सूदख़ोरों की जानिब से अग़वा कर्दा शख़्स की हड्डियां बरामद !

हैदराबाद 1 जून : सूदखोर उन दरिंदों की तरह होते हैं जो इंसानी गोश्त को नोच-नोच कर खा जाते हैं। उस का ख़ून पी लेते हैं और इस ख़ौफ़ से कि कहीं हड्डियां उन के गले में ना फंस जाएं हड्डियों को यूं ही छोड़ देते हैं । इसी तरह का सुलूक सूदख़ोरों ने सआदत नगर ( शाहीन नगर ) के साकिन मुहम्मद अबदुर्रहीम उर्फ़ इक़बाल के साथ किया और कल इस 52 साला शख़्स की जिस्म की हड्डियां दस्तयाब हुईं।

वाज़ेह रहे कि मुहम्मद अबदुर्रहीम उर्फ़ इक़बाल 31 अगस्त 2012 से लापता थे उन के अरकाने ख़ानदान का दावा है कि फाइनेंसरों ने उन का अग़वा कर लिया था । उन की अहलिया मुहतरमा रहीमुन्निसा दो बेटों अब्दुल ग़फ़ूर , अब्दुल क़ादिर और दो बेटियों महरुन्निसा और कौसर जहां के इलावा उन के दो भाईयों डॉक्टर मुहम्मद अब्दुल हमीद और मुहम्मद अब्दुल नईम को इस बात की उम्मीद थी कि मुहम्मद अबदुर्रहीम सहीह सलामत घर लौट आएंगे।

लेकिन 9 माह बाद उन की वापसी की बजाय अरकान ख़ानदान को अबदुर्रहीम के ढांचा की हड्डियां सौंपी गईं और बताया गया कि उन्हें क़त्ल करके अत्तापूर पिलर नंबर 117 राजेंद्र नगर के करीब वाक़े नाले में नाश फेंक दी गई थी और हड्डियां भी इसी मुक़ाम पर बरामद हुईं । मुहम्मद अबदुर्रहीम के क़त्ल और नाश की बजाय हड्डियों की दस्तयाबी पर उन के ख़ानदान में ग़म की लहर दौड़ गई है।

अरकान ख़ानदान इस बात पर ब्रहम हैं कि पुलिस राजिंद्र नगर उन्हें मुसलसल गुमराह करती रही हालाँ कि उसे मुश्तबा अफ़राद के नामों की फ़ेहरिस्त तक हवाले की गई थी । वाज़ेह रहे कि सियासत की 9 सितंबर 2012 की इशाअत में शहर में सूदखोर फिर सरगर्म शाहीन नगर में फिनान्सर्स के हाथों एक शख़्स का अग़वा की सुर्ख़ी से तफ़सीली रिपोर्ट शाय हुई थी।

तक़रीबन 9 माह बाद मुहम्मद अबदुर्रहीम उर्फ़ इक़बाल के बड़े भाई डॉक्टर मुहम्मद अब्दुल हमीद रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर एनीमल और मुहम्मद अब्दुल नईम ने बताया कि पुलिस राजिंद्र नगर के सब इन्सपेक्टर एस लक्ष्मण ने 30 मई को शाम 7 बजे फ़ोन करते हुए बताया कि आप के लापता भाई का पता चल गया है । लेकिन वो ज़िंदा नहीं हैं उन के कपड़ों की शनाख़्त करलीं।

उन के जिस्म की चंद हड्डियां हमारे पास हैं और चंद हड्डियां बाशमोल खोपड़ी वगैरह अत्तापूर पिलर नंबर 117 के करीब नाले में मौजूद हैं इन हड्डियों को भी हवाले कर दिया जाएगा। अब मुहम्मद अबदुर्रहीम के भाईयों का मुतालिबा है कि पुलिस कमिशनर साइबराबाद इस केस में दिलचस्पी लेते हुए पुलिस राजिंद्र नगर और मुश्तबा मुल्ज़िमीन के दरमियान साज़-बाज़ को बेनकाब करे।

और उन मुल्ज़िमीन को हिरासत में लेते हुए सख़्त तफ़तीश करें तब ही हक़ीक़ी क़ातिलों का पता चल सकता है और उन्हें कैफ़रे किरदार तक पहुंचाया जा सकता है । उन लोगों ने बताया कि अबदुर्रहीम की तलाश में वो 9 माह के दौरान हज़ार से ज़ाइद मर्तबा पुलिस राजिंद्र नगर के चक्कर काटते रहे इसी तरह 29 मार्च 2013 को हुक़ूक़े इंसानी कमीशन से भी इस मसअले को रुजू किया गया।

कमीशन ने भी उन की कोई मदद नहीं की । डॉक्टर मुहम्मद अब्दुल हमीद ने बताया कि अग़वा से एक साल क़ब्ल ही अबदुर्रहीम की लारी जल चुकी थी अब सवाल ये पैदा होता है कि उस की इंशोरेंस की रक़म कहाँ गई क्या क़ातिलों ने ही वो रक़म भी हथिया ली । इस बारे में कमिशनर साइबराबाद को छान-बीन करनी चाहीए।

बताया जाता है कि मक़्तूल मुहम्मद अबदुर्रहीम की शनाख़्त उन के कपड़ों से की गई क्यों कि आख़िरी मर्तबा जब वो अपने मकान से बच्चों के स्कालरशिप फ़ार्म दाख़िल करने के लिए निकले थे तब उन्हों ने सफ़ारी सूट ज़ेब तन किए हुए थे।