मुस्लमान के हाथों अपने मुस्लिम भाईयों का क़त्ल नामुमकिन:अदालत

मुंबई 27 अप्रैल: ख़ुसूसी एनआईए अदालत जिसने मालिगांव 2006 धमाका मुक़द्दमे में 8 मुल्ज़िमीन को रिहा कर दिया ये एहसास ज़ाहिर किया कि तमाम मुल्ज़िमीन जो ख़ुद मुस्लमान हैं ये नामुमकिन बात है कि वो महिज़ दो फ़िर्क़ों के माबैन मुनाफ़िरत पैदा करने के लिए अपने ही लोगों का क़त्ल करें और वो भी शबे बरात जैसे मुक़द्दस मौके पर तो एसा हो ही नहीं सकता। अदालत ने एटीएस ओहदेदारों पर भी अपनी डयूटी ग़लत-अंदाज़ में बजा लाने पर उन्हें क़सूरवार क़रार दिया और कहा कि महिज़ शुबा की बुनियाद पर उन्हें मुक़द्दमा में मुल्ज़िमीन के तौर पर पेश किया गया।

मालेगांव ब्लास्ट में 37 लोग हलाक हो गए थे और इस वाक़िये के तक़रीबन 10 साल बाद अदालत ने 8 मुस्लिम नौजवानों को शवाहिद के फ़ुक़दान की बिना मंसूबा इल्ज़ामात से बरी कर दिया था। ख़ुसूसी एनआईए जज वीवी पाटल ने कहा कि उनकी नज़र में एटीएस ने 8 सितंबर 2006 को हुए धमाकों के पस-ए-पर्दा जो ख़ाका खींचा वो बुनियादी तौर पर ग़लत है और एक आम आदमी उसे क़बूल नहीं करसकता।

वो एसा इस लिए कह रहे हैं क्युं कि शबे बरात से पहले गणेश निमरजन जलूस था।

क्या मुल्ज़िमीन को मालेगांव में फ़सादाद बरपा करने के मुआमले में कोई एतराज़ था अगर एसा होता तो वो गणेश निमरजन के दिन बम धमाके कर सकते थे और एसा करने से ज़्यादा से ज़्यादा हिंदू लोग हलाक होते। अदालत ने ये भी कहा कि एटीएस के तहक़ीक़ाती दस्तावेज़ात का जायज़ा लेने के बाद ये हक़ीक़त सामने आई कि मुल्ज़िमीन के ख़िलाफ़ क़ानूनी चारा-जुई के लिए ख़ातिर-ख़्वाह बुनियाद नहीं है।

मेरी नज़र में मुल्ज़िमीन के ख़िलाफ़ इल्ज़ामात के लिए कोई सबूत नहीं और उन तमाम के ख़िलाफ़ दरहक़ीक़त कोई इल्ज़ाम साबित नहीं हो सका। मुझे एसा लगता है कि मुल्ज़िमीन का मुजरिमाना पस-ए-मंज़र था और इसी वजह से वो एटीएस के हाथों बिल्ली का बकरा बने। इस के साथ साथ ये कहना भी ज़रूरी है कि एटीएस ओहदेदारों ने जो इस मुआमले की तहक़ीक़ात की इन मुल्ज़िमीन के बारे में ज़्यादा कुछ मालूमात हासिल करना भी ज़रूरी नहीं समझा इसी लिए उनकी नज़र में इन ओहदेदारों ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभाई लेकिन ग़लत तौर पर भी उन्हें मोरीदे इल्ज़ाम क़रार नहीं दिया जा सकता।

मालेगांव में हमीदिया मस्जिद के बाहर शब्बे बरात के मौके पर सिलसिला-वार बम धमाकों में 100 से ज़ाइद लोग् ज़ख़मी हुए थे