शायरा को तंज़िया शायरी की तरफ ध्यान देने ज़ाहिद अली ख़ान का मश्वरह

हैदराबाद 12 अक्टूबर: ज़ाहिद अली ख़ान एडीटर सियासत ने दौरान तक़रीर शायरा पर-ज़ोर दिया कि वो अपनी शायरी में सैर-ओ-तफ़रीही-ओ-मज़ाहीया पहलू को रखने के बजाये तंज़िया शायरी की तरफ़ ध्यान दें इस लिए कि देखा गया के हिन्दी ज़बान के शायरा अपने शायरी में ज़्यादा-तर तंज़ को एहमीयत देते हैं इस लिए कि इन दिनों जो मौजूदा समाज है उनमें उन्नति ज़्यादा बुराईयां जन्म पा चुकी हैं उनसे उनको दूर करने के लिए बड़ी एहमीयत के हामिल हुआ करते हैं जिसके लिए उर्दू ज़बान के शायरा का इस तरफ़ ध्यान नहीं है।

उन्होंने कहा कि मुआशरे में कई लड़कीयां जहेज़-ओ-लेन-देन और मांग के होने के बिना बिन ब्याही है। इस लिए समाज-ओ-मुआशरे में शऊर को बेदार करने और जहेज़ की लानत के ख़ातमा और शादीयों में इसराफ़ से बचने के लिए शायरा को भी आगे आना बेहद ज़रूरी है।