10वीं के बाद स्कूल छोड़ रहे अल्पसंख्यक छात्र, स्कॉलरशिप लेने वालों की तादाद हुई कम

सरकार की अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों के लिए शुरू की गई प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप दम तोड़ती नजर आ रही है। प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप में जहां अल्पसंख्यक बच्चों की तादाद उत्साहित करने वाली है, तो पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के आंकड़ों में ड्राप आउट्स की संख्या बढ़ी है। शिक्षाविद इसके लिए परिवार के कमजोर आर्थिक हालात और बेहतर संसाधनों की कमी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

पोस्ट मैट्रिक में स्कॉलरशिप लेने वाले छात्र हुए कम

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के मुताबिक सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए मैट्रिक-पूर्व और मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना शुरू की थी। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में प्री-मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के आंकड़ों में जमीन आसमान का अंतर है। साल 2017-18 (12 जुलाई तक) में प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप लेने वाले छात्रों की संख्या 48 लाख 19 हजार 121 थी, जो पोस्ट मैट्रिक में घट कर 6 लाख 20 हजार 973 रह गई।

बच्चों के अंक छात्रवृत्ति पाने के लिए नाकाफी

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन गैरुल हसन रिजवी का कहना है कि सरकार के पास पैसे की कोई कमी है। संख्या घटने के पीछे एक प्रमुख वजह यह भी है कि बच्चों के अंक छात्रवृत्ति पाने के लिए नाकाफी होते हैं या फिर वे सरकार के क्राइटेरिया में नहीं आ पाते। उन्होंने बताया कि सरकार कमजोर वर्ग के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए काफी कुछ कर रही है।

आर्थिक हालात जिम्मेवार

1977 बैच के रिटायर्ड सिविल सेवा अधिकारी सैयद जफर महमूद का कहना है कि ये आंकड़े सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद के हैं। इससे पहले के आंकड़े आंखें खोलने वाले थे। उन्होंने बताया कि ड्रॉप आउट्स की संख्या बढ़ने के पीछे उनके परिवार के आर्थिक हालात जिम्मेवार हैं। स्कॉलरशिप लेने वाले बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं और मैट्रिक के बाद उन्हें परिवार की आजिविका चलाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है और पढ़ाई पीछे छूट जाती है।
सैयद जफर महमूद 2007 से जकात फाउंडेशन के तहत सर सैयद कोचिंग और गाइडेंस सेंटर चला रहे हैं, जो हर साल 50 मुस्लिम छात्रों को स्कॉलरशिप देता है। इस साल उनके संस्थान के 26 मुस्लिम युवा सिविल सर्विसेज में सफलता हासिल कर चुके हैं।

परिवार का वित्तीय बोझ करम करने की कवायद

मैट्रिक-पूर्व और मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति देने का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के मेधावी छात्रों को छात्रवृतियां प्रदान करना है। ताकि अल्पसंख्यक वर्ग के लोग स्कूल जाने लायक बच्चों को पढ़ाएं और अपने शिक्षा से सम्बंधित वित्तीय बोझा को काम कर सकें और अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा को पूरा करने में सहयोग करें। इसके तहत कक्षा एक से 10 तक मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति योजना के लिए परिवार की सालाना आय की सीमा 1 लाख रुपए है। जबकि मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति के लिए कक्षा 11 से पीएचडी तक के लिए यह सीमा 2 लाख रुपए सालाना है।

संसाधनों की कमी है जिम्मेवार

दिल्ली की नेशनल यूनिवर्सिटी फॉर एजूकेशन, प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन के पूर्व प्रोफेसर और इतिहासकार सैयद इरफान हबीब ने इसके लिए संसाधनों की कमी को जिम्मेवार बताया है। उन्होंने कहा कि सिर्फ स्कॉलरशिप होना नाकाफी है, दसवीं के बाद बच्चों के खर्चे बढ़ जाते हैं और परिवार बढ़ते खर्चों को वहन नहीं कर पाते। जिसके चलते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में न तो अच्छे कॉलेज हैं और न ही अच्छे स्कूल। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि स्कॉलरशिप के साथ-साथ स्कूल-कालेजों की संख्या भी बढ़ाए, ताकि 10वीं के बाद ड्रॉप आउट्स की संख्या कम हो।

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि यह छात्रों की संख्या लगातार घट रही है और ड्रॉप आउट्स बढ़ रहे हैं। साल 2016-17 में 41 लाख 53 हजार 524 बच्चों ने मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति हासिल की, लेकिन मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति में यह संख्या घट कर 6 लाख 24 हजार 990 रह गई। वहीं 2015-16 में 51 लाख 78 हजार 779 छात्रों ने मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति ली, वहीं पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप लेने वालों की संख्या घट कर 6 लाख 66 हजार 840 पर पहुंच गई।

हाल ही में सरकार ने अल्पसंख्यक बच्चों को प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक और प्रतिभा के आधार पर दी जाने वाली छात्रवृत्तियों की समयसीमा दो साल बढ़ा दी है। मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के विद्यार्थियों के लिए मैट्रिक पूर्व, मैट्रिक पश्चात तथा मेधा सह साधन आधारित छात्रवृत्ति योजनाओं को 5338 करोड़ रुपये की लागत से 2019-20 की अवधि तक जारी रखने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है।