हम घर वापस आना चाहते हैं लेकिन !!

लेखक -वसीम अकरम त्यागी

प्रिय श्री मोहन भागवत जी, सरसंघचालक, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ एवम राष्ट्रीय अभिभावक भारत सरकार
प्रिय श्री नरेंद्र मोदी जी, प्रधानमंत्री भारत सरकार

मन विचलित है, घर की याद इतनी तेज़ हो गई है की आपको चिट्ठी लिखे बिना मन नहीं रहा वैसे भी आप अपनी मन की बात कह डालने में विशवास करते हैं हैं इसलिए मैंने भी सोच लिया की आप के सामने अपनी मन की विपदा रख ही दूं, जब से आप की सरकार आयी है आपकी पार्टी और आपकी पार्टी की अभिभावक संघ और परिषद् देश भर में मुसलमानों को घर वापस लाने का अभियान चला रहे हैं, पूछने की जरुरत नहीं है की आप को इस अभियान के बारे में पता होगा,

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मेरा घर मेरा इतिहास

आज से करीब पांच सौ साल पहले हम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के एक गावं में रहते थे, ये उस समय की बात है जब कोई हमें हिन्दू नहीं कहता था, बल्कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं था, जिस धर्म को हम जानते थे वह बस ये था कि स्वर्णों की सेवा करना, उनका मलबा ढोना, उनसे पिटना और बेइज्जत होना ही हमारा धर्म था, उन्हें हमारी बदसूरत शक्ल ना दिखे इसलिए हमारे घर उनके मुहल्लों से बहुत दूर बसाए जाते थे, हम मरे हुए जानवरों का मांस खाते थे कियोंकि उन्हें ढोना, फेंकना हमारा ही काम था, हमारी औरते हमसे ज्यादा आपकी थी, उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाकर आप हम पर बड़ा उपकार करते थे, जिस चीज़ पर हमारा हाथ छू लेता था वो आपके लिए अपवित्र हो जाती थी, हमारे छुए कपडे दोबारा धोये जाते थे, दिन की पहली घड़ी में अगर आप के लोग हमें देख लेते थे तो उनका सारा दिन अपशगुन हो जाता जाता था, आपके भगवान भी आपकी तरह हमें अपना तृतीय दर्जे का भक्त समझते थे इसलिए मंदिरों में घुसने पर मनाही तो थी ही साथ उनका प्रसाद भी हमें फ़ेंक कर दिया जाता था, मनुस्मृति, वेदों और तमाम धार्मिक पुस्तकों में हमारे बारे में साफ़ साफ़ लिखा था की हम पैरों से पैदा किये गए हैं अतः हमारा स्थान पैरों के नीचे ही था, आपके बनाए कानून के मुताबिक हमें पढ़ने लिखने अथवा बौद्धिक कार्य करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, इन पुस्तकों के अनुसार हम छूत इसलिए पैदा हुए क्योंकि हमने अपने पुराने जन्मों में घोर पाप किये थे, और स्वर्ण कुल में जन्म लेने के लिए हमें कई जन्मों के चक्र से गुजरना पड़ेगा, हम अपने बच्चो को यह नहीं समझा पाए कि वे मंदिरों में क्यों नहीं खेल सकते ? वे आपके बच्चों के साथ क्यों नहीं खेल सकते ? उन्हें भी पढने लिखने का अधिकार क्यों नहीं है ? क्यों उनकी आँखों के सामने उनके माता पिता रोजाना बेईज्ज़त होते हैं ? प्रताड़ना हमारे लिए इतनी स्वभाविक हो गई थी की जिस दिन आप ने अपनी चारपाई के पास खड़े होने का भी अवसर दी दिया तो छाती चौड़ी करके घूमते थे, जिस दिन आपके घरों के बाहर बैठ कर आपकी जूठन खाने को मिल जाता तो हम अपने आप में बहुत सम्मानित महसूस करते थे, आपके झूटे वादे, मक्कारी भरे शब्द तो हमें कभी झूटे लगे ही नहीं।
कुछ सालों में कुछ लम्बे चौड़े गोर चट्टे लोग हमारे गावं में आकर बस गए थे, हमने सुना की वो किसी बाहरी देश के फौजियों के साथ आये हैं, हमने ये भी सुना कि वे आपके और आपके राजाओं से लड़कर आपका राज पाट छीन रहे हैं, गावं के बाहर उनके खेमें गड़े थे जहाँ वे एकसाथ खाना खाते, एक साथ उनके बच्चे खेलते थे, उनके मोहल्ले में कोई चमरौधा नहीं था, जब हम उनके पास से गुज़रते थे तो ऐसा लगता था की उन्हें कुछ भी बुरा नहीं लगा, हमारे छू जाने से उन्हें कोई करंट नहीं लगा, हमें याद है कि जब आप हमारे सामने से गुज़रते थे तो हमें एक तरफ खड़े होकर आपके गुज़र जाने की प्रतीक्षा करना होता था, एक दिन जब वे लोग खाना रहे थे तो उन्होंने हमें अपने साथ ज़बरदस्ती बैठा लिया और खाना खिलाया, हम खाना लेकर उनके खेमें के बाहर खड़े होकर