सख़ावत तक़र्रुब इलाही, रज़ए हबीब कबरयाऐ के हुसूल और हुक़ूक़ उल-ईबाद की तकमील का ज़रीया

हैदराबाद ३० जुलाई( प्रैस नोट) रमज़ान मुबारक नुज़ूल क़ुरआन मजीद, फ़रीज़ा सोम, इबादत शबाना, आमाल सालहा, इन्फ़ाक़ और ख़िदमत-ए-ख़लक़ से मानून होने के साथ इस के तीनों अशरे रहमत, मग़फ़िरत और नजात के साथ इबारत हैं। आग़ाज़ वही, ग़ज़वा बदरमें मुस्लमानों की कामयाबी और फ़तह अज़ीम मक्का मुकर्रमा के अज़ीमुश्शान वाक़ियात भी इसी माह-ए-मुबारक से ताल्लुक़ रखते हैं। नमाज़ पंजगा ना और रोज़ों के साथ उम्मत के मुतमव्विल, साहिबान स्रोत मालकीयन निसाब बिलउमूम फ़रीज़ा ज़कात भी रमज़ान शरीफ़में अदा करने का एहतिमाम किया करते हैं ।

सख़ावत और फ़य्याज़ी जो इस्लाम की असासी तालीमात में नुमायां हैं माह रमज़ान से उन का ख़ास ताल्लुक़ है। सख़ावत के ज़रीया अगरचे कि एक बंदा दूसरे बंदों की माली इआनत करता है लेकिन अल्लाह ताला अपने फ़य्याज़ बंदा की फ़य्याज़ी से ख़ुश होकर उसे मज़ीद इनाम-ओ-इकराम से मालामाल फ़रमाता है रसूल अल्लाह ई के उस्वा-ए-हसना, संत मुक़द्दसा और इर्शादात आलीया मैं सख़ावत का ख़ास मौक़िफ़ है बख़शिश-ओ-ख़ैरात, अपनी ख़ुशी से अपनी कोई चीज़ किसीहाजतमंद को देदीना, दूसरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए माली ईसार करना, औरों की ख़ुशी और ज़रूरत की तकमील के लिए अपनी हाजत-ओ-ख़ाहिश से दस्तबरदार हो जाना, लोगों के आराम के लिए अपनी राहत से दस्तकश हो जाना-ओ-नीज़ अपने माल, दौलत , असर-ओ-रसूख़ को मख़लूक़ ख़ुदा की भलाई की ख़ातिर लगा देना सख़ावत के मुख़्तलिफ़ ताबनाक पहलू हैं।

माह रमज़ान मुबारक में सख़ावत का हर रुख़ अज्र-ओ-सवाब के इस्तिहक़ाक़ और उन में कई गुना ज़्यादा अता-ओ-सरफ़राज़ी का हीला ही। सख़ावत दर हक़ीक़त रूह ज़कात है।उल्मा किराम और दानिश्वर हज़रात ने आज सुबह ९ बजे ऐवान ताज उलार फा-ए-हमीदा बाद वाक़्य शरफ़ी चमन,सब्ज़ी मंडी और ग्यारह बजे दिन जामि मस्जिद महबूब शाही , मालाकनटा रोड,रूबरू मुअज़्ज़म जाहि मार्किट में इस्लामिक हिस्ट्री रिसर्च कौंसल इंडिया ( आई हरक) के ज़ेर-ए-एहतिमाम १००१ वीं तारीख़ इस्लाम इजलास के मौक़ा पर मुनाक़िदा मौज़ू आती मुज़ाकरा सख़ावत-ओ-इन्फ़ाक़में हिस्सा लेते होई इन ख़्यालात का मजमूई तौर पर इज़हार किया।

मुज़ाकरा की निगरानी डाक्टर सय्यद मुहम्मद हमीद उद्दीन शरफ़ी डायरेक्टर आई हरक ने की।क़ुरआन हकीम की आयात शरीफा कीतिलावत से मुज़ाकरा का आग़ाज़ हुआ। नाअत शहनशाह कौनैन ऐपीश की गई अह्ले इल्म और बाज़ौक़ रोज़ादार सामईन की कसीर तादाद ने शिरकत की। प्रोफ़ैसर सय्यद मुहम्मदहसीब उद्दीन हमीदी जवाईंट डायरेक्टर आई हरक ने मुज़ाकरा का आग़ाज़ करते होई कहा कि अहादीस शरीफ़ से साबित है कि सखी अल्लाह ताला, जन्नत और लोगों से क़रीब है और जहन्नुम से दूर है जब कि बख़ील अल्लाह ताला सी, जन्नत से और मख़लूक़ ख़ुदा से दूर है लेकिन जहन्नुम से क़रीब होता है।

