२०१९ के चुनाव से पहले गरमाई सियासी पार्टिया, बयानबाज़ी के दम पर लोगो को भड़काने की कोशिश.

भारतीय जनता पार्टी की साल २०१४ की कामियाबी के बाद अब लगता है की विपक्ष काफी संभल गया है और अब सही मायनो में साडी विपक्षी पार्टिया एक साथ २०१९ में बीजेपी के सामने कड़ी होती नज़र आ रही है. ऐसे में हो सकता है की बीजेपी पूरी बहुमत इस बार न बना पाए.

चाहे वो शिक्षा का मामला हो, चाहे रोज़गार का , महिलाओ की सुरक्षा का, विकास का किसी भी मामले में सरकार की कमियों को गिनने में विपक्ष कोई भी कमी नहीं चूड रही है. अपनी बाथ को सरकार से सामने रखने में हो या सुर्खियों में बने होने के लिए कोई भी मुद्दे को भड़काने में पीछे नहीं हटते, चाहे वो भड़काऊ भाषण के ज़रिये हो या किसी की भी निजी ज़िन्दगी से जुड़ा हो. ज़ाहिर है की अपने आप को अगर अगले एलक्शन के लिए तैयार करना है तो जनता के सामने रखने के लिए कोई न कोई तो मुद्दा चाहिए होगा. ऐसे में कोई भी मुद्दा वो छोड़ना नहीं चाहते.

हिन्दू मुस्लिम दंगो को भड़काने से लेकर युवा को खून खराबे तक लेजाने में ये नेता पीछे हटते नज़र नहीं आते. चाहे कोई किसी इंसान की हत्या या मौत पर अफ़सोस जताये या नहीं पर गाय की मौत पार्लिमेंट तक पहुंच जाती है, इन् लोगो के लिए कोई भी कानून संविधान कोई नयने नहीं रखता, ज़रूरी है तोह सिर्फ ऐसे मुद्दे जिनके बल पर वे २०१९ के चुनाव लड़ सके. जब कोई मासूम अपनी जान गावती है तो लोग अपराधी की वैशी सोच को नहीं उस के धरम को निशाना बनाते है, जस बॉर्डर पर कोई सिपाही शहीद होता है तो उस के धरम पर बहस होती है. यहाँ तक की कोण कैसा खाना खायेगा या किस के फ्रिड्ज में क्या रखा होगा ये भी ये चुनिंदा नेहा ही तै करेंगे जो अपने आप को सब का धरम गुरु मानते है, जो राम नंदिर के नाम पर खून खराबा करते है, ऐसे नेता अब अपने गद्दी तो सही तरीके से सँभालने के लिए लोगो के आक्रोश का सहारा लेने में लगे है.

अब सवाल ये उठता है की क्या सच में हिंदुस्तान का संविधान इतना कमज़ोर है की अब आम नागरिक को उस की ज़रूरत नहीं या कानून में अब वो ताकत नहीं रही की वो अपने लोगो की रक्षा कर सके. हिंदुस्तान की परिस्थिति को देख कर यही कहा जा सकता है की यहाँ पर नेता अपनी रोटियां सीखने में लगे है और जनता को सिर्फ सियासी मुद्दों में मोहरा बनाकर इस्तेमाल किया जा रहा है. शायद ही किसी देश में ऐसा होता होगा की किसी को अपने मौलिक अधिकारों के लिए जान गावनि पड़ती होगी. अपने विचर सामने रखने के लिए जहा पर किसी को पीठ पीठ कर मार दिया जाता हो, अपनी मर्ज़ी का खाना खाने की जहा आज़ादी न हो, जहा पर मासूम बच्चियों से अनाथआश्रमों में महीनो तक बलात्कार होता हो, महिलाओ को ज़िंदा जलाया जाता हो वह पर कोई कैसे अपने आप को आज़ाद देश का आज़ाद नागरिक मने.

खेद की बात तो ये है की यहाँ पर लोगो को स्वस्थ कार्ड तो दिए गए है पर अस्पताल कही नज़र नहीं आते, पढाई पूरी करने वेड किए जाते है पर स्कूल और सोल्लगे कह नज़र नहीं आते, बूढ़ो को पेंशन देने की बात की जाती है पर ृतीयर्ड सैनिको पर लाठिया बर्साइज़ाती है, कोई अपनी मर्ज़ी से शादी नहीं कर सकता,कोई अपनी मर्ज़ी से खा नहीं सकता ,कोई अपनी मर्ज़ी के कपडे नहीं पहन सकता तोह कैसी आज़ादी की बात करते है हम.

सबसे बड़ा मज़ाक तो ये है की संविधान और कानून व्यवस्था दोनों की कुछ चुनिंदा नेताओ के हाथ की कठपुतलिया बन चुके है.हलाकि कई कानून अमल में तो आते है पर क्या उनका सही तरह से इस्तेमाल हो रहा है इसका कोई सबूत नहीं है. इन लोगो की नज़र न सिर्फ इंसानो पर बल्कि देश की संपत्ति पर भी है,इस की मनो तो ये लोग ताजमहल को तुड़वाने की बात करते है, देश की धरोहर, जिस की वजह से हिंदुस्तान का नाम दुनिआ भर में मशहूर है उसी को ये लोग हिंदुस्तानी सभ्यता का हिस्सा नहीं मानते. न सिर्फ ताज महल, क़ुतुब मीनार , लाल किला , पार्लिमेंट , राष्ट्रपति भवन सभी ऐतिहासिक इमारतों को तुड़वाने की बात कही है समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान ने.

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एक तरफ जहा पर इनका कहना है की मुसलमानो की बनाई कोई भी ईमारत हिंदुस्तान के इतिहास का हिस्सा नहीं हो सकती यही दूसरी तरफ मुस्लमान नेता भी यही पीछे नहीं रहे, उन्होंने दवा किआ है की अगर एक मुस्लमान की दाढ़ी कटेगी तो वो दस हिन्दुओ को दाढ़ी रखने पर मजबूर कर देंगे. इसके जवाब में राजा सिंह का बयां आया की बांग्लादेश और रोहिंग्या मुसलमानो को गोली मर देनी चाहिए. अब एक के बाद एक इन के बयां ये ही साबित करते है की आने वाले चुनाव की तयारी ये अभी से कर रहे है और आने वाले चुनाव के लिए मुद्दे इखट्टे कर रहे है.