मैं उत्तर प्रदेश की सियासत में फंसा बेबस हज हाऊस हूं

बड़ी अजीब बात है कि मैं अपना परिचय खुद अपनी जबान से करा रहा हूं कि मैं हज हाऊस हूं। क्या मैं यह समझूं कि मेरे पास कोई ऐसा आदमी ही नहीं जो मेरा परिचय करा सके ? चलिये जब मैं अपना परिचय कराने पर आ ही गया हूं तो यह भी बता दूं कि मैं कौन, कहां, और किस रियासत की इमारत हूं, यूं तो मेरी बुनियादें एक दशक पहले रखी गई थी उस मगर बीच बीच में ऐसा मरहला भी आया जब मेरी तामीर को रोकना पड़ा, ओह मैं बताना तो भूल ही गया कि मैं कहां का हूं, चलिये अब बताता हूं, दरअस्ल मैं उत्तर प्रदेश का हज हाऊस हूं, किस्मत तो देखिये मेरी तामीर भी उस रास्ते पर की गई जो दिल्ली जाता है इतना ही नहीं मुझे दिल्ली के बिल्कुल करीब बनाया गया यानी मुझे गाजियाबाद में बनाया गया।

मेरे बिल्कुल बराबर से हिंडन नदी बहती है, और मेरे सामने से एनएच 58, गुजर रहा है जब मैं थोड़ा और बड़ा होता हूं तो देखता हूं कि मेरी छाती के करीब से मैट्रो गुजरेगी, जिसका कार्य अभी चल रहा है। मैं खूबसूरत हूं, यह मैं नहीं कहता बल्कि आप ही लोगो के मुंह से सुना है, अक्सर जब भी आप लोग मेरे सामने से गुजरते हैं तो मुझसे आंखें चुराये बगैर नहीं रह पाते, इसलिये नहीं कि मैं खूबसूरत हूं खूबसूरत तो मैं हूं ही, बल्कि इसलिये कि मैं वही इमारत हूं जिसके बनने के प्रस्ताव से लेकर बन जाने तक विवाद जुड़े रहे। मुझे याद है जब मेरी रियासत के वजीर ऐ आजम और उनके वजीर ‘आजम’ ने मेरी बुनियाद रखी थी तभी से मेरे साथ विवाद जुड़ गया था।

मैं जिस जिला गाजिबाद में स्थित हूं वहां के कुछ राजनीतिक संगठनों ने सड़क जाम करके मेरे बनने का विरोध किया था, वे मेरे बनने के खिलाफ थे वे कहते थे कि अगर मैं बन गया तो इससे तुष्टीकरण होगा। खैर मुझे उनकी परवाह नही क्योंकि परवाह तब होती जब मैं अधबना छोड़ दिया जाता, चूंकि मैं बन चुका हूं, सूबे के वजीर ऐ आजम और उनके वजीर ‘आजम’ बड़ा सा समारोह करके मेरा उद्धाटन कर चुके हैं।

अपनी नींव रखी जाने से लेकर उद्धाटन तक मुझे कोई शिकायत नही है। मेरी शिकायते तो मेरे उद्धाटन के बाद के शुरु होती हैं क्योंकि उद्धाटन से पहले तक मैं एक निर्माणधीन इमारत था, मगर जब उद्धाटन हो गया तो मैंने भी महसूस किया कि मैं मुकम्मल हो चुक हूं। लेकिन उसके बाद मेरे आंगन में ऐसी वीरानी छाई जो अब तक आबाद ही नही हुई, ऐसा अंधेरा कि छटने का नाम ही नहीं लेता। मुझे मालूम है कि मेरा इस्तेमाल सिर्फ़ हज के दौरान हो सकता है और ये सिलसिला दो महीने तक चलता है। मैं फिर से अपनी वीरानी की तरफ देखता हूं कि क्या मेरे आंगन में बहारे सिर्फ दो महीने के लिये ही आयेंगी ? मैं आपसे पूछ रह हूं ? आप सरकार से पूछ लेना। क्योंकि मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते तो आप हो, जब भी मेरे सामने से गुजरते हो तो मेरे नाम का बड़ा सा बोर्ड देखकर आकर्षित तो आप होते हो, आपने मुझे सिर्फ बाहर से देखा है।

यकीनी मैं आपको बहुत खूबसूरत नजर आया, मगर क्या आपने मेरी तन्हाई देखी है ? देखी है तो क्या आपने मेरी तन्हाई को महसूस किया है ? किसी दिन आना मैं दिखाऊंगा आपको कि मेरे कमरों में कितनी गर्द जमा है ? मैं बताऊंगा कि जिस दिन राम नरेश यादव नाम का चौकीदार नहीं होता वह दिन कैसे गुजरता है ? मैं बताऊंगा कि मेरे हर कमरा अब भूत बंगला बनता जा रहा है। कभी तो मैं बहुत उदास होता हूं यह उदासी मुझे डसती है, मेरी खूबसूरती को चार चांद लगाती मेरी गुंबंदें ही मुझ पर हंसती हैं, मैं सोचता हूं कि काश मेरी आंखों से आंसू भी बह सकते कमसे कम मैं उन्हें पास से गुजरती हिंडन नदी मे बहा देता ताकि इसके पानी मे इजाफा हो सके।

मैंने कई बार खुद से सवाल किया कि क्या मैं वही इमारत हूं जिसके निर्माण के विरोध में आंदोलन हुऐ, और जब सरकार बदली तो मुझे भी अधूरा छोड़ दिया गया ? क्या मैं वही इमारत हूं जिसके प्रांगण में सूबे के वजीर ऐ आजम और उनके वजीर ‘आजम’ आये थे। क्या मैं सूबे के वजीर ‘आजम’ का ड्रीम प्रोजेक्ट ही हूं या फिर रेलवे स्टेशनो, बस स्टॉप के पास खाली पड़ी एक ऐसी इमारत जिसका इस्तेमाल अब सिर्फ ‘अड्डे बाजी’ ताश के पत्ते खेलने के लिये किया जाता है ?

क्या ऐसा नही हो सकता कि मैं जिस समाज के लिये बना हूं उस समाज के बच्चो के लिये मैं कोचिंग सेंटर बन जाऊं ? जहां हर समाज के हर एक कोने से छात्र / छात्राऐं आयें, सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी करें उन्हें पढ़ाने के लिये भी अच्छे एक्सपर्ट नियुक्त किये जायें, काश कि ऐसा हो जाये फिर हर रोज वे मुझसे बाते करें मेरे प्रांगण मे चहल कदमी करें, मेरे वीरान कमरो के आबाद करे, और मैं भी यह समझूं कि मैं बेमकसद नहीं बनाया गया हूं बल्कि अपने समाज के बच्चो के काम आ रहा हूं।

-वसीम अकरम त्यागी