सारी हवाए हमेशा चलने से पहले बता दे की उनका रास्ता किस ओर है: जावेद अख्तर

सारी हवाए हमेशा चलने से पहले बता दे की उनका रास्ता किस ओर है.

हवाओ को ये भी बताना होगा की जब चलेंगी तो उन की तेज़ी क्या होगी.  के आंधी की इजाज़त अब नहीं है.

हमारी रेत  की ये दीवारे और कागज़ के महल ,जो बन  रहे है , उनकी रक्षा करनी होगी.क्यूंकि सब जानते है की उन् की आंधी है पुरानी दुश्मन.

किसी का आदेश है की ये समंदर की लेहरे अपनी मनमानी ज़रा कम कर ले और अपनी हद में रहे,

उभर कर बिखरना और बिखर कर फिर उभारना गलत है उन् का इस तरह हंगामा करना.

ये सब है भीषणता और दहशत के अंदेशे है.

और न ये दहशत ना ही इस  भीषणता को सहा जाएगा.

अगर इन् लेहरो को  दरिया में रहना है तो उन्हें चुप चाप बहना होगा.

किसी का आदेश है की इस बाग़  में सिर्फ एक ही रंग के फूल होंगे.

और कुछ अफसर ये तै करेंगे के ये बाग़  किस तरह से बनेगा.

इतना ज़रूर है की जो रंग होंगे इस बाग़ के वो कितने गहरे और कितने हलके होंगे, वो ये अफसर तै करेंगे.

किसी को ये कैसे समझाया जाए की बाग़ में फूल किसी एक रंग के नहीं हो सकते, क्यूंकि हर रंग के  पीछे बोहत सरे रंग होते है.

जो बाग़ को सिर्फ एक रंग का बनाना चाहते थे उन् को देखो ज़रा. के एक रंग में सौ रंग बन गए है तोह वे कितने परेशांन लगते है, कितने त्रस्त  लगते है.

किसी को क्या बताए की हवाए और लेहरे कभी किसी का हुक्म नहीं सुनती.

हवाए हकीमो की मुट्ठियों में  हथकडियो में और कैदखानों में  नहीं रुकती.

और जब ये लेहरे रोकी जाए तोह समंदर कितना भी शांत क्यों न हो बोखला ही जाता है.और इस बोखलाहट के बाद बस बाड़ ही आती है…………

– (जावेद अख्तर)

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