हिंद-पाक ताल्लुक़ात को मज़बूत बनाने के लिए उर्दू ज़बान का अहम रोल

मुंबई 16 मार्च: ये निशानदेही करते हुए कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच मज़बूत ताल्लुक़ात में उर्दू ज़बान को बेहतर मुक़ाम हासिल है, ओ आर एफ़ सदर नशीन सधीनदरा कुलकर्णी ने कहा कि ये ज़बान सरहद पार के अवाम को क़रीब लाने में क़ुव्वत साबित हो सकती है। उन्होंने बताया कि उर्दू ज़बान हिन्दुस्तान में पैदा हुई और जिसकी तरक़्क़ी भी यहां हुई।

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की मुशतर्का ज़बान के साथ रुहानी विरसा भी है और दोनों ममालिक के बीच मज़बूत ताल्लुक़ात क़ायम करने में अहम रोल अदा कर सकती है उर्दू की ताक़त को इफ़हाम-ओ-तफ़हीम, अवाम से अवाम के ताल्लुक़ात को जोड़ने के लिए अमल में लाया नहीं गया जबकि सेकुलरिज्म, फ़िर्कावाराना हम-आहंगी और क़ौमी यकजहती के फ़रोग़ में इर्द ज़बान अहम एहमीयत रखती है जिसकी तरक़्क़ी-ओ-तरवीज की ज़िम्मेदारी हिंदूओं और मुसलमानों पर आइद होती है।

इस मौके पर हिन्दुस्तानी क्लासिक सिंगर समता बीलोरो ने सूफ़ी और भक्ती गीत पेश किए। सूफ़ी और भक्ती विरासत। क़ौमी यकजहती के लिए उस की एहमीयत पर इज़हार-ए-ख़याल करते हुए शमीम तारिक़ ने सूफ़ी संतों ( अमीर ख़ुसरो, भले शाह, लाल शहबाज़ क़लंदर और ददुसरे) भक्ती तहरीक रूह-ए-रवाँ ( तुलसी दास, सुरदास के अलावा सेक्युलर शाइरों इक़बाल, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, हसरत मोहानी की गिरांक़द्र ख़िदमात का तज़किरा किया और ये वज़ाहत की के भक्ती शाइरों ने इस्लाम के बुनियादी उसोलों (ख़ुदा की वहदानीयत ) से वजदान हासिल किया और सूफ़ी संतों ने ख़ुदा से मुहब्बत और इन्सानियत की ख़िदमत का दरस दिया है। और सूफ़ियों और संतों ने ईसार-ओ-क़ुर्बानी, अदल-ओ-इन्साफ़, अमन और भाई चारगी का पयाम दिया है।