रोहित की मौत: दलित मुस्लिम इत्तिहाद के आवाज़ को ख़ामोश करने की शाजिश

हैदराबाद सेंट्रल यूनीवर्सिटी में कल शाम एक दलित तालिबे इल्म की ख़ुदकुशी एक मामूल के मुताबिक़ पेश आने वाला वाक़िया नहीं है। इस वाक़िया के पसे पर्दा मुहर्रिकात भी कई हैं और इस के असरात से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

जिस दलित तालिबे इल्म ने ख़ुदकुशी की है वो यूनीवर्सिटी में तालीम पाने वाले दूसरे तलबा से क़दरे मुख़्तलिफ़ था और उसने हिन्दुस्तान में दलित-मुस्लिम इत्तिहाद की अहमियत को समझते हुए दलित-मुसलमानों को टकराव पर मजबूर करने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ तन-ए-तन्हा जद्दो जहद शुरू कर रखी थी।

इस नौजवान की संजीदा मुहिम और जद्दो जहद से ऐसा लगता है कि सरकारी हल्क़े और खासतौर पर दलित – मुस्लिम इत्तिहाद की कोशिशों से बेचैन तबक़ात ख़ौफ़ज़दा हो गए थे।

ये अनासिर अपने नापाक अज़ाइम और मक़ासिद की तकमील के लिए मुल्क में मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर दलितों और मुसलमानों को एक दूसरे के ख़िलाफ़ टकराव के लिए उक्सा रहे हैं और ऐसा हालात पैदा किए जा रहे हैं जिनके नतीजा में मुज़फ़्फ़रनगर जैसे फ़सादाद पेश आ रहे हैं।

हैदराबाद सेंट्रल यूनीवर्सिटी में ख़ुदकुशी करने वाला तालिबे इल्म रोहित इन हालात पर बेचैन था। वो समाज में मुसावात को यक़ीनी बनाने और दलितों और मुसलमानों से होने वाली ना इंसाफ़ियों को ख़त्म करने के लिए ख़ामोश जद्दो जहद में मसरूफ़ था।

उस की ख़ामोश और तन-ए-तन्हा जद्दो जहद ने इक़्तेदार के ऐवानों तक की तवज्जा हासिल करली थी। इस नौजवान रोहित ने सबसे पहले इफ्लू (इंग्लिश एंड फ़ोरेन लैंग्वेजेस यूनीवर्सिटी) में एक कश्मीरी नौजवान मुदस्सर कामरान की इम्तियाज़ी सुलूक से तंग आकर की गई ख़ुदकुशी के ख़िलाफ़ बेचैनी महसूस की थी।

कश्मीरी नौजवान के हक़ में उसने एहतेजाज की राह भी अख़तियार की थी। ज़राए का दावा है कि दत्तात्रीय के मकतूब के बाद ही यूनीवर्सिटी इंतेज़ामीया ने अपने मौक़िफ़ में मज़ीद सख़्ती पैदा की और अपने इक़दामात से दलित तलबा को हिरासानी का सिलसिला जारी रखा।

ये भी कहा जा रहा है कि मर्कज़ी वज़ीर इस्मिरती इरानी ने भी दत्तात्रीय की ताईद में एक मकतूब यूनीवर्सिटी को रवाना किया था और दत्तात्रीय और इस्मिरती इरानी के मकतूब ही दलित तलबा की मुअत्तली की वजह हैं।