यहाँ 300 साल पुराने मंदिर की देखरेख कर रहे हैं मुस्लिम

पश्चिम बंगाल मुर्शिदाबाद में स्थित एक गांव में सामाजिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है। यहां पिछले 300 से भी ज्यादा वर्षों से गांव के मुस्लिम धार्मिक रूप से एक मंदिर की देख-रेख कर रहे हैं। वह न सिर्फ शिव मंदिर में रोज की व्यवस्था देख रहे हैं बल्कि अलग-अलग त्योहारों और मंदिर के नवीनीकरण के लिए चंदा भी इकट्ठा कर रहे हैं।

इस गांव में आपको धर्म की दीवारें देखने को नहीं मिलेगी। यह गांव है- मुर्शिदाबाद का भट्टाबटी। यहां टेराकोट्टा शिव मंदिर में भगवान शिव बाबा रतनेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं। लालबाग सदर घाट से भट्टाबटी गांव की दूरी महज 5 किमी है। यहां जब दान के लिए पर्चे छाप जाते हैं तो उस पर अनंत हजरा और असीम दास जैसे हिंदू भक्तों के साथ नूर सलीम, सादेक और अजरुल के नाम भी देखने को मिलते हैं।

मंदिर की देखरेख मुख्य रूप से अजरुल शेख, सदक शेख के साथ अनंता हजरा और असीम दास कर रहे हैं। बताते हैं कि 1494 में जब सुल्तान अलालुद्दीन हुसैन शाह पश्चिम बंगाल के शासक बने थे तो कम से कम 1200 ब्राह्मण परिवार कर्नाटक से बंगाल आकर रहने लगे थे। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर का निर्माण किसने कराया था लेकिन ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय कनुनगो जयनारायण के परिवार के किसी सदस्य ने इस मंदिर को बनवाया था।

मंदिर की हालत ठीक नहीं

काफी पुराना होने की वजह से मंदिर की हालत फिलहाल ठीक नहीं है। मंदिर का असली शिवलिंग जिसकी ऊंचाई करीब 5 फीट थी, वह एक बार चोरी हो गया था। बाद में इसे नबग्राम पुलिस ने ढूंढ निकाला था। सुरक्षा कारणों की वजह से मंदिर का शिवलिंग अब पुलिस की कस्टडी में ही है।

मंदिर कमिटी के अकाउंट कीपर अनंत हजरा बताते हैं, ‘हम बहुत गरीब हैं। कई हिंदू परिवारों ने गांव छोड़ दिया है। बिना मुस्लिम परिवारों की मदद और सहयोग से इस मंदिर में पूजा-पाठ और दूसरे कामों का होना भी संभव नहीं था।’

इस गांव में नहीं है धर्म की दीवारें
वहीं अबुल शेख कहते हैं कि धर्म कभी भी इस गांव के साझा सद्भाव के लिए खतरा नहीं बना है। यहां किसी के बीच कोई भेदभाव नहीं है। इसलिए वह पूरे दिल से भगवान शिव की पूजा करते हैं। लेखक अबुल बशर भी कहते हैं कि इस तरह की सद्भावना कोई असाधारण सी बात नहीं है। उनके अनुसार, उनके जैसे लोग बाउल और फकीर जैसे दर्शनशास्त्रियों से प्रभावित हैं जो खुले विचारों वाले थे।