कहानी : लोकतंत्र वयवस्था के माध्यम से बंदर बना जंगल का राजा

इस कहानी में लोकतंत्र के माध्यम से जंगल में बंदर को राजा बनने की कहानी बताई गई है। एक जंगल में बंदरों की बहुत आबादी थी सारे जानवरों में से बंदरों की आबादी ज्यादा हो चुकी थी। जब पूरी दुनिया में लोकतन्त्र की धूम मची हुई थी पूरी दुनिया लोकतन्त्र की हिमायती हो चुकी थी जंगल में भी जानवरों ने आवाज उठाई की अब अब चुनाव के आधार पर जंगल में राजा चुना जाएगा। बात सही थी चूंकि उस जंगल में तीन चार शेर थे 6-7 हाथी थे कुछ लोमड़ी, भालू, लकरबघघे और कुछ हिरण भी थे और न जाने कितने जानवर वहाँ थे, लेकिन उन सब में से बंदर की आबादी ज्यादा थी और ऐसे में लोकतान्त्रिक वयवस्था से चुनाव की आवाज उठी तो आबादी के आधार पर बंदर चुनाव जीत गया चूंकि जंगल की पूरी आबादी में 70 फीसदी आबादी बंदरों की थी। लीजिये बंदर जंगल का राजा बन गया।

और तब पूरे जंगल में खुशी की लहर दौड़ पड़ी क्योंकि बंदर राजा बन गया था। लोकतन्त्र की जीत हुई थी, और अब लोगों को को न तो शेर का खौफ रहा और न ही हाथी का। अब जनवार अपनी शिकायत बंदर के पास ले जाने लगे और जब जानवर शिकायत राजा बंदर के पास लेकर जाते तो बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल कूद ही करता। बंदर राजा तुरंत पेड़ से नीचे उतरता और फिर पेड़ पर चढ़ जाता है और एक पेड़ से दूसरे बेड पर उछल-कूद करने लगता, कभी नीचे उतरता है तो कभी ऊपर चढ़ता है। सभी जानवर यह देख कर हैरान हो जाते है।

लेकिन जंगल में ये बात फैल गई के बंदर राजा के पास जब भी कोई शिकायत लेकर जाता है तो बंदर राजा शिकायत सुनने के बजाय इधर से उधर इस पेड़ से उस पेड़ पर गुलाटी मारता रहता है। जल्द ही जंगल में जंगल राज हो गया सभी जानवर आपस में झगड़ा करने लगे आखिर में बेहाल होकर सारे जनवारों ने बैठक बुलाई और तय किया की बंदर राजा से मिला जाय और जंगल की दुर्दशा के बारे में चर्चा किया जाय सारे जानवर इकठ्ठा होकर बंदर राजा के पास पहुँच गए। कहने लगे महाराज जब से आप जंगल के राजा चुने गए हैं जंगल की स्थिति बद से बदतर हो गई है। आपके पास जब कोई शिकायत लेकर आता है तो आप तो कुछ करते नहीं सिर्फ इस पेड़ से उस पेड़ पर गुलाटी मरते रहते हैं।

बंदर राजा ने कहा भई मुझे जो आता है वही मैं करता हूँ। आप शिकायत लेकर आते हैं और मुझे गुलाटी मारना आता है तो मैं गुलाटी मारता हूँ, अब मेरी कोशिशों में अगर कोई कमी हो तो मुझे दोषी ठहरा सकते हैं। मैं अपनी तरफ से बहुत ईमानदारी से कोशिश करता हूँ। मैं बहुत भाग-दौड़ कर रहा हूँ जो मुझे करना चाहिए वो मैं कर रहा हूं। मैं बहुत मेहनत से अपने काम को अंजाम देता हूँ अब मेरी कोशिशें कामयाब नहीं होती तो मैं क्या करूँ।

सभी यह सुनकर काफी मायूस हो गए और कहने लगे हमलोग बेकार में बंदर को राजा चुने हमारा वोट बेकार चला गया, लेकिन दूसरी तरफ बंदर यह भली भांति जानता था की अगली बार भी चुनाव वही जीतेगा क्योंकि उसके पास चुनाव का सारा गणीत था, और उस जंगल का 70 फीसदी वोट तो आखिर उसी के पास था।

अब सवाल है क्या यही लोकतन्त्र है? याद रखें जिसके पास सबसे ज्यादा वोट होगा वो तो राजा बन जाएगा लेकिन न्याय आपको कभी नहीं मिलेगा वो सिर्फ गुलाटी मारना जानता है तो गुलाटी ही तो मारेगा आपके लिए कुछ नहीं करेगा। और अब इस कहानी का संदेश तो आप बहुत स्पष्ट रूप से समझ गए होंगे। इसका एक यह भी संदेश है की जो लोग सिर्फ दिखावा करते हैं उसका कोई महत्व नहीं और कई लोग बिना लक्ष्य के या बिना उद्देश्य के मेहनत करते हैं जिसका परिणाम भी कुछ नहीं आना है इसलिए हमें दिखावा नहीं बल्कि अर्थपूर्ण काम करना चाहिए ।