खाने लगे, लेकिन उनकी आँखों में इतना गुस्सा था की वापस उनके साथ उनके बगल में बैठ कर खाना पड़ा, हम फिर भी डरे हुए थे क्योंकि हम दूषित और प्रकोपित तुच्छ लोग उनके साथ बैठ कर खाना खायेंगे तो हमारे देवी देवता नाराज़ हो जायेंगे, हमारे ऊपर उनका प्रकोप होगा, हमें उनसे दूर भागते रहे, हमने देखा उनके यहाँ एक कपड़े सिलने वाला था, सब उसे जुलाहा कहते थे, जब वो आम के पेड़ के नीचे पूजा करता था, घोड़े पर बैठ कर लोग आते थे और उसके पीछे सम्मान के साथ लाइन लगा कर खड़े होकर पूजा करते थे, ये कपडे सीने वाला दुबला पतला आदमी जब कब घोड़े वाले सरदार को डांटता था, उसके पास किताबें थी, खोल कर सरदार को सिखाता था, सरदार के साथ उसके लड़के और उसकी बिरादरी के दूसरे लोग भी आकर उससे ज्ञान लेते थे, सरदार और उसके घर के लड़कों की बहुत खिल्ली उड़ाई जाती थी, हम जब भी वहां से गुजरते थे वे हमें भी बैठा लेता था, एक दिन धोखे से उनकी एक पुस्तक पर मेरा हाथ लग गया, हम डर कर भागने लगे, लगा की आज मार दिए जायेंगे, सारे लड़के मेरे पीछे दौड़े, पकड़ के उसके पास ले गए, उसने पूछा क्यों भाग रहे थे, हमें जानकर बहुत आश्चर्य हुआ उनकी किताब हमारे छूने से अपवित्र हुई ही नहीं, अजीब फर्क था उनकी किताब में और आपकी किताब में!
कब हमारे बच्चे इनके बच्चो के साथ खेलने लगे हमने पता ही नहीं चला, उनके साथ खेलते, खाना खाते, पढ़ते और फिर उनके साथ काम करने लगे, किसी को कपडे सिलने का काम, किसी को किताबें बांधने का काम, किसी को बर्तन बनाने का काम मिल गया, हमारे रहने सहने का तरीका बदलने लगा, हम बदलने लगे, हम क्या बन रहे थे ये तो हमको भी नहीं मालूम था लेकिन जो भी था पहले से अच्छा था, हमें अपने पुराने दिनों पर शर्म आती थी, हमें घृणा होने लगी थी की हम इंसान होकर भी खुद को इंसान नहीं समझते थे, पहले हम खुद को नीच समझते थे, अब हमको पता चला कोई इंसान नीच नहीं होता, सब बराबर होते हैं, हम अपनी नई जिंदगी से बहुत संतुष्ट थे, फिर हम उनके दुःख सुख के साथी हो गए, देखा देखी हमारे सैंकड़ो लोग उनके साथ चले आये, उनकी तादाद हम लोगों से भी कम हो गई, फिर हम वे हो गए और वे लोग हमारे अन्दर एक अल्संख्यक हो गए, हम धीरे – धीरे मुसलमान के तौर पर जाने जाने लगे,
फिर अंग्रेजी राज आया, उनकी हुकूमत कमज़ोर होने लगी, तब हमने पहली बार सुना की इस देश में कुछ लोग हिन्दू हैं और कुछ लोग मुसलमान हैं, पहली बार आप जैसे बहुत सारे मराठी नेताओं का जो अंग्रेजो की नौकरी करते थे, अंग्रेजों के पैसे पर पले बढे और शिक्षित हुए थे उन्होंने किताबे लिखी की इस देश में हिन्दू नाम का एक धर्म है, मेरे तमाम भाई बंधू जो मुसलमान नहीं हुए थे वे रातों रात हिन्दू करार दिए गए, अचानक उनके अन्दर हिन्दू होने का अभिमान जगाया जाने लगा, वे अपने आप को आपके बराबर समझने लगे और आप उन्हें समझाने लगे की मुसलमानों की सत्ता उखाड़ फेंकना सभी हिन्दुओं का कर्तव्य है, वे आपकी तरफ से हमसे लड़ने लगे, हमें मारने के लिए आने लगे, वे अपने ही लोगों को मार रहे थे क्योंकि वे अब हिन्दू थे और हम मुसलमान थे, आपकी नज़र सत्ता पर थी, आपने जोड़ घटाना लगाया, आपको लगा अगर हम जो मुसलमान हो गए हैं और जो नहीं हुए हैं वे सब मिलकर रहेंगे तो इस देश में उनकी तादाद 80 फीसद हो जाएगी, वे जिन्होंने ने मनुस्मृति के मुताबिक़ राज किया था उनकी तादाद दस बारह फीसद रह जायेगी, सबको मालूम है की मनुस्मृति में किया लिखा है, आप ने तिकड़म रचाया, आपने हिन्दुओं की गिनती बढाने के लिए शूद्रों को हिन्दू कहा, बुद्धो, जैनियों और सिखों को भी हिन्दू घोषित कर डाला, फिर आपने नफरत की बुनियाद पर हिन्दू एकता बनाने के लिए मेरा नया इतिहास रचा, मुझे मेरे ही देश में बाहरी कहने लगे, विदेशी आक्रान्ता घोषित करने लगे, हमारे ऊपर आप नए नए आरोप लगाने लगे, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश में हैं वो कौन हैं ? वे भी इसी देश की मिटटी में सदियों से रहने वाले लोग हैं जिन्हें आपने मुनुस्मृति के मुताबिक़ इंसान से जानवर बनाया था और हम आपसे बचने के लिए, अपनी औरतों और बच्चों को बचाने के लिए, अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए बाहर से आये उन लोगों का मज़हब अपनाया जो हमें अपना समझते थे, जिनकी मस्जिद में हम पहले दिन से इमाम बन गए, उनकी किताबों को छूने पर और पढने पर कोई प्रतिबंध नहीं था, हमारे और उनके बच्चे साथ खेलते कूदते बड़े हुए और आज ये फर्क इतना ख़त्म हो चुका है की आप हमें पहचानने से इन्कार कर रहे हैं, हाँ हम मनुस्मृति को धुत्कारने के बाद ज्यादा बेहतर हो गए हैं, हम भी विदेशी जैसे लगने लगे हैं, हम बंधुआ मजदूर जैसे नहीं लगते, अब हम अपनी औरतों को आपके घरों पर नहीं भेजते, अपनी मनुस्मृति की दरिंदगी छुपाने के लिए आप हमें घर का बाहर का कहने लगे, लेकिन करोड़ों लोगों को आप एक रात में विदेशी साबित नहीं कर सकते इसलिए आपका ये आरोप चल नहीं पाया, सच्चाई तो यह थी बाहर से आने वाले तो खुद आप थे आर्यन थे आप ! हम तो अपने ही घर में बैठे थे, अपने घर में हम कैसे रहे, किसके साथ रहें, क्या करें इसका फैसला बाहर से आये हुए आर्यन क्यों करेंगे ? हमारे विरोध पर आप की जुबां बंद हो गई लेकिन आपकी साज़िश चलती रही,
आपने देश को विभाजित करने से पहले हिन्दू मुस्लिम पैदा किये, फिर देश का बंटवारा करवाया, हिन्दू के लिए हिंदुस्तान मुसलमानों के लिए पाकिस्तान, लेकिन हम पाकिस्तान नहीं गए और क्यों जाते, हम तो अनंत काल से इसी मिटटी में थे, आपकी चाल पूरी तरह सफल नहीं हुई, आप हमें हमारी मिटटी से अलग नहीं कर पाए लेकिन आप के पास योजनाये ख़त्म नहीं हुई,
आपका घर कैसा है?
आज साठ साल हो गए हैं एक भी शुद्र भारत का प्रधानमंत्री नहीं हो पाया है, गिन के बताईये कितने प्रमुख सचिव, राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार, कितने विदेश सचिव, आईबी सीबीआई के कितने निर्देशक, कितने सेनाअध्यक्ष, कितने गृहमंत्री, विदेशमंत्री और वित्तमंत्री शुद्र और आदिवासियीं को आपने बनने दिया है, विदेशों में कितने दलितों को आपने भारत गणराज्य का राजदूत बन्ने का सम्मान दिया ? आपकी पार्टी में शुद्र लड़कियों और लड़कों से विवाह करने वाले कितने नेता हैं, नाम लेकर बताइये, आपके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में दलित नेताओं की संख्या बताइये, आपकी सलाहकार समिति में, आपके सरकार्यवाहकों में कितने दलित हुए हैं अबतक, हमने तो आपके तंत्र से बगावत करके खुद को आपसे अलग कर लिया था इसलिए आपकी हमसे नफरत और दुश्मनी समझी जा सकती थी लेकिन सैंकड़ों भाई बंधू जो मुसलमान नहीं हुए जो आज भी अनुसूचित जाती में हैं आपने उनका रास्ता रोकने का कोई मौका नहीं छोड़ा है, ऐसे ही नहीं आपने अंबेडकर का रास्ता रोका था, एक मुख्यमंत्री मायावती को रोकने के लिए आपने कौन कौनसे हथकंडे नहीं बनाए,
आप घर वापसी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन चलाना चाहते हैं! इस आन्दोलन में मैं आपको पूरा समर्थन देना चाहता हूँ, लेकिन हमें यह नहीं मालूम कौनसे घर में वापस आना है ? आप किसके घर में किसकी वापसी चाहते हैं ? जो आपके कथित घर में हैं साठ साल के सविधान वाले देश में वो अभी तक दलित हैं, उनकी समाजिक और सांस्कृतिक और आर्थिक स्थित में कुछ परिवर्तन नहीं आया है, उनके लड़के लडकियां आज भी बेइज्ज़त हो रहे हैं, हर इंटरव्यू में उनसे उनका पूरा नाम पूछा जाता है और शर्मा साहब गर्व से अपना पूरा नाम लिख कर अपनी नाम प्लेट लगाते हैं,
हम तो अपने ही घर में हैं कल भी आज भी और हमेशा तक, इस मिटटी में हम पैदा हुए और इसी में मिट जायेंगे, लेकिन आप किसके घर में हैं ? आपने मनुस्मृति इजाद की, रामायण और महाभारत इजाद की, वेदों में हमारे खिलाफ श्लोक लिखवाये, हमें इंसान से अछूत बनाया, फिर भी आप हमारे घर में इज्जत से बैठे हैं,
फिर भी आपको लगता है की हम घर से बाहर हैं और आप घर के अन्दर हैं तो ठीक है हम अपना घर छोड़ कर आपके घर में आने के लिए तैयार हैं, यदि आपके अन्दर ज़रा भी हिम्मत है तो देश के तमाम जनता के सामने हमारी मांगों पर जवाब दीजिये,

हम घर वापसी के लिए तैयार हैं अगर
1. भारतीय संसद में पिछले पांच हज़ार साल तक हमारे साथ हुए अमानवीय और घृणित व्यवहार करने के लिए माफ़ी मांगने का प्रस्ताव प्रस्तुत कीजिये।
2. पिछले पांच हज़ार साल तक हमारे साथ हुए अमानवीय अपराध बल्कि हमें इंसान से जानवर बनाने के तमाम अपराधों की जांच के लिए आयोग बनाया जाय और और वर्ण व्यवस्था बनाने वाली हर पुस्तक, गुरु, शास्त्र की लिस्ट बनाई जाए ।
3. आप और आपका संघ परिवार देश की संसद से मांग करे कि मनुस्मृति पर देश भर में प्रतिबंध लगाया जाए, मनुस्मृति का और वर्णव्यवस्था को सही कहने वालों सभी व्यक्तियों, पत्रिकाओं, शास्त्रियों को अपराधी घोषित किया जाए, बिलकुल वैसे ही जैसे हिटलर की पुस्तक को जर्मनी ने प्रतिबंधित किया था ।
4. हमारे ऊपर हुए अत्याचारों की कहानी देश के सभी विद्यालयों की किताबों में शामिल किया जाये बिल्कुल वैसे ही जैसे जर्मनी में नाजियों के अपराधों के प्रति जर्मन नागरिकों में जागरूकता पैदा की गई है।
5. आप बतायें कि देश में पहला शुद्र प्रधानमन्त्री कब बनेगा ?, देश के प्रमुख पदों पर उनका नंबर कब आएगा ?
6. बताइये की देश के चार धामों में, और अक्षरधाम मंदिरों में और देश के सभी मंदिरों में शूद्रों को मुख्य पुजारी बनाने के लिए कितना समय लगेगा
7. बताइये की सत्तर साल के इतिहास में आपके सेवक संघ में किसी दलित और आदिवासी को सरसंघ चालक बनने का अवसर कब मिलेगा ?
8. संघ द्वारा प्रस्ताव पारित कर सभी दलित लड़कों को को गैर दलित लड़कियों से सामूहिक विवाह का सामूहिक आयोजन करवाया जाय।
9. सभी पोश कॉलोनियों में दलितों को घर बनाने देने के लिए विशेष व्यवस्था की जाए
10. देश के सभी मंदिरों में, सेना में दलित और पुजारियों की नियुक्ति की जाए
11. रिलायंस, टाटा, अदानी और अन्य बड़े निजी व्यपार समूहों में दलित सीईओ की नियुक्तियां की जाएँ और दलितों के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करें ?
12. अगर ये सब कर लेने के बाद घर वापसी अभियान चलाने की ज़रूरत पड़े तो अभियान चलाने वालों का आगरा के मानसिक अस्पतालों में सरकार की तरफ से मुफ्त इलाज का प्रबंध करवाइए।

भवदीय
घर वापसी का अभिलाषी एक भारतीय दलित मुसलमान