लम्हों ने की खता और सदियाँ भुगत रही है

सियासत हिन्दी : भारत पर हज़ारों साल तक मुस्लिम हूकुमत होने के बावजूद भारत में मुस्लिम अक्लियत थे और आज भी अक्लियत ही है, बावजूद इसके भारत में ही दुनिया में दुसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं।  मुसलमानों के भारत पर इतने लम्बे वक्त तक हुकुमत करने का राज़ कुछ ऐसा ही था कि उनका अख़लाक़ और अंदाज़ यहाँ की अवाम से बेहद मुहब्बत भरा था और यहाँ की अवाम (अक्सरियत) ने भी उनको कुबूल किया और साथ-साथ रहे।  वो लोग जो ये कहते है कि इस्लाम तलवार की ताकत पर फैला है भारत के अक्सरियत के मुहं पर तमाचा के बराबर है और वे यह गवाही दे रहे है कि अगर वाकई इस्लाम तलवार की ज़ोर पर फैला होता तो, क्या वाक़ई भारत में हजारों साल तक हुकुमत करने पर भी इतने हिन्दू बचे होते मतलब नहीं। भारत में अस्सी फीसद (80%) हिन्दू की मौजूदगी इस बात की शहादत दे रही है कि मुस्लिम हुकुमतों ने तलवार नहीं मुहब्बत सिखाई। मुसलमानों का यह फ़न आज भी उनको दूसरो से अलग करता है। 

भारत में मुस्लिम हुकुमतों की पहचान यहाँ के तारीख पढने पर मालूम हो जाती है कि वे कितने पुर-खुलूस, मुहब्बती और प्रजा-प्रेमी थे और उन्होंने इन्साफ, कल्चर और सामजिक समरसता, बोलने की आज़ादी, मजहबी आज़ादी, दुसरे मजहबों के फी मुहब्बत तमाम मजहबों की जजबात के मद्देनज़र कानून-निजाम करना, अवामी-तामीर काम, तालिमी काम की। 

उस वक़्त जब यहाँ मुस्लिम हुकुमतों का राज था भारत में मुसलमानों की आबादी बीस फीसद (20%) थी, आज (15%) है।  अगर पकिस्तान और बांग्लादेश अलग न होते तो हो सकता है कि भारत दुनिया का अकेला और पहला ऐसा मुल्क होता जहाँ मुसलमानों की अबादी सबसे ज्यादा होती।  मगर अफ़सोस कि आज़ादी से पहले की छोटी सी भूल ने भारत के टुकड़े-टुकड़े हो गए।  “लम्हों ने की खता और सदियाँ भुगत रही है…”

जब अंग्रेजों ने यह फैसला कर लिया कि भारत को आज़ादी दे देनी चाहिए और मुस्तकबिल के हुकूमतों (साबिक के हुकुमतों मतलब मुसलामानों) को उनको सौप देना चाहिए। भारत के आज़ादी के ऐन मौक़े पर भारत का बंटवारा करा दिया गया।  जिसके फलस्वरूप पाकिस्तान बन गया.