मौलाना सय्यद मुहम्मद सैफ उद्दीन हाकिम हमीदी कामिल निज़ामीया ने अपने मक़ाला में कहा कि अल्लाह ताला ने अपने मालदार और साहिब निसाब मोमिन बंदों पर ज़कात को फ़र्ज़ किया है जिसे निसाब के लिहाज़ से हिसाब करके अदा करना ज़रूरी होता है जब कि ख़ैरात, इन्फ़ाक़ और सदक़ात नाफ़ला के लिए नानिसाब है ना मुद्दत है और ना गिनती-ओ-शुमार ही। हर एक जो मालिक निसाब हो या ना हो जब चाहे जहां चाहे अल्लाह की राह में अल्लाह ताला के ज़रूरतमंद बंदों, फ़ाक़ा कशों , मिस्कीनों, बेवाओं, यतीमों, क़र्ज़दारों, मुसाफ़िरों, बीमारों, लाचारों और हाजत मंदों की मदात ख़ैर से इमदाद-ओ-इआनत कर सकता है।

निगरान मुज़ाकरा डाक्टर हमीद उद्दीन शरफ़ी नेहदीस शरीफ़ के हवाले से बताया कि अल्लाह की राह में ख़ूब ख़र्च करो। उन्हों ने कहा किरोज़ा इख़लास पर मबनी इबादत है रोज़ादार का हर अमल इख़लास के ज़मुरा में शुमार होता ही। सख़ावत का ताल्लुक़ हुक़ूक़ उल-ईबाद से ही। माह रमज़ान में मुस्लमानों को इबादत ख़ालिक़ और ख़िदमत मख़लूक़ दोनों का शरफ़ मिलता ही। नमाज़ , रोज़ा, ज़कात ख़ालिस इबादत माबूद हक़ीक़ी हैं और इन्फ़ाक़, सदक़ात, कार-ए-ख़ैर-ओ-नीज़ ख़ुद फ़रीज़ा ज़कात जो इबादत इलाही होने के साथ साथ हक़्क़-उल-इबाद से ताल्लुक़ भी है इन आमाल ख़ैर औरमाली ईसार से रोज़ादार सही माअनों में रज़ा य हक़तआला और रसूल अल्लाह ई की ख़ुशनुदी हासिल करके दारेन की सुर्ख़रूई से मालामाल होता है।

सख़ावत तालीमात नबवीऐ का बुनियादी सतून है सख़ावत-ओ-फ़य्याज़ी और एहसान करके जताने से रोका गया है क्यों कि ये मोमिन सखी के शायान-ए-शान नहीं इख़लास के साथ जो सख़ावत की जाय इस का बदला-ओ-अज्र अल्लाह ताला कई गुना ज़्यादा बढ़ा कर अता फ़रमाता है। साहिबान निसाबका सालाना फ़रीज़ा ज़कात अदा करना भी बिलाशुबा सख़ावत के मफ़हूम में है।

सख़ावत माल में इज़ाफ़ा और ख़ैर-ओ-बरकत की कुंजी है क्यों कि ये इरशाद मिलता है कि जो अल्लाह की राह में ख़र्च करता है तो अल्लाह ताला इस पर ख़र्च करता है।

डाक्टर हमीदउद्दीन शरफ़ी ने कहा कि अपनी पाक कमाई और फ़ी सबील अल्लाह ख़र्च में से एक हिस्सा ज़रूर बह ज़रूर अपने मुस्तहिक़ लवाहिक़ीन की माली इआनत के लिए सिर्फ किया जाय ये बड़ी ख़िदमत है।बारगाह रिसालत ई में हज़रत ताज उलार फा-ए-सैफ शरफ़ी ऒ का तहरीरकरदा सलाम गुज़राना गया। ज़िक्र जुहरी और दाये सलामती पर आई हरक का ये मक़सदी मुज़ाकरा इख़तताम को पहुंचा। इबतदा-ए-में जनाब मज़हर हमीदी ने ख़ैर मुक़द्दम किया और आख़िर में शुक्रिया अदा किया।