मौत से हरगिज़ ग़ाफ़िल ना हों

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ी० से रिवायत है कि (कभी ऐसा होता कि) रसूल करीम स०अ०व० पेशाब करने के बाद (और व़ज़ू करने से पहले) मिट्टी से तयम्मुम कर लेते। मैं (यानी इब्ने अब्बास ये देख कर) अर्ज़ करता कि या रसूलूल्लाह ! पानी तो आपके बहुत क़रीब है? (यानी जब पानी आपकी दस्तरस से इतना दूर नहीं है कि व़ज़ू कर सकते हैं तो फिर तयम्मुम क्यों करते हैं?)। हुज़ूर अकरम स०अ०व० (मेरी इस बात के जवाब में फ़रमाते) मुझे क्या मालूम कि मैं इस पानी तक पहुंच भी सकूँगा या नहीं। इस रिवायत को बगवई ने शरह अलसनৃ में और इब्ने जोज़ी ने किताब उलूफ़ा में नक़ल किया है।

यानी मुझे ये तो मालूम नहीं कि मेरी उम्र कितनी है और हर लम्हा मौत मुतवक़्क़े है, इसलिए में डरता हूँ कि पेशाब करने के बाद मुझे इतनी मोहलत भी ना मिले कि पानी तक पहुंच कर व़ुज़ू-ए-कर सकूं, लिहाज़ा फ़ौरी तौर पर तयम्मुम कर लेता हूँ, ताकि एक तरह की तहारत तो हासिल रहे।

हज़रत अनस रज़ी० से रिवायत है कि हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० ने फ़रमाया ये तो इब्ने आदम (इंसान) है और ये उसकी मौत है। ये फ़रमाकर आप ( स०अ०व०) ने अपना हाथ पीछे की तरफ़ रखा (यानी पहले तो एक जगह इशारा करके बताया कि ये इंसान है और फिर उस जगह से ज़रा पीछे की तरफ़ इशारा करके बताया कि ये उसकी मौत है) इसके बाद आप (स०अ०व०) ने अपने हाथ को फैलाया (और दूर इशारा करके) फ़रमाया कि उस जगह इंसान की आरज़ू है (यानी इंसान की मौत इसके बहुत क़रीब है, जबकि उसकी आरज़ू इससे बहुत दूर है)। (तिरमिज़ी)

इस तरह आप ( स०अ०व०) ने उस्लूब बयान और इशारा के ज़रीया गोया लोगों को ख़ाब-ए-ग़फ़लत से बेदार किया और मुतनब्बा फ़रमाया कि इंसान की मौत इसके बहुत क़रीब खड़ी है और उसकी आरज़ू और उम्मीदें इससे बहुत दूर वाकेय् हैं।