मैं गांधीवादी नहीं: बापू के पोते

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने जुमेरात को सबको चौंकाते हुए कहा कि वह गांधीवादी नहीं हैं। उन्होंने कहा, मैं पुजारी भी नहीं हूं और भोगी भी नहीं हूं, Consumerism का एक सिंबल हूं। गोपालकृष्ण गांधी ने यहां के गांधी शांति प्रतिष्ठान में महात्मा गांधी की बर्सी पर मुनाकिद सालाना लेक्चर में अपनी बात रखी। उन्होंने सवाल किया कि आज गांधी से मुतास्सिर लोग, जो कभी-कभी खुद को गांधीवादी कहते हैं, क्या वे अपने पर कंट्रोल रख पाए हैं जिसकी उम्मीद वे दूसरों से करते हैं! जवाब आएगा, नहीं।

गोपालकृष्ण ने कहा,हम सिर्फ दूसरों पर इल्ज़ाम लगाते हैं। आगर ऐसा होता रहा तो हम चैलेंजों का सामना नहीं कर पाएंगे। मगरिबी बंगाल और बिहार के साबिक गवर्नर गांधी ने कहा, आज कई लोग हैं जो गांधी का काम करते हैं लेकिन वे गांधी का नाम नहीं लेते। वही लोग सही मायने में गांधी का काम कर रहे हैं। उनकी तादाद कम है। उन्हें कोई जानता तक नहीं। उन्होंने कहा,आज के गांधीवादी, आज के लीडर उस गांधी को जानते हैं जो आसान और काबिल रसाई है। उस गांधी को नहीं जानते जो नाकाबिल रसाई और मुश्किल है। गोपालकृष्ण ने अफसोस जाहिर किया कि तकलीफ का इस्तेहसाल अपने इस्तेहसाल के लिए हो रहा है।

आज का यह जमाना हमें उम्मीद कम, मायूसी का एहसास ज़्यादा करा रहा है। उन्होंने कारपोरेट की दुनिया को आडे हाथ लेते हुए कहा कि मुल्क की कारपोरेट दुनिया हमारे कुदरती वसाएल और मिनिरल्स (Minerals) का बुरी तरह इस्तेमाल कर रहा है। इसके खिलाफ कोई सियासती पार्टी खडा होने के लिए तैयार नहीं है।

गोपालकृष्ण ने कहा,गांधीजी ने कुदरती वसाएल के इस्तेमाल से तरक्की के जिस मॉडल का मंज़र पेश किया था, आज सबकुछ उसके बरअक्स हो रहा है। हमारे मुल्क के सनअतकार तरक्की याफ्ता ममालिक का हवाला देकर तरक्की की आड में हमारे कुदरती वसाएल को लूट रहे हैं।

अगर ऐसा होता रहा तो आज का जमाना हमें मायूसी और तारीकी की ओर ही ले जाएगा। गोपालकृष्ण ने कहा कि ताज हमारी विरासत की अलामत है। इसे बचाने का चैलेंज आज हमारे सामने खड़ा है और इस चैलेंज को कारपोरेट की दुनिया ने खडा किया है। यह ताज सिर्फ ताज नहीं है। यह हमारे मुल्क, हमारे कल्चर और हमारी तरक्की को आईना दिखा रहा है।

हमें अब कुछ ऐसे तजुर्बे करने होंगे, जिससे ऐसे नतीजे निकलें, जो हमें उम्मीद की ओर ले जाएं।