राष्ट्रपति का फैसला भी न्यायिक समीक्षा के अधीन

नैनीताल। राष्ट्रपति का फैसला कि उत्तराखंड विधानसभा को निलंबित रखा जाए न्यायिक समीक्षा के अधीन है, उनसे भी गलती हो सकती है, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आज यह टिप्पणी की। एनडीए सरकार की ओर से इस तर्क पर कि राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत अपनी ‘राजनीतिक समझ बोझ”के अनुसार सदरराज के कार्यान्वयन का फैसला किया है। मुख्य न्यायाधीश एम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बसट युक्त एक पीठ ने कहा कि लोग गलती कर सकते हैं चाहे वह राष्ट्रपति हों या जजस। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति के हस्तक्षेप का औचित्य क्या है जो सामग्री अदालत के समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया गया है वह ठीक है। अदालत की यह टिप्पणी केंद्र सरकार के इस दावा के बाद किया गया था कि राष्ट्रपति ने पूरे सामग्री को समझने के बाद यह फैसला किया है। संभव है कि उन्हें पेशकश की सामग्री इस सामग्री से अलग हो जो अदालत की बैठक में प्रस्तुत किया गया है। अदालत का यह दावा तब सामने आया जबकि न्यायिक पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने राष्ट्रपति को जो रिपोर्ट राज्य की स्थिति के बारे में रवाना की हैं

इससे हम अच्छी तरह समझ चुके हैं कि सदन विधानसभा में 28 मार्च को शक्ति का फैसला तय था जो हरचीज़ तय हो जाती। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने नोट किया कि राज्यपाल ने राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया है कि 35 विधायकों मतदान वितरण चाहते हैं। राज्यपाल को व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट होना चाहिए लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तिगत संतोष प्रवेश नहीं किया कि 35 विधायकों जिन्होंने सदन में वोटों के विभाजन की मांग की थी, अदालत ने कहा कि इन रिपोर्टों से यह भी नहीं मालूम होता है कि कांग्रेस के 9 बागी सदस्यों विधानसभा ने ऐसा मांग की थी। अदालत की टिप्पणी में यह भी कहा गया कि राज्यपाल के मन में जो भय पैदा होगा उनके बारे में भी सामग्री पूर्ण तौर मौजूद नहीं है। सदरराज लागू करने की जरूरत होती आशंका के तहत पेश आई इसका उल्लेख रिपोर्ट में नहीं मिलता। राज्यपाल ने 19 मार्च को राष्ट्रपति को पत्र भेजा था लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया कि 35 विधायकों ने वोटस वितरण की मांग की है।

यह महत्वपूर्ण था। बेंच की इस आपत्ति पर केंद्र ने 19 मार्च को कहा कि राज्यपाल को जानकारी उपलब्ध नहीं थीं। पीठ ने खारिज मुख्यमंत्री हरीश रावत आवेदन और अन्य संबंधित आवेदनों की सुनवाई के दौरान जो उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को चुनौती दी गई थी सवाल किया कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के आरोपों 9 बागी कांग्रेस विधायकों आलोचना सामग्री धारा 356 के उपयोग के लिए आधार बन सकता था लेकिन रिपोर्ट में उनका जिक्र नहीं है। अदालत ने बागी विधायकों को पूर्ण तौर गीरमपलक और अस्वीकार्य अंदेशे बताया। अदालत की पीठ ने यह भी कहा कि कैबिनेट नोटिस कि राज्य में सदरराज के कार्यान्वयन के बारे में भेजी गई थीं, छिपा क्यों रखी जा रही हैं। उन्हें अदालत में कोई चर्चा नहीं हुई और न दरख़ास्त गुज़ार उनकी नकल प्रदान की गई। कल सुनवाई के दौरान डिवीज़न बेंच ने बार बार दावा किया था कि आरोपों के बावजूद सदस्यों की खरीद-बिक्री और भ्रष्टाचार उन्मूलन का एकमात्र संवैधानिक तरीका बहुमत परीक्षण है।