अभिसार शर्मा का ब्लॉग- ‘मोदी का बुद्ध ज्ञान’

“जानता हूं, पढ़ने के बाद आप मुझे देशद्रोही कहेंगे, मगर चलता है। जब इन मौतों को आप रूमानियत का जमा पहना सकते हैं तो देशद्रोह का आरोप नही खलता मुझे”
नई दिल्ली
। वादा था अच्छे दिनों का , मगर अब एक मुर्दनी सी है । कल एक मोदी समर्थक कहते हैं कि अरे अब तो सब बराबर हैं । कहते हैं कि मोदीजी ने हमे सादा जीवन का सही मायने मे मतलब सिखा दिया है। मै मज़ाक नही कर रहा। ये कहा था उन्होने। देश की व्याव्साहिक राजधानी मुंबई की ही बात करें तो ,रेस्टरां में नुक्सान करीब 450 करोड़ का है ,पिछले 9 दिनों में ,यानी करीब 50 फीसदी की गिरावट . गहना बेचने वालों को करीब 750 करोड़ का नुक्सान ,यानी करीब 75 फीसदी गिरावट. दिहाड़ी मजदूरी में तो और भी बड़ा नुक्सान है. करीब 980 करोड़ . और यह गिरावट करीब 50 फीसदी की है.यही हाल प्रॉपर्टी के क्षेत्र में भी है. ( साभार मुंबई मिरर)

अब खुल के जीने और अपनी हदों को चुनौती देने , बेहतर करने , से बात यहां तक आ गई है,के किसी तरह घर के लिए पैसे बैंक से निकाल लिए जाएँ ,वो भी शर्तों के साथ। यानि के आप आगे बढ़ना तो दूर , जिस हालत मे हैं, उससे खुश रहें? मैं जानता हूँ आप क्या कहेंगे के ये नुक्सान क्षणिक है.दूरगामी परिणाम के बारे में सोचिये .देश का भला होगा ! वाकई? ऐसा दावा किया जा सकता है क्या ? अब जबकि सादा जीवन उच्च विचार की बात होने लगी है, तब दूरगामी फायदे की बात बेमानी नहीं लगती? आप इस नोटबंदी के त्वरित परिणामों से जूझने की योजना नहीं बना सके , तब क्या वाकई आपने इसके दूरगामी परिणामों के बारे में कोई ठोस योजना बनायीं है ? या फिर तथाकथित सर्जिकल हमले की तरह , इसका भी मकसद व्यक्ति विशेष अर्थार्थ मोदीजी की छवि को “लार्जर थान लाइफ” यानी इश्वर सामान प्रस्तुत करना ही मकसद था ? क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद रिकॉर्ड जवान पाकिस्तानी गोलीबारी में मारा गया है .एक एक दिन में 8 नागरिक मारे गए हैं . पाकिस्तानी लहू बहाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का भौकाल बनाने की कोई ज़रुरत नहीं थी. वो सेना पहले भी करती आई है, आगे भी करेगी!

नोटबंदी के मामले में पहले बताया गया के दो दिन की दिक्कत है,फिर वित्त मंत्री ने दो हफ़्तों का हवाला दिया ,फिर आपने 50 दिनों में सब कुछ सामान्य होने की बात कही . अब पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम की मानें तो हालात सामान्य होने में 5 से 7 महीने का वक़्त लग सकता है .क्योंकि बकौल चिदंबरम, 85 फीसदी नोट की आपूर्ति करने में नोट छपाई में कम से कम इतना वक़्त लग ही जायेगा .वजह ये है के नोट छपाई की मशीनों की क्षमता सिर्फ इतनी ही है. और यहाँ हर बार की तरह चिदंबरम तथ्य रख रहे हैं और उसे बीजेपी की तरफ से कोई चुनौती नहीं मिल रही .
बड़ा प्रश्न , इस हकीकत से कब तक मुंह मोड़िएगा? संसद मे मोदी जी कुछ कहते नही। देश की जनता आपके साथ है ,जैसा के आपका दावा है ,तो फिर संसद में आने में हिचक क्यों? सामने आने में दिक्कत क्यों? मैं जानता हूँ के जब आप बोलेंगे ,तब वो वक़्त भी आपका होगा और वो स्थान भी,जैसा के अब तक होता आया है. मगर देश ,इन “राष्ट्रविरोधी” विपक्षी नेताओं के सवालों का जवाब देते ,आपको सुनना चाहती है. आपके महान मंत्री इसे प्रसव पीढ़ा बताते हैं । वित्त मंत्री का रुख कुछ ऐसा है , मानो कोई मतलब नहीं इस फैसले से । कहते हैं नोटबंदी का फैसला वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं . जवाब देने के लिए शक्तिकांत दास को लगा दिया है जो सियासी जवाब नहीं दे सकते। ऊपर से उंगली में स्याही लगाने का रामबाण छोड़ चुके हैं . रामदेव के मुताबिक बैंक्स के बाहर के भीड़ प्रायोजित है। पत्रकार जो हकीकत दिखाने की कोशिश करता है, उसके पीछे अति उत्साही कार्यकर्ता लगा दिए जाते हैं। अरे साहेब ,वो तो सिर्फ यही पूछ रहा है न के बागों में बहार है? कह दीजिये ,है! वो भी तो यही पूछ रहा है न के अच्छे दिन आये के नहीं? क्योंकि अच्छे दिनों की गोलपोस्ट, उसके मायने तो आप पहले ही बदल चुके हैं .पहले खुद मोदीजी ने कहा के ,” मित्रों बुरे दिन गए के नहीं ?” अब गडकारी जी की मानें तो अच्छे दिन तो हमारे गले की फाँस है और ये दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री का शिगूफा था .

खुद मोदीजी सार्वजनिक तौर पर पहले इस मुद्दे पर हंसे (जापान) और फिर रोए(गोवा)। मोदीजी,आपके क्यों रोये ? क्योंकि उस वक़्त तक तो लाइन वो लोग खड़े थे न जिन्होंने घोटाले किये थे ? जानता हूँ आपका तंज़ कांग्रेस के उपाध्यक्ष पर था .मगर उनका नाम लेने की हिम्मत करना था .क्योंकि लाइन में मर तो आम इंसान ही रहा है .ताज़ा आंकडा जानते हैं न आप? इसकी बात कुछ देर बाद , मगर दिक्कत एक और है .
आप रोज़ अपनी रणनीति बदलते हैं क्योकि आपको समझ नही आ रहा क्या करें। घोर confusion. क्या ऐसे पॉलिसी बनती है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र मे ? या मोदीजी अपनी विदेश यात्राओं से इतने भावविभर हो गए हैं कि भूल गए हैं कि ये सिंगापुर नहीं भारत है? आपके भक्त बताते हैं कि जब सैनिक 6 फीट बर्फ मे दबा रह सकता है, तो आम इंसान लाईन मे क्यों नही खड़ा हो सकता। अरे निरालो, सैनिक जब मरता है तो उसे शहादत कहते हैं । उसके मरने मे एक गरिमा है। उसकी शहादत पर आप सतही ही सही , अपनी संवेदना जताते हैं। आंसू बहाते हैं। मगर लाईन मे लगकर मरने मे कौनसी गरिमा है? आपके नेता हत्या के आरोपियो की मैय्यत मे जाते हैं , उनके तन को तिरंगे के साथ ढ़का जाता है, मगर लाईन मे मरने वाले आदमी के घर पर कौन गया ? बीजेपी के नेताओं की मानें तो राशन की लाइन में लगकर भी लोगों की मौत होती है .
समर्थक ये भी कहते हैं के आप जिओ का सिम लेने के लिए , पिक्चर की लाइन, डिस्काउंट के लिए ,लम्बी लम्बी कतारों में लग सकते हैं , तो फिर इसमें दिक्कत क्यों? जवाब आप भी जानते हैं . एक तरफ स्वेच्छा का सवाल है ,तो दूसरी तरफ जिंदा रहना का .अपने जीने ,अपने रहन सहन के तरीकों को बचाए रखने का . इसलिए मैंने शुरू मे कहा था,
“अब खुल के जीने और अपनी हदों को चुनौती देने , बेहतर करने , से बात यहां तक आ गई है,के किसी तरह घर के लिए पैसे बैंक से निकाल लिए जाएँ ,वो भी शर्तों के साथ। यानि के आप आगे बढ़ना तो दूर , जिस हालत मे हैं, उससे खुश रहें!”

जानता हूं, पढ़ने के बाद आप मुझे देशद्रोही कहेंगे, मगर चलता है। जब इन मौतों को आप रूमानियत का जमा पहना सकते हैं तो देशद्रोह का आरोप नही खलता मुझे।

(लेखक टीवी पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)