मुस्लिम वैवाहिक प्रणाली को दुसरे धर्मों ने भी अपनाया है, समाज में तलाक की दर सबसे कम: एडवोकेट फ्लाविया अगनीस

कमकोलकाता: लिंग अधिकार की मशहूर वकील और मजलिस मंच की डायरेक्टर एडवोकेट फ्लाविया अगनीस ने कहा कि ट्रिपल तलाक मुस्लिम समाज के लिए कोई मामला नहीं है, क्यूंकि मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक़ की दर दूसरी तमाम समुदाय से कम है.

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न्यूज़ नेटवर्क समूह न्यूज़ 18 के अनुसार एडवोकेट फ्लाविया अगनीस ने मीडिया पर मुसलमानों की गलत छवि पेश करने का आरोप लगते हुए कहा कि ट्रिपल तलाक के मुद्दे को राजनीतिक दल विशेषकर भाजपा और मीडिया में इस तरह से पेश किया जा रहा है कि जैसे दुनिया के सभी मुस्लिम महिलायें तीन तलाक की वजह से परेशानी से ग्रस्त हैं, इस को हल किए बिना मुसलमान विकसित नहीं हो सकते हैं। जबकि यह तथ्य के बिलकुल विपरीत है. और ट्रिपल तलाक मुसलमानों के लिए कोई समस्या नहीं है क्यों कि मुस्लिम समाज में तलाक की दर दूसरी सभी समुदाय से कम है।

आलिया यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग और एसोसिएशन स्नेप के साझा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए एडवोकेट फलाविय अगनिस ने मुस्लिम पर्सनल लॉ और हिंदू विवाह अधिनियम की तुलना करते हुए कहा कि इस्लाम का अपना पूरा वैवाहिक प्रणाली है। उसकी कुछ ऐसी खूबियां हैं जिसे दुसरे धर्मों ने कई सदियों के बाद अपनाया और उन्होंने कहा कि इस्लाम शुरू दिन से ही संपत्ति में लड़कियों को अधिकार देने की वकालत की है, लेकिन हिन्दुओं में भारत की स्वतंत्रता के बाद बनने वाले कानूनों में माता-पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकारों को स्वीकार किया गया है। इसी तरह हिन्दुओं के नियमों के अनुसार शादी अनुबंध नहीं है बल्कि कनियादान है यानी महिलाओं के कोई अधिकार नहीं होते हैं।

सात जन्मों का संबंध होता है जिसे अलग करने के लिए कोई विकल्प नहीं था लेकिन इस्लामी कानून में अव्वल दिन से ही महिलाओं को भी अपने पति से खुला लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि आज मीडिया में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के मुद्दों पर बातचीत नहीं हो रही है। फ्लाविया अगनीस ने कहा कि तीन तलाक पर अधिक ध्यान देने के बजाय जरूरत इस बात की है कि मुस्लिम महिलाओं को अधिक से अधिक शिक्षित बनाई जाए। उन्हें अपने अधिकारों से संबंधित मामलों का पता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा, पति का अत्याचार जैसे मुद्दे ऐसे हैं, जिसकी सभी वर्गों की महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ता है मगर उस पर कोई बातचीत नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि मीडिया कर्मियों को भी सच्चाई का पता नहीं है या फिर जानबूझ कर अनावश्यक मुद्दों में जनता को विचलित रखने की कोशिश कर रहा है।