हम नहीं, हमारी सरकार है बेरोजगार..

चुनावों के दौरान किये जाने वाले समारोहों और रैलियों में हर राजनीतिक पार्टी देश की जनता से बहुत सारे वादे करती है और उन्हें पूरा करने के भी बहुत सारे दावे करती है। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनता की सुध लेने को न तो कोई समारोह होता है और न ही कोई रैली। चुनावों के दौरान लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए भाषण देते ये नेता भी अपने वादों को भूल जाते हैं और लोग भी भूल जाते हैं। भोले-भाले लोग खुद को ठगा हुआ महसूस तो जरूर करते हैं लेकिन उनके पास सरकार को कोसने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचता। अक्सर कहा जाता है कि देश का आने वाला भविष्य है देश के युवा। इन रैलियों में पहुंचे युवाओं को कहा जाता है कि आपके हाथ में हैं देश को किस तरफ ले जाना है।
आज के युवाओं की सबसे बड़ी परेशानी हैं बेरोजगारी। जिससे पैदा होती हैं इससे जुडी और परेशानियां। लेकिन क्या चुनावों के दौरान वादे और दावे करने वाली सरकार असल में बेरोजगारी मिटाना चाहती है?
अगर चाहती होती तो ये मुद्दा सिर्फ चुनावों के दौरान ही नहीं उठाया जाता। बल्कि देश के भविष्य को सवारने के रास्ते पर कोई सख्त कदम जरूर उठाया जाता। लेकिन ये राजनीतिक पार्टियां जानती हैं कि अगर देश में बेरोजगार नहीं होंगे तो उनकी रैलियों में देश का 65% हिस्सा जोकि युवा हैं कैसे मौजूद होंगे। आजकल का माहौल ये है कि बेरोजगार युवा धर्म की राजनीति में पार्टियों का साथ देते हैं जोकि ये पार्टियां चाहती हैं। इनसे जुड़ने वाले युवा इनके इशारों पर देश में दंगे फसाद करने में, मारपीट, बलात्कार, यहाँ तक की लोगों की जान लेने में भी इनके लिए काम करते हैं।
धर्म के नाम के देश में होने वाली कुख्यात घटनाये चाहे वे हिंदुओं के विरुद्ध हो या मुस्लिमों के या फिर सिखों के। इन घटनाओं को अंजाम देने में हम युवाओं के इस्तेमाल ही किया जाता है।

बेरोजगारी का शिकार हो रही आज की युवा पीढ़ी बड़े-बड़े कोर्स करके भी नौकरियां नहीं पा रहे। देश में रोजगार नहीं है। कौन लाएगा ये रोजगार ? कौन है रोजगार नहीं होने का जिम्मेदार।
आजकल इंजीनियरिंग में टॉप किया हुआ एक युवा चपरासी की नौकरी के लिए तरस रहा है। अगर तो वह हिम्मत रखकर नौकरी पाने की कोशिश करता रहता है। उस दौरान टूटता नहीं तो उसे चाहे उसकी डिग्री के मुताबिक नहीं पर कुछ न कुछ नौकरी मिल ही जाती हैं। लेकिन अगर पढाई खत्म कर और नौकरी मिलने के खाली वक़्त के दौरान टूट जाता है तो जन्म लेता है एक अपराधी। चाहे वह अपराध उसने आत्महत्या करके किया हो या ड्रग पेडलर बनकर या फर किसी किसी राजनीतिक पार्टी के बनाये गए छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर देश में कोहराम मचाया हो।
हर बच्चा जब कॉलेज में दाखिल होता है तो अपने और अपने परिवार के लिए कुछ सपने आँखों में लिए चलता है। लेकिन उसे यह नहीं पता होता की हमारे इस देश की सरकार इतनी निकम्मी है जो कहती तो है की हम देश की सेवा करने के लिए कुछ भी करेंगे। लेकिन देश का भविष्य सवारने के लिए वह कुछ नहीं करते। उदारहण के तौर पर आप किसी भी रैली की विडियो देख सकते हैं जहाँ काफी लोगों की काफी भीड़ आई होती है। कुछ को पैसे देकर लाया जाता है तो कुछ अपनी मर्जी से आते हैं।
सोचने वाली बात है कि अगर कोई कामकाजी इंसान होगा तो वो पैसे लेकर भी यहां नहीं सकता क्योंकि उसके पास वक़्त नहीं होता और पैसे लेकर रैलियों में आने वाले ज्यादातर रोजगार से रहित लोग होते हैं। दूसरे जो अपनी मर्जी से आते हैं वह मन में कुछ उम्मीदें और सपने लिए आते हैं कि हमारे नेता हमारे लिए कुछ करेंगे, देश का विकास करेंगे।

असल में बेरोजगार हम नहीं है, हमारी सरकार है जिनके पास न तो खुद के लिए करने को कुछ काम है और न ही देश के लोगों को देने के लिए कोई रोजगार। उनके पास हैं तो सिर्फ नए-नए मुद्दे ताकि देश के जनता उनकी बेमतलब की बातें सुनती रहे और उसी में उलझी रहे। कोई उनसे सवाल न पूछ पाए।

नेताओं के कहने पर चलने वाले ये लोग ही आगे चलकर किसी राजनीतिक पार्टी में मिल जाते हैं और नेता कहलाते हैं। इसलिए तो ये समस्या देश से खत्म नहीं होती क्योंकि ये चक्का ऐसे ही घूमता रहता है।

इन सारी बातों में सोचने वाली बात ये है कि हमसे वादे करने वाली ये सरकार जब हमारे लिए कुछ नहीं कर रही तो हम इनके लिए क्यों कुछ करें
चुनावों का वक़्त चल रहा है सोच समझ के वोट दें। सतर्क रहे

प्रियंका शर्मा
ये लेखक के निजी विचार हैं.