मेरे लिए इंसाफ़ का मतलब यह नहीं कि मेरे साथ अत्याचार करने वाले ISIS और दाएश को मार दिया जाये- नादिया मुराद

इस्लामिक स्टेट समूह ने इराक में यजीदी समुदाय के लोगों पर नृशंस अत्याचार किए और नादिया मुराद इन्हीं अत्याचारों से उबरते हुए आज लाखों लोगों की आवाज बन गई है।

वह पहली इराकी हैं, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मुराद को 2014 में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने बंधक बना लिया था।

25 वर्षीय मुराद को अक्टूबर में कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगे के साथ साझे रूप से नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी। यौन उत्पीड़न को युद्ध में एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के खिलाफ लड़ाई के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया है।

मुराद ने कहा था, ‘‘मेरे लिए न्याय का मतलब यह नहीं है कि हमारे खिलाफ दाएश सदस्यों (इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी) ने जो अत्याचार किए, उसके बदले उन सबको मार दिया जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए न्याय का मतलब दाएश सदस्यों को कानून के दायरे में लाना और उन्हें यजीदी समुदाय पर किए गए अपने अत्याचार को स्वीकार करते तथा हर अपराध विशेष के लिए सजा मिलते हुए देखना है।

मुराद 2014 से पहले उत्तरी इराक के सिंजर के अपने गांव में शांतिपूर्वक रह रही थीं। लेकिन इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों के उनके गांव में घुसने के बाद नृशंसता और बर्बरता की एक ऐसी कहानी शुरू हुई, जिससे किसी की भी रूह कांप जाए।

इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने गांव के पुरुषों की हत्या कर दी और बच्चों को लड़ाका बनाने के लिए अपने साथ ले गए। लेकिन इस बीच उन्होंने हजारों महिलाओं को अपना गुलाम बना लिया।

साभार- ‘ज़ी न्यूज़’