वसाइल के बजाये अल्लाह की ज़ात पर तवक्कुल करने की तलक़ीन

इंसान जिस चीज़ से मुहब्बत करता है वो अपनी हर गुफ़्तगु में इस का तज़किरा करता है।इंसान अगर माल से मुहब्बत करता है तो गुफ़्तगु का महवर ख़ाह कुछ भी हो लेकिन वो दौरान गुफ़्तगु माल का तज़किरा किए बगै़र नहीं रहता। इसी तरह औलाद जायदा और दुसरे अनासिर में भी इस में शामिल हैं।

इस से उसकी इस शए की मुहब्बत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इन ख़्यालात का इज़हार अबदुर्रहमान दाऊदी अमीर मुक़ामी जमात-ए-इस्लामी हिंद शहर निज़ामबाद ने जमात-ए-इस्लामी हिंद के मर्कज़ी इजतेमा आम से ख़िताब करते हुए किया।
उन्होंने कहा कि इंसान उठते बैठते ,सोते जागते हर हाल में ख़ुदा के ज़िक्र को अपनी ज़बान पर जारी वसारी रखे वही असल कामयाबी है।

इंसान के तमाम मसाइल का हल सिर्फ़ ख़ुदा की ज़ात ही से मुंसलिक है लेकिन अफ़सोस कि इंसान दुनियावी वसाइल पर भरोसा किए हुए है जिस का नतीजा ये है कि आज इंसानियत परेशान हाल है।

उन्होंने कहा कि जो शख़्स ख़ुदा के ज़िक्र को छोड़कर किसी और का ज़िक्र करता है या ख़ुदा को भूल जाता है तो इस के मुक़द्दर में तंगी ,आफ़ात और परेशानियां हमेशा दामन गीर रहती हैं।

ख़ुदा के ज़िक्र की बेहतरीन मिसाल नमाज़ है ।जिस में इंसान ख़ुदा से हमकलाम होताहै ये जितना अजज़ो इनकिसारी के साथ अपने सर को इस के आगे झुकाता है ख़ुदा भी इसी तरह इंसान के क़रीब हो जाता है।

इंसान अगर ख़ुदा की तरफ़ एक क़दम बढ़ता है तो ख़ुदा अपने बंदे की तरफ़ दस क़दम आगे आता है। शुरका इजतिमा को मश्वरह दिया कि इंसान अगर तन्हाई में बेजा चीज़ों पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने के बजाये ख़ुदा के ज़िक्र में मशग़ूल रहे तो अल्लाह ताआला अपनी मज्लिसों में इस बंदे को याद फ़रमाते हैं। इजतिमा का आग़ाज़ क़ुरआन मजीद की तिलावत से हुआ। अवाम की कसीर तादाद मौजूद थी।