सरकार मुस्लिम महिलाओं के मामले में गंभीर है, तो पहले उनकी शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करे

पटना : यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के अनुसार तलाक का मामला सामने लाकर सरकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के सवाल से बचना चाहती है। जाहिर है यह सवाल अहम है कि मुसलमानों की खस्ता हाली को दूर करने के लिए क्या सरकार आरक्षण के मामले पर भी तलाक की तरह ही खुलकर सामने आएगी। मुस्लिम संगठनों ने तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के मामले में जहां आंदोलन चलाने की घोषणा की है, वहीं इससे अलग दलित मुसलमानों का मार्गदर्शन करने वाले संगठनों ने सरकार से तलाक के मामले की जगह आरक्षण पर बहस कराने की वकालत की है।

गौरतलब है कि मुसलमानों की बड़ी आबादी सच्चर समिति के मुताबिक दलितों से भी बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर है, जिसके लिए रंगनाथ मिश्रा आयोग ने आरक्षण देने की सिफ़ारिश की थी, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार चुप है। ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा ने तलाक की जगह आरक्षण पर बहस कराने की सरकार से मांग की है।
शरीफ कुरैशी ने कहा कि कई मामले केवल राजनीतिक लाभ के लिए उठाए जाते हैं और भाजपा की ओर से यह मामला भी उसी की व्याख्या करता है। कुरैशी के अनुसार सरकार मुस्लिम महिलाओं के मामले में गंभीर है, तो सबसे पहले उनकी शैक्षिक पिछड़ेपन को हल करने की कोशिश करे।

साथ ही साथ मुसलमानों को आरक्षण के दायरे में लाया जाए। दलित नेताओं ने कहा कि तलाक के मामले से मुस्लिम महिलाओं और मुसलमानों को फायदा नहीं होगा। 60 प्रतिशत मुसलमान दो वक्त की रोटी के मोहताज हैं। अगर सरकार को मुसलमानों से सच्ची हमदर्दी है तो संविधान की धारा 341 से प्रतिबंध हटाए।