दिल्ली : स्कैम, फर्जीवाड़ा, गोरखधंधा ये सारे शब्द इस मामले के सामने बौने पड़ गए थे। तो क्या अब सब कुछ ठीक हो गया है..जी नहीं, यह सरकारी फितरत का ही नमूना है कि इस संवेदनशील मामले में भी लापरवाही साफ नजर आती है। वे 114 मुन्नाभाई डॉक्टर अब भी सरकारी अस्पतालों में लोगों का इलाज कर रहे हैं, जिनके एडमिशन निरस्त करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने यह पूरा मामला मेडिकल कॉलेजों पर छोड़ दिया है।
कॉलेजों ने इस मामले से संबंधित रिपोर्ट अब तक नहीं सौंपी है। सूत्रों के मुताबिक 114 मुन्नाभाई डॉक्टरों में से कुछ धार, नरसिंहपुर व रतलाम के अस्पतालों में सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
व्यापमं द्वारा ली जाने वाली मेडिकल प्रवेश परीक्षा ‘पीएमटी’ में फर्जीवाड़ा कर कुछ छात्रों द्वारा एमबीबीएस में एडमिशन लेने का मामला 2009 में तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने विधानसभा में उठाया था। सकलेचा ने विधानसभा में मांग की थी कि साल 2009 के जिन छात्रों ने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लिया है, उनकी फोटो का
नवंबर 2011 में इस मामले की जांच के लिए बनाई गई कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट दी कि 114 एडमिशन गलत तरीके से हुए हैं, जिसमें परीक्षा देने वाले छात्र और एडमिशन लेने वाले छात्र अलग-अलग थे। जांच रिपोर्ट के बाद छात्रों के प्रवेश रद्द किए गए, लेकिन कुछ छात्र इसके खिलाफ 2012 में हाई कोर्ट चले गए।
हाई कोर्ट ने एडमिशन निरस्त करने पर स्टे देते हुए कहा था कि छात्रों को सुनवाई का मौका हीं नहीं मिला, इसलिए फिर से इन मामलों का परीक्षण कर फैसला लिया जाए। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2009 सहित 2008 से लेकर 2012 तक गलत तरीके से प्रेवेश लेने वाले छात्रों का एडमिशन निरस्त कर दिया।
इन कॉलेजों में इतने छात्रों के एडमिशन होने थे निरस्त
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल: 26
महात्मा गांधी मेडिकल
कॉलेज, इंदौर : 08
ग्वालियर मेडिकल कॉलेज : 36
सुभाष चंद बोस मेडिकल
कॉलेज, जबलपुर : 15
रीवा मेडिकल कॉलेज : 08
सागर मेडिकल कॉलेज : 21