वैज्ञानिकों की चेतावनी! मनुष्य ग्लोबल वार्मिंग की वजह से डायनासोर की तरह विलुप्त हो जाएगा

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि डायनासोर के निधन के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया, वो एक ऐसा प्रजातियों का एक सामूहिक था जो इसके विलुप्त के बाद से कभी नहीं देखा गया, और अब मनुष्य जलवायु परिवर्तन से उसकी विलुप्त होने वाले प्राजाति कि तरफ बढ़ रहा है। डायनासोर भी इसी तरह के जलवायु परिवर्तन कि वजह से लुप्त हुये थे, हालांकि छुद्रग्रह भी इसके लिए काफी ज़िम्मेवार था।

मानव निर्मित वैश्विक परिवर्तन विभिन्न प्राणियों के जीवन कि विविधता को खत्म करने कि धमकी दे रहा है, जो कि विभिन्न जगहों पर सदियों से पृथ्वी पर रह रहा है। हर जीव नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों में चले गए हैं जैसे प्रवाल भित्ति जो अक्सर अन्य लोगों के साथ सहजीवन में रहते हैं और क्षतिग्रस्त होने पर उनकी विविधता को ठीक करने में काफी समय लगता है लाखों साल।

लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते समुद्र के स्तर ने बहुत से प्रजातियों को सफाया करने पर तुली हुई है, जो जल्दी ही पर्याप्त रूप से बदलने के लिए अनुकूल नहीं हैं। विशेष रूप से मीठे पानी के आसपास में रहने वाले विविध पक्षी जो स्तनधारियों के साथ घूम रहे हैं लेकिन वे अक्सर अलग पॉकेट का निर्माण करते हैं जो अचानक बदलाव के लिए कमजोर होते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ बिथ में विकास के लिए मिल्नेर सेंटर के विकासवादी पीलेबायोलोजी मैथ्यू विल्स के प्रोफेसर ने कहा ‘डायनासोर को नष्ट करने वाले क्षुद्रग्रह अब हमें निशाना बनाने में तुली हुई है और फिर भी हम आराम से सो रहे हैं। ‘आश्चर्यजनक रूप से, हम भौतिक और जैविक ताकतों के बारे में काफी कम जानते हैं जो वैश्विक स्तर पर विविधता के पैटर्न को आकार देते हैं।

‘उदाहरण के लिए, माजूदा समय में दस लाख कीड़े के प्रजातियों में सिर्फ उनकी सिस्टर ग्रुप में केवल 32 प्रजातियां ही बचे हैं, जो कि छोटे-छोटे बदलाव कि वजह से खत्म हो गए हैं? ‘विविधता विकसित करने के लिए लाखों साल लगती है, लेकिन एक झपकी में क्षति हो सकती है और यहीं कीड़ों के साथ भी हुआ।

‘हम पहले से ही विविधता खो रहे हैं जो कभी भी दस्तावेज नहीं किए गए हैं, इसलिए तंत्रों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि हम नए प्रजातियों के विकास को समझे जो समय समय पर विलुप होने के बावजूद जलवायू परिवर्तन कि वजह से अपनी जीवन बचाने के लिए नए विकास करने में लगे हुए हैं।’

वैज्ञानिकों ने यह देखा कि कैसे पहली बार लोअर जुरासिक काल में दिखाई देने वाला झींगा पहले से अब विकसित और विविध है। दुनिया भर में लगभग 3,500 प्रजातियां नमक और ताजे पानी के निवास स्थान पर रह रही हैं जो समुद्री खाद्य श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, और दुनिया भर में मत्स्य पालन में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ यूनिवर्सिटी के एक विकासवादी पौलीबायोलॉजिस्ट डॉ केटी डेविस ने समझाया कि ‘अनुमानों के आधार पर, दो से 50 मिलियन मौजूदा प्रजातियों (मेटाज़ोआ) के बीच, जो सभी लगभग 650 मिलियन वर्ष पहले रहते थे, जो एक समान सामान्य प्रजातियों से उत्पन्न हुए हैं। पारिस्थितिकी में परिवर्तन को जाने के लिए सिस्टर क्लैड्स से विषम भाग्य की व्याख्या करने के लिए हम कारीडियन झींगा में इसकी जांच करते हैं। वह वैज्ञानिकों ने क्रस्टेशियंस झींगा के विकास में विविधता परिवर्तन के पैटर्न की जांच की।

उन्होंने पाया कि झींगा ने बार-बार समुद्र से ताजे और मीठे पानी कि तरफ कुच किए अपने निवास स्थान बदल कर नया निवास स्थान चुना ताकि, वो जीवन बचा सके। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी से अब इनको खतरे में डाल सकती है, जिससे इन मीठे पानी के वितरण में बाधा आ गई है और नतीजतन विलुप्त होने की संभावना है।

इसके विपरीत, कई समुद्री झींगा कोरल और स्पंज सहित कई अन्य जानवरों के साथ निकट सहजीवी संघों में रहते हैं, जो कि उनके विविधीकरण दर को धीमा कर देते हैं

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी म्यूजियम के रिसर्च के प्रमुख सह-लेखक सैमी डे ग्रेव ने कहा ‘हमारे अध्ययन से पता चला है कि झींगा अपने विशिष्ट निवास स्थान के अनुसार विविध और अनुकूलित है, इसमें कुछ अंतर्दृष्टि क्यों होती है कि कुछ समूह अन्य की तुलना में बहुत अधिक प्रजातियां हैं।’ मतलब साफ है कि हमारे ग्रह में हर जीव प्रजाति जो स्थल या पानी में रहते हैं अपने विकास के लिए जलवायू परिवर्तन के हिसाब से अपने को ढाल लेते हैं हालांकि इस प्रक्रिया में उसे काफी वक़्त लग जाता है। लेकिन हम मनुष्य अभी भी परिस्थितकी के अनुकूल अपने आप को ढाल नहीं पाये हैं। हम सिर्फ नई ऊंचाइयों को छु रहे हैं, लेकिन तरक्की बेहतर जीवन के लिए जरूर हो सकती है पर ये मानव प्रजाति के जीवन को परिस्थितकी के अनुसार ढाले नहीं जा रहे हैं। और ये गलती हमें डायनासोर के तरफ ले जाएगा जो दुबारा जीवन में नहीं आ सका।