तो क्या विभाजन की ओर बढ़ रही है महबूबा मुफ्ती की पीडीपी?

जम्मू-कश्मीर में भाजपा से गठबंधन टूटने और सरकार गिरने के बाद से पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को ‘बगावत’ जैसे हालात से जूझना पड़ रहा है। अब तक 5 विधायक पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खड़े हो चुके हैं।

अब यह चर्चा आम हो गई है कि क्या पीडीपी विभाजन की ओर बढ़ रही है। नवभारत टाइम्स के अनुसार, पीडीपी नेतृत्व को पहली बार इतने मुखर रूप में विरोध का सामना करना पड़ रहा है और विरोध भी सीनियर स्तर पर है लेकिन फिलवक्त दल-बदल विरोधी कानून महबूबा मुफ्ती के लिए कवच का काम कर रहा है।

पीडीपी के 28 विधायक हैं। दल-बदल विरोधी कानून के तहत कम से कम दो तिहाई विधायक अगर एक साथ पार्टी छोड़ते हैं, तभी उन्हें एक पृथक दल के रूप में मान्यता दी जा सकती है और पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की विधानसभा सदस्यता भी बरकरार रह सकती है।

इससे कम सदस्यों के अलग पार्टी बनाने या किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की स्थिति में उनकी विधानसभा सदस्यता जा सकती है। इस लिहाज से महबूबा के खिलाफ कम से कम 19 विधायक होने चाहिए मगर फिलहाल इसकी उम्मीद नहीं है। जानकार मानते हैं कि महबूबा की पार्टी पर पकड़ कमजोर हुई है लेकिन इतनी भी नहीं कि 28 में से 19 विधायक पार्टी छोड़ने को तैयार हों।

महबूबा के हक में जो एक और बात जा रही है वह यह कि उनकी पार्टी के जो 28 विधायक हैं, उनमें से 25 घाटी से ही हैं और महज 3 ही जम्मू से हैं, जो भाजपा के प्रभाव वाला इलाका है।

जम्मू में तो भाजपा के सहयोग से पीडीपी के बागी विधायकों के दोबारा भी जीतने की संभावना हो सकती है लेकिन घाटी में तो बीजेपी को लेकर गुस्सा इस वक्त चरम पर है। ऐसे में शायद ही कोई विधायक अपनी नजदीकी दिखाने की भूल करे।

बीजेपी के लिए भी फुटकर विधायकों के समर्थन से बात बनती नहीं दिख रही क्योंकि उसके सिर्फ 25 विधायक हैं जबकि सरकार बनाने के लिए 44 का जादुई आंकड़ा जरूरी है। सदन में कांग्रेस के 12 और नैशनल कॉन्फ्रेंस के 15 विधायक हैं। दल-बदल विरोधी कानून से बचते हुए पार्टी से अलग होने के लिए कांग्रेस से 8 और नैशनल कॉन्फ्रेंस से 10 विधायक चाहिए होंगे।

जम्मू-कश्मीर में इन दिनों प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल चल रहा है। अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही महबूबा के खिलाफ पार्टी के अंदर असंतोष को हवा देकर उन्हें दबाव में लेने की कोशिश हो रही है। भाजपा को घाटी में अपने पैर जमाने के लिए प्रभावी मुस्लिम चेहरों की दरकार भी है। भाजपा ऐसे चेहरों को घाटी के स्थानीय दलों में ही देख रही है।