संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाएँ: एससीएसटी अध्यक्ष

नई दिल्ली: हिन्दी के त्रिभाषी फॉर्मूले का हिस्सा होने पर विवाद के बीच, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एससीएसटी) प्रमुख नंद कुमार साई ने बृहस्पतिवार को मांग की कि सरकार को संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाना चाहिए क्योंकि कई भारतीय भाषाएं इसी से निकली हैं।

उन्होंने कहा कि दक्षिणी भारतीय राज्य भले ही हिन्दी पर आपत्ति जताते हैं लेकिन वह संस्कृत पर आपत्ति नहीं जताएंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘अच्छी बात है कि आप अंग्रेजी सीखना चाहते हैं। लेकिन आपको अपनी भाषा संस्कृत भी सीखनी चाहिए और इसका सम्मान करना चाहिए। संस्कृत संपूर्ण भाषा है जबकि अंग्रेजी में तर्कों का अभाव है।’’

साई ने कहा कि अगर संस्कृत को भारत की आधिकारिक भाषा बनाया जाता तो देश बेहतर स्थिति में होता।

आयोग प्रमुख ने दावा किया, ‘‘संस्कृत भाषा तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम और यहां तक कि हिन्दी के करीब है। इसलिए, इसे सभी के लिए अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। और, अन्य क्षेत्र के लोग इसका विरोध नहीं करेंगे।’’

अब संशोधित की जा चुकी मसौदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत त्रिभाषीय फॉर्मूले में सभी सरकारी स्कूलों में हिन्दी की पढाई की सिफारिश की गई थी। तमिलनाडु तथा कई अन्य राज्यों में विरोध के बाद, केन्द्र ने संशोधित मसौदा शिक्षा नीति में हिन्दी की अनिवार्य शिक्षा का विवादित प्रावधान हटा लिया।

साई ने कहा कि वह केन्द्र के नागरिक संशोधन विधेयक का समर्थन नहीं करते जिसमें मुस्लिम बहुल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों, जैनों और पारसियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है।

उन्होंने कहा, ‘‘पूर्वोत्तर में बड़ी संख्या में घुसपैठी घुस चुके हैं। विधेयक हमारे अपने लोगों के हितों को प्रभावित करेगा।’’