सरबजीत की हत्या के आरोपियों को लाहौर हाइकोर्ट ने रिहा किया

पाकिस्तान की अदालत ने कोट लखपत जेल में साल 2013 में भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह के हत्या मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। लाहौर कोर्ट ने इस हत्याकांड में शामिल दोनों प्रमुख आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने दोनों को बरी करने के पीछे का कारण साक्ष्यों की कमी बताया

यह मामला पांच साल से कोर्ट में लंबित था, जिसपर लाहौर सत्र न्यायालय ने आज फैसला सुनाया। अदालत के एक अधिकारी के अनुसार, लाहौर के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश मोहम्मद मोइन खोखर ने गवाहों के मुकर जाने के बाद मुख्य संदिग्धों अमीर तंबा और मुदास्सार को बरी कर दिया।

अधिकारी ने कहा, ‘दोनों संदिग्धों के खिलाफ अदालत में एक भी गवाह ने गवाही नहीं दी। अदालत ने उन्हें उनके खिलाफ साक्ष्य की कमी के लिए बरी कर दिया।’

उन्होंने बताया कि दोनों संदिग्ध सुरक्षा चिंताओं के कारण कोट लखपत जेल से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुए।

बता दें कि 49 वर्षीय सरबजीत की मई 2013 में लाहौर की कोट लखपत जेल में साथी कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। मौत की सजा पाए दोनों कैदियों आमिर सरफराज उर्फ तांबा और मुदस्सर ने ही सरबजीत पर हमला बोला था और उनकी हत्या कर दी थी।

इससे पहले इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने इसको लेकर अभियोजन पर अपनी नाराजगी जतायी थी कि अभियोजन पक्ष के गवाहों को बयान दर्ज कराने के लिए नहीं ला पाया।

उससे भी पहले हुई सुनवाई में एक गवाह ने अदालत को बताया था कि सरबजीत सिंह को सर्विसेज हॉस्पिटल में नाजुक स्थिति में लाया गया था।

एक सदस्यीय आयोग ने सिंह के रिश्तेदारों को विदेश मंत्रालय के जरिये नोटिस जारी करके अपना बयान दर्ज कराने के लिए कहा था। अधिकारियों ने बताया कि सिंह के परिवार ने हालांकि बयान दर्ज नहीं कराया।

आमिर और मुदस्सर ने आयोग को दिये अपने बयान में अपराध स्वीकार करते हुए कहा था कि उन्होंने सिंह की इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि वे भारतीय नागरिक द्वारा लाहौर और फैसलाबाद में कथित रूप से किये गए हमलों में मारे गए लोगों का बदला लेना चाहते थे। सरबजीत सिंह को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में साल 1990 में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में कथित संलिप्तता के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी।