हाशिमपुरा की सच्चाई आखिर किसने किया मुसलमानों का क़त्ल ?

नई दिल्ली: हाशिमपुरा क़त्ल ए आम में 42 मुसलमानों का क़त्ल कर दिया गया था . 28 साल तक क़त्ल ए आम का मुकदमा चला लेकिन आखिर वक्त तक ये पता नहीं चला कि क़त्ल किसने किया . आखिर हाशिमपुरा का सच क्या है. 28 साल पहले 22 मई की दोपहर को क्या हुआ था?

हाशिमपुरा पुराने मेरठ शहर की संकरी गलियों में बसा हुआ है . मेरठ का वो मोहल्ला जिसका नाम 28 साल से कानून की फाइलों में दबा हुआ धूल चाट रहा था. 28 साल बाद धूल छंटी और अदालत का फैसला भी आ गया. लेकिन अदालत के फैसले ने 42 मुस्लिम खानदान के जख्म को हरा कर दिया है. 28 साल में कानून निज़ाम इस बात का पता नहीं लगा पाई कि 42 मुसलमानों का क़त्ल किसने किया था ?

इल्ज़ाम है कि मेरठ के हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को फौज के जवानों, पीएसी और पुलिस ने मिलकर मुसलमानों को उनके घरों से उठाया था. और सहाफी प्रवीण जैन ने उस वक्त खींचीं थी जब तकरीबन 2 हजार मुसलमान जमा किए गए और अलग-अलग ट्रकों मे लाए गए थे इल्ज़ामहै कि इनमें से 40 से ज्यादा मुसलमानों को पीएसी के जवानों को सौंपा दिया गया था जो पीले रंग की एक ट्रक में इन्हें लेकर गाजियाबाद की तरफ गए.

मुतास्सिरों के खानदान वालों के मुताबिक इनको यही लगा था कि इन्हें जेल भेजा जा रहा है लेकिनइल्ज़ाम है कि 42 लोगों को गोली मार दी गई थी जिनकी लाश गनहर में मिली थी. इस मामले में पीएसी के 19 लोगों को मुल्ज़िम बनाया गया था जिनमें से तीन लोगों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई जबकि बाकी 16 लोगों को तीस हजारी कोर्ट ने सबूतों की कमी की वजह से बरी कर दिया.

हाशिमपुरा क़त्ल ए आम की जांच सीबीसीआईडी की टीम को सौंपी गई थी और मुल्ज़िमों के खिलाफ सबूत जुटाने की जिम्मेदारी रियासत की हुकूमत की थी लेकिन रियासत की हुकूमत तो क़त्ल किये गये सभी लोगों के नाम तक भी नहीं बता पाई . मुतास्सिरों की वकील रेबेका जॉन का दावा है कि मौत की वो गाड़ी ही मुल्ज़िमों के खिलाफ पुख्ता सबूत बन सकती है .

हाशिमपुरा के कई घरों में आज भी जख्म हरे हैं, निशान दिल पर भी हैं और जिस्म पर भी. हाशिमपुरा उस खौफनाक दर्द की गवाही दे रहा है लेकिन सबूत की कमी की वजह से कानून मुल्ज़िमों को सजा नहीं दे पाया.

हाशिमपुरा के रहने वाले जमालुद्दीन के बेटे कमरुद्दीन भी उन 42 लोगों में शामिल थे जिनका क़त्ल हुआ था . उस वक्त कमरुद्दीन की उम्र महज 21 साल थी और उनकी शादी को सिर्फ तीन महीने हुए थे. उस दिन के म‍ज़र को याद कर आज भी कमरुदीन का खानदान सिहर उठता है. जमालुद्दीन का कहना है कि बच्चों और बूढ़ों को फौज ने छोड़ने का हुक्म दिया था लेकिन उन्हें छोड़ा नहीं गया उनमें से 40-50 ऐसे लोगों को चुना गया जो मजबूत कद काठी के थे. उनमें से कमरुद्दीन भी थें.

ज़ैबुन्निशा को उसी दिन बेटी हुई थी पर उनके शौहर मोहम्मद इकबाल अपनी बेटी को देख पाते उससे पहले ही उन्हें घसीट ले जाया गया.

मौत के लिए सिर्फ ताकतवर नौजवानो को चुना गया था लेकिन 60 साल के अब्दुल कदीर को सिर्फ इस लिए चुन लिया गया क्योंकि उनकी कद काठी मजबूत थी.

—————बशुक्रिया: एबीपी न्यूज़