राजनीति ने सरहद की तरह मुझे भी बांट दिया, पाकिस्तान की बेटी ने बयाँ किया दर्द

नई दिल्ली। उड़ी हमले ने भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव चरम पर पहुंचा दिया है। तनाव के इस माहौल के बीच सबसे मुश्किल में हैं वे महिलायें जो हैं तो पाकिस्तान की, लेकिन ब्याही गई भारत में हैं।

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मौजूदा हालात में यह महिलायें किन परेशानियों का सामना कर रही हैं, दिल में अपनों से न मिल पाने का दर्द समेटे ये बेटियां आखिर क्या सोचती हैं, उनके दिमाग में क्या चल रहा है और वह भारत और पाकिस्तान को क्या संदेश देना चाहती हैं? इसी पर आईबीएन खबर ने एक श्रृंखला शुरू की है.
हम आपको पाकिस्तान के कराची शहर से आगरा में ब्याही गई एक लड़की की कहानी बता रहे हैं। सुरक्षा कारणों के मद्देनजर हम यहाँ लड़की की पहचान जाहिर नहीं कर रहे हैं। उनका और उनके पति का ख्याली नाम इस्तेमाल किया गया है। क्या है उसकी कहानी, जानें उसी की ज़ुबानी।
मैं समरीन हूँ। सोचा था कि कम से कम अब मेरे लिए तो दो देश एक हो जाएंगे। एक घर होगा तो दूसरा आंगन। मेरे लिए यह सोचना भी कौन सा गलत था, आखिर मैं भारत की बहू हूँ तो पाकिस्तान की बेटी। लेकिन मेरी सोच अधिक दिनों तक बनी नहीं रह सकी। इस राजनीति ने दो देशों के सरहद की तरह मुझे भी बांट दिया। अब तो केवल इंटरनेट पर ही मेरा मैका सिमट कर रह गया है।
जब कश्मीर में शांति होती है तो लगता है कि अब सब कुछ ठीक होने जा रहा है। दोनों देशों के बीच हालात सुधरने वाले हैं। लेकिन जब कश्मीर में कुछ हो जाता है, जैसे अभी कुछ दिन पहले कश्मीर के उड़ी में हमला हो गया। सच पूछो तो इस समय खाना तक अच्छा नहीं लगता है। इस तरह की घटनायें हमें परेशान कर देती हैं। तब लगने लगता है कि हमारे परिवार से मिलने की उम्मीदें कमजोर पड़ रही हैं। उम्मीद तो यही है कि उड़ी जैसी घटनायें न हों, जिससे स्थिति सुधरे और सब कुछ ठीक ठाक हो जाए।
शुरू-शुरू में तो सब कुछ ठीक चल रहा था। सात साल पहले सितंबर 2009 में मेरी शादी आगरा में ताहिर (बदला हुआ नाम) से हुई थी। शादी के कई साल पहले ही भारत के फिरोजाबाद शहर की चूड़ियां पहन रही थी। ताहिर का चूड़ियों का कारोबार है। जब भी भारत से कोई पाकिस्तान आता तो वह मेरे लिए कई तरह के रंग बिरंगी चूड़ियां जरूर भेजते थे। इन्हीं चूड़ियों में मैंने भी आगरा में रहने के कई सपने देखे थे। सोचा था प्यार की नगरी और ताजमहल के साये में मुझे जीने का मौका मिलेगा। ताजमहल की यादों के साथ साल में एक दो बार पाकिस्तान अपने घर भी आ जाया करूंगी। सबको आगरा और ताज महल के बारे में बताया करूंगी। शुरू में तो डेढ़। डेढ़ साल में हमने दो बार पाकिस्तान का दौरा किया। इसके बाद हालात कुछ ऐसे बने कि साल में एक बार भी बड़ी मुश्किल से जाना होता था और अब तो बस पूछो ही मत। आज पूरे दो साल हो चुके हैं लेकिन माँ, भाई बहन, भतीजे-भतीजी और अन्य रिश्तेदारों का चेहरा देखने को तरस गई हूँ।
जब भी मन भारी होता है या घर वालों की बहुत याद आती है तो घर वालों की ताजा तस्वीर फेसबुक पर मंगा लेती हूँ। मेरा भाई वीडियो भेज देता है। अपने शहर कराची को देखना होता है तो गूगल पर सर्च कर लेती हूँ। ससुराल वालों के लिए कोई परेशानी खड़ी न हो जाए इसके लिए मोबाइल पर भी अपने घर वालों से कम ही बात करती हूँ।
फेसबुक पर वीडियो और फोटो भी सऊदी अरब में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से ही मंगवाते हैं। स्थानीय खुफिया एजेंसी वाले भी बहुत परेशान करते हैं। यहाँ मुझे कोई परेशानी तो नहीं है, लेकिन केवल राजनीति के चक्कर में अपने परिवार से दूर रह गई हूँ। ऐसा लगता है कि जैसे मैंने कोई पाप किए हैं जिनकी सजा मुझे मिल रही है।
उस समय मुझे बहुत रोना आता है जब मेरे पांच साल का बेटा अन्य बच्चों को देखकर बीच-बीच में नानी के घर चलने की जिद करता है। लेकिन इस मासूम को कैसे समझाऊँ कि उसकी नानी सरहद के पार है, जहां जाने के लिए उसकी मम्मी नहीं सरकार की इच्छा चलती है। अब तो कभी कभी सारी उम्मीदें बेमानी सी लगने लगती हैं। लगता नहीं कि यहाँ से मैं अपने घर जा पाउंगी या मेरे घर से कोई यहाँ आ पाएगा। मेरी तो दोनों देशों की सरकार से सिर्फ एक ही अनुरोध है कि कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम पाकिस्तान से यहां आईं बेटियों और यहां से पाकिस्तान गईं बेटियों के लिए कोई ऐसी योजना बनाएँ कि हम अपनी ससुराल और मायके की सभी जिम्मेदारियों को बिना किसी रुकावट के पूरी करते रहें। ‘