‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ और ‘मुस्लिम राष्ट्रवाद’ से अलग था मौलाना आज़ाद का देशवाद

देश के पहले शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का में हुआ, उनका असली नाम अब्दुल कलाम ग़ुलाम मुहीउद्दीन था और आज़ाद उनका तख़ल्लुस था. उनको लोग मौलाना आज़ाद ही के नाम से जानते हैं क्यूंकि मौलाना एक पढ़े लिखे इंसान को कहा जाता है और आज़ाद उनका तख़ल्लुस ही था. उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन जो कि बंगाली मौलाना भी थे खुद काफ़ी नामवर शख्सियत थे. मौलाना आज़ाद को कई ज़बानें आती थीं, उन्होंने बचपन ही से उर्दू,हिंदी,बंगाली,अरबी,फ़ारसी और अंग्रेज़ी पढ़ना शुरू कर दी थी. उन्होंने इस्लाम, मैथमेटिक्स, साइंस,वर्ल्ड हिस्ट्री जैसे विषयों पर शानदार पकड़ बनायी थी. वो 12 साल से भी कम उम्र के थे, तब से वो लाइब्रेरी चला रहे थे और मख्ज़न जैसी नामी मैगज़ीन में आर्टिकल लिख रहे थे, इस उम्र में उन्होंने अपने से दुगनी उम्र के छात्रों को तालीम भी दी.

आज के ज़माने में जबकि लोग राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह का इस्तेमाल अपने चुनावी और दूसरे मसलों को हल करने के लिए कर रहे हैं, आज़ाद ने हिन्दू राष्ट्रवाद या मुस्लिम राष्ट्रवाद से अलग भारत के राष्ट्रवाद की बात की, या यूं कहें कि देशवाद की बात की. उन्होंने अँगरेज़ सरकार का खुला विरोध किया. आज़ाद ने जमाल उद्दीन अफ़ग़ानी के “अखिल-इस्लामवाद”(पैन-इस्लामिस्म) कांसेप्ट के बारे में समझ पैदा की. उन्होंने मुसलमान नेताओं के “बंगाल-बंटवारे” के समर्थन का विरोध किया. 1905 में हुए “बंगाल-बंटवारे” का सख्त़ विरोध करने वाले मौलाना आज़ाद बंगाल, बिहार और बम्बई में क्रांतिकारी सभाएं कीं.

आज़ाद ने 1912 में उर्दू में अखबार अल-हिलाल प्रकाशित किया और उसके ज़रिये उन्होंने अंग्रेजी सरकार की दमनकारी पालिसी का विरोध किया, जिसकी वजह से 1914 में अंग्रेजी सरकार ने अल-हिलाल को बैन कर दिया. अल-हिलाल के बाद उन्होंने अल-बलाग़ अखबार निकाला.
मौलाना आज़ाद को 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े उर्दू लेखकों में शुमार किया जाता है, उन्होंने “इंडिया विन्स फ्रीडम”, ग़ुबार-ए-ख़ातिर, तज़्किरह, तर्जुमनुल क़ुरान जैसी किताबें लिखीं.

उन्होंने असहयोग आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. आज़ाद के ख़ास दोस्त और क्रांतिकारी चितरंजन दास ने जब स्वराज पार्टी बनायी तब भी वो महात्मा गाँधी के आदर्शों पर उनके साथ रहे. 1923 में वो कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए,वो सबसे कम उम्र के कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. भारत छोडो आन्दोलन के वक़्त भी वो कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और मज़बूती से इस बीच कांग्रेस की अध्यक्षता भी की.
आज़ादी के बाद वो देश के पहले शिक्षा मंत्री बने और इस बीच उन्होंने शिक्षा में कई महत्वपूर्ण काम किये.

उन्हें उनके मरने के बाद 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

उनका इंतिक़ाल 22 फ़रवरी,1958 को दिल्ली में हुआ.