिमा के साथ उन की शादी हुए सिर्फ 5 माह ही हुए हैं ।

उन के अफ़राद ख़ानदान ने बताया कि 9 यौम क़बल अबदुलजब्बार और उन की अहलिया इशरत फ़ातिमा के दरमयान कुछ बात पर झगड़ा हुआ मियां बीवी के इस झगड़े को सुलझाने के लिए लड़की के माँ बाप और दीगर रिश्तेदार बातचीत कर ही रहे थे कि अबदुलजब्बार सीधे छत पर गए और जिस्म पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा ली जिस के नतीजा में इन का जिस्म 45 फ़ीसद तक झुलस गया है । अबदुलजब्बार अब मौत-ओ-ज़ीस्त की कश्मकश में मुबतला हैं । ज़राए के मुताबिक़ अबदुलजब्बार अब अपने इस इक़दाम ख़ुद सोज़ी पर पछता रहे हैं जब कि तमाम रिश्तेदारों का यही कहना है कि मामूली झगड़े पर इस तरह का इंतिहाई इक़दाम नहीं क्या जाना चाहीए । क़ारईन इन वाक़ियात को पेश करने का मक़सद यही है कि मिल्लत ख़ुदकुशी जैसे गुनाह कबीरा के बारे में शऊर बेदार किया जाय ।

माज़ी में ख़ुदकुशी या ख़ुद सोज़ी के जितने भी वाक़ियात होते थे इन में कोई मुस्लमान नज़र नहीं आता था । अक्सर माहिरीन नफ़सियात , डॉक्टर्स , पुलिस ओहदेदार और पोस्टमार्टम अंजाम देने वाला अमला यही कहा करते थे कि मुस्लमान ख़ुदकुशी नहीं करते चाहे वो शदीद दबाॶ का शिकार भी होजाएं । मुस्लमान हरगिज़ ख़ुदकुशी करने के बारे में नहीं सोच सकता लेकिन अफ़सोस कि आज ये तसव्वुर बदल गया है । कर्ज़ों से तंग आकर मुस्लिम नौजवान ख़ुदकुशी कररहे हैं । इशक़ में नाकामी पर ज़हर पी रहे हैं । बेजा ख़ाहिशात-ओ-उम्मीदों का शिकार हो कर अपने गुलों में फांसी का फंदा डाल कर फांसी ले रहे हैं और मामूली मामूली बातों पर तैश में आकर हालत ब्रहमी में अपने जिस्म को आग लगाते हुए हमेशा हमेशा के लिए ख़ुद को जहन्नुम की आग में ढकेल रहे हैं ।

अक्सर वाक़ियात में मियां बीवी के झगड़ों को बुनियाद बनाकर मर्द-ओ-ख़वातीन ख़ुदकुशी , ख़ुद सोज़ी कररहे हैं । कौनसा घर होगा जहां छोटे मोटे झगड़े नहीं होते सब्र-ओ-तहम्मुल से काम लिया जाय तो दुनिया-ओ-आख़िरत की शर्मिंदगी से बचा जा सकता है । आज इस्लाम और इस्लामी तालीमात से दूरी ख़ासकर क़ुरआन और संत से दूरी के नतीजा में मुस्लमान कई बुराईयों का शिकार होचुके हैं । जज़बा सब्र-ओ-तहम्मुल में कमी , बेजा ख़ाहिशात-ओ-उम्मीदें वसाइल की कमी , घरेलू झगड़े , कर्ज़ों का बोझ , बीमारीयां-ओ-मुसीबतें , परेशानियां , पसंद की शादी में नाकामियों , इमतिहान में फ़ेल होना और मआशी परेशानीयों के बाइस लोग दबाॶ का शिकार होरहे हैं और इस दबाव‌ में वो ख़ुदकुशी या ख़ुद सोज़ी जैसे गुनाह कबीरा का इर्तिकाब कररहे हैं । आजकल सरकारी-ओ-ग़ैर सरकारी दवाखाने जाकर देखिए मुस्लमान मर्द-ओ-ख़वातीन की कसीर तादाद को झुलसी हुई हालत में लाया जा रहा है । लड़ाई झगड़ों में ज़ख़मी होने वालों में भी हमारी अक्सरीयत होती है इसी तरह मियां बीवी के दरमयान झगड़ों ने एक तरह से बरसर-ए-आम मुस्लमानों का मज़ाक़ उड़ाया है ।

मियां बीवी के ख़िलाफ़ कार्रवाई का ख़ाहां नज़र आता है तो बीवी शौहर के ख़िलाफ़ पुलिस स्टेशन और अदालत का दरवाज़ा खटखटाती है । इसी तरह वीमनस पुलिस स्टेशन जाईए वहां भी आप को मुस्लिम ख़वातीन ही दिखाई देंगी जो अपने शौहरों की ज़ुलम-ओ-ज़्यादती की शिकायत के लिए वहां पहूँचती हैं । मुस्लमानों में ख़ुदकुशी के वाक़ियात को रोकने की शदीद ज़रूरत है । अवाम में शऊर बेदार करना ज़रूरी है ।

उन्हें ये बताना है कि मुस्लमान मुजाहिदा के लिए पैदा हुआ है ख़ुदकुशी ख़ुद सोज़ी या सिर्फ बैठे रहने के लिए नहीं और ख़ालिक़ कायनात ने इस की तख़लीक़ आज़माईश के लिए की है फ़रार के लिए नहीं । मुस्लमान को इस का ईमान इस का अख़लाक़ ज़िंदगी से फ़रार इख़तियार करने से रोकता है और इस के पास ऐसा हथियार है जो कभी ख़राब नहीं होता और ऐसा ज़ख़ीरा है जो ख़तन नहीं होता वो हथियार ईमान मुहकम और ज़ख़ीरा अख़लाक़ की पुख़्तगी है और मुस्लमान की शान ये है कि वो हालात से कभी मायूस नहीं होता उसे अपने रब ज़ूलजलाल पर पूरा भरोसा होता है कि वो उस की हर परेशानी हर मुसीबत और हर बला को दूर करदेगा । काश मुस्लमान अपनी हक़ीक़त को पहचानते